अनसिक्योर्ड लोन पर केंद्रीय रिजर्व बैंक की ओर से रिस्क वेटेज बढ़ाए जाने पर लगातार पर्सनल लोन के ग्रोथ पर चिंताएं जताई जा रही हैं. सबका यही अनुमान है कि पर्सनल लोन में कमी आएगी. बैंकों ने भी ऐसा ही कुछ कहा है. क्रेडिट रेटिंग एजेंसी Fitch Ratings ने अपनी एक ताजा रिपोर्ट में कहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक के बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs)  के लिये असुरक्षित माने जाने वाले पर्सनल लोन से जुड़े नियमों को कड़ा किये जाने से लोन ग्रोथ पर असर पड़ेगा. इसका कारण बैंकों और एनबीएफसी को अब ऐसे कर्ज के एवज में अधिक कैपिटल रखने की जरूरत पड़ेगी. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘हाल के वर्षों में कंज्यूमर लोन तेजी से बढ़ा है. ऐसे में हमारा मानना है कि बैंकिंग सिस्टम के स्तर पर कंज्यूमर लोन से  पैदा होते रिस्क को नियंत्रित करने के लिये इस मामले में सख्ती सकारात्मक प्रयास है.’’

आरबीआई ने क्या लिया है फैसला?

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भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने पिछले सप्ताह बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के लिये व्यक्तिगत और क्रेडिट कार्ड कर्ज जैसे असुरक्षित माने जाने वाले ऋण के नियमों को कड़ा किये जाने की घोषणा की. संशोधित मानदंड में जोखिम भार में 25 प्रतिशत की वृद्धि की गई है. उच्च जोखिम भार का मतलब है कि व्यक्तिगत कर्ज के मामले में बैंकों को अलग से ज्यादा राशि का प्रावधान करना होगा. इससे बैंक किसी प्रकार के दबाव की स्थिति में उससे निपटने में ज्यादा सक्षम होंगे. साथ ही इस कदम से लोगों के लिये व्यक्तिगत कर्ज और क्रेडिट कार्ड के जरिये लोन लेना महंगा होगा. 

कितना बढ़ा है पर्सनल लोन?

फिच के अनुसार, बैंकों के असुरक्षित माने जाने वाले क्रेडिट कार्ड कर्ज और व्यक्तिगत ऋण में चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में सालाना आधार पर 29.9 प्रतिशत और 25.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. जबकि सभी कर्ज को मिलाकर कुल वृद्धि 20 प्रतिशत रही. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘असुरक्षित उपभोक्ता ऋण का बढ़ना अधिक जोखिम लेने का भी संकेत देता है. इसके कारण बैंक और एनबीएफआई सुरक्षित खुदरा कर्ज को लेकर कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच शुद्ध ब्याज मार्जिन भी बचाए रखना चाहते हैं.’’ फिच ने कहा, ‘‘हमारा अनुमान है कि गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों (एनबीएफआई) को बैंकों से मिलने वाले कर्ज पर जोखिम भार बढ़ने का प्रभाव महत्वपूर्ण हो सकता है....’’ 

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का क्रेडिट कार्ड कर्ज कम है लेकिन वे एनबीएफआई को ऋण देने को उत्सुक दिखते हैं. दूसरी तरफ निजी क्षेत्र के बैंकों के लिये स्थिति इसके उलट है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल मिलाकर इस बदलाव से बैंक प्रणाली में ‘कॉमन’ इक्विटी शेयर पूंजी (टियर-1) अनुपात 0.60 से 0.70 प्रतिशत कम होने का अनुमान है. यह वह नियामकीय पूंजी है, जो नुकसान की स्थिति में उससे निपटने में सक्षम होती है. 

बैंक ऑफ इंडिया (BoB) ने कहा बफर कैपिटल पर पड़ेगा असर

बैंक ऑफ बड़ौदा के CEO और मैनेजिंग डायरेक्टर देवदत्त चंद ने कहा कि बैंक के कैपिटल ‘बफर’ पर 0.50 प्रतिशत तक का प्रभाव पड़ेगा. बैंक की कैपिटल एडिक्वेसी पर 0.40-0.50 प्रतिशत का प्रभाव पड़ेगा. उन्होंने कहा कि यह प्रभाव इंडस्ट्री के हिसाब से है. 30 सितंबर की स्थिति के अनुसार बैंक की पूंजी पर्याप्तता संतोषजनक स्तर 15.30 प्रतिशत के स्तर पर थी. 

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) को लोन में कमी आने की आशंका

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के चेयरमैन दिनेश कुमार खारा ने कहा कि आरबीआई की ओर से नियमों को कड़ा किये जाने से बैंक के अनसिक्योर्ड माने जाने वाले लोन देने के मामलों में कमी आएगी. खारा ने कहा कि हाई रिस्क वेटेज़ के कारण दिसंबर तिमाही में शुद्ध ब्याज मार्जिन पर 0.02 प्रतिशत से 0.03 प्रतिशत का प्रभाव पड़ेगा. लेकिन सही तस्वीर अगली तिमाही में उभरेगी.उन्होंने कहा, ‘‘हम जो भी कर रहे थे, वह जारी रहेगा. लेकिन उसमें कुछ कमी आएगी. कोष की लागत बढ़ने के साथ-साथ ऐसे कर्ज पर ब्याज दरें भी बढ़ेंगी. एक पूंजीगत लागत होगी जिसे नये मानदंडों के कारण बैंक को वहन करना होगा.’’