दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका (USA) को अब से कुछ घंटे बाद नया राष्ट्रपति (US Eletions 2020) मिल जाएगा. डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) की वापसी होगी या फिर जो बाइडेन (Joe Biden) इतिहास रचेंगे, इस पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हैं. मुकाबला उप-राष्‍ट्रपति पद के लिए माइक पेंस और कमला हैरिस के बीच भी है. ज्यादातर सर्वे बाइडेन को बढ़त दिखा रहे हैं, लेकिन पिछले एक हफ्ते में खेल थोड़ा बदला है. कड़ी टक्‍कर वाले राज्‍यों में बेहद रोमांचक स्थिति में हैं. भारत के लिए इन दोनों उम्‍मीदवारों में से किसकी जीत ज्‍यादा फायदेमंद हैं, आइए समझने की कोशिश करते हैं.

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भारत के लिए क्‍यों अहम है अमेरिकी चुनाव?

तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था भारत को भी अमेरिकी चुनाव में दिलचस्पी है. ट्रंप के कार्यकाल में भारत के रिश्ते काफी अच्छे रहे हैं. हालांकि, यह रिश्ते बराक ओबामा (Barack Obama) के टाइम पर भी थे. लेकिन, आर्थिक रिश्तों (India-America Economic relation) के साथ-साथ सामरिक और साामाजिक नजरिया भी काफी अहम है. चुने जाने वाला राष्ट्रपति दोनों देशों के बीच रिश्तों पर बड़ा असर डाल सकता है. अमेरिका भी यही चाहता है. यहां दो खास बातें हैं, जो भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं. 

पहला- अमेरिका में भी भारतीयों की स्थिति. यहां अच्‍छी-खासी तादाद में भारतीय हैं, जो काम के सिलेसिले में अमेरिका में हैं. ऐसे में वो भी चाहेंगे कि भारत के लिए जो फिट हो वही राष्ट्रपति की भूमिका में होना चाहिए. हालांकि, H1B वीजा को लेकर ट्रंप के फैसले से कई भारतीय खुश नहीं हैं.

दूसरा- भारत के लिए अमेरिका से मजबूत रिश्ते पाकिस्‍तान और चीन जैसे विरोधियों का सामना करने के लिए भी जरूरी है. इस वक्त दुनियाभर में पाकिस्तान और चीन की स्थिति अच्छी नहीं है. ऐसे में भारत को ऐसे दोस्त चाहिए जो इन दोनों देशों के खिलाफ सीना ठोक कर खड़े रह सकें.

भारत के साथ कौन खड़ा होगा?

दोनों विचारधारा ही भारत के अहम हैं. भारत को मजबूत पक्ष चाहिए. अब चाहे वो रिपब्लिकन उम्मीदवार से मिले या फिर डेमोक्रेट से. विश्‍लेषक मानते हैं रिपब्लिकन राष्‍ट्रपतियों का झुकाव भारत की तरफ ज्यादा रहता है. हालांकि, यह बात पूरी तरह सच नहीं है. दूसरे विश्‍व युद्ध के बाद से भारत का सबसे ज्यादा साथ दो राष्‍ट्रपति ने दिया. 1960 के दशक में जॉन एफ केनेडी और फिर 2000 के दशक में जॉर्ज डब्‍ल्‍यू बुश. केनेडी जहां नियो-कंजरवेटिव रिपब्लिकन थे, वहीं बुश डेमोक्रेट. दोनों ने भारत-अमेरिका के रिश्‍तों को नई ऊंचाइयां दीं. खासकर केनेडी ने चीन के खिलाफ भारत का समर्थन किया. हालांकि, कई मौकों पर भारत को झटका भी मिला. लेकिन, फिलहाल की स्थितियां अलग है. भारत दुनिया में काफी मजबूत स्थिति में है.

चीन को लेकर कौन फायदेमंद?

दुनिया की नजरों में इस वक्त चीन को लेकर नजरिया काफी बदल चुका है. कोरोना महामारी के चलते कई देश उसके विरोध में आए हैं. वहीं, महामारी संकट के बीच चीन ने भारतीय सीमा पर तनाव पैदा करके मुसीबत ही मोड़ ली. ट्रंप ने इसका पूरजोर विरोध किया. खुलेआम चीन को चेतावनी तक दी. ट्रंप सीधे-सीधे चीन को सबक सीखाने की बात कह चुके हैं. वहीं, बाइडेन डिप्लोमेसी की वकालत करते हैं. ट्रंप के साथ पीएम नरेंद्र मोदी की 'दोस्ती' भी मिसाल है. चाहे अमेरिका में मोदी का कार्यक्रम रहा हो या फिर ट्रंप का इंडिया में, दोनों ने एक दूसरे के लिए काफी माहौल तैयार किया. मोदी और बाइडेन भी 2014 में मिल चुके हैं, लेकिन तब बाइडेन अमेरिका के उप-राष्ट्रपति थे.

पाकिस्‍तान पर भी सख्‍त हैं ट्रंप

पाकिस्तान को लेकर भी अमेरिका का रुख सख्त रहा है. दुनियाभर में उसका आतंकी चेहरा सामने लाने में भारत और अमेरिका की भूमिका अहम रही है. पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने को लेकर डोनाल्ड ट्रंप कई बार मध्यस्थ की बात कह चुके हैं. अमेरिका और पाकिस्‍तान के रिश्ते में कटास भी चीन से नजदीकियों और आतंकवादी गतिविधियों के चलते कमजोर हुई हैं. ट्रंप पाकिस्‍तान का नाम लेकर इस्‍लामिक आतंकवाद की कई बार भर्त्‍सना कर चुके हैं. जबकि बाइडेन अगर चुने जाते हैं तो वे अमेरिका की पुरानी 'देखो और जरूरत के हिसाब से ऐक्‍शन लो' वाली पॉलिसी पर चल सकते हैं.

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ट्रेड के लिए कौन फायदेमंद?

भारत के अमेरिका के साथ व्यापार को लेकर रिश्तों में हमेशा उथल-पुथल देखने को मिली है. पिछले दिनों अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ बढ़ने से ट्रंप ने विरोध जताया था और भारतीय प्रोडक्ट पर भी टैरिफ बढ़ा दिया था. ट्रंप सामने से विरोध करते हैं और अपने काम को दिखाने की कोशिश करते हैं. वहीं, बाइडेन के राज में रणनीतिक पहलुओं को ध्‍यान में रखते हुए इसे सुधारा जा सकता है. भारत ने 'आत्‍मनिर्भर अभियान' चलाया है. ऐसे में अमेरिका के साथ व्यापारिक रिश्ते का कोई खास असर दोनों के रहने से नहीं दिखता.