Ozone Layer Healing: क्लाइमेट एक्टिविस्ट्स के साथ ही पूरे पृथ्वीवासियों के लिए बहुत अच्छी खबर आई है. पृ्थ्वी की रक्षा करने वाला ओज़ोन लेयर रिपेयर हो रहा है. पिछले कई दशकों से क्लाइमेट क्राइसिस के सबसे बड़े संकटों में शामिल ओज़ोन लेयर की परत का पतला होना अगले 40 सालों में रिकवर होने की राह पर दिखाई दे रहा है. पिछले 20 दशकों में खासकर ओज़ोन की परत में छेद ने लोगों को डरा रखा है. बहुत से युवाओं के लिए ओज़ोन में छेद होना ही पर्यावरण संकट का पहला परिचय रहा होगा. लेकिन अब यह नई रिपोर्ट हम सबके राहत की एक सांस लेने का मौका दे सकती है. 

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इस हफ्ते United Nations Environment Program (UNEP) और World Meteorological Organization (WMO) की एक रिपोर्ट आई है, जिसमें Scientific Assessment of Ozone Depletion: 2022 शीर्षक से यह रिसर्च छापी गई है. इस रिपोर्ट के पीछे यूनाइटेड नेशंस के वैज्ञानिकों का भी हाथ है. यह रिपोर्ट हर चार सालों पर छापी जाती है.

ओज़ोन लेयर की रिकवरी पर क्या कहती है ताजा रिपोर्ट?

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि Montreal Protocol के तहत हो रही कोशिशों से स्ट्रेटोस्फेरिक ओज़ोन की परत (stratospheric ozone layer) धीरे-धीरे रिकवर हो रही है, क्योंकि इसको सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाले हवा में तैरने वाले केमिकल्स क्लोरोफ्लोरोकार्बन और halons की मात्रा कम हुई है. इस परत पर बुरा असर डालने वाले ऐसे सब्सटेंस में लगभग 99% धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं. पृथ्वी को चारों ओर से घेरे रहने वाली 9-18 मील ऊंची परत है ओज़ोन. ये इंसानों को सूरज से निकलने वाली खतरनाक अल्ट्रावॉयलेट किरणों से बचाती है. लेकिन इसमें पिछले कई दशकों से थिनिंग देखी जा रही थी, यानी कि यह परत अपनी मोटाई खो रही थी. स्किन कैंसर, कैटेरेक्ट के मामले बढ़ना, कृषि उत्पादकता कम होना और मरीन इकोसिस्टम में गड़बड़ी पैदा होना, जैसे इसके कई बुरे नतीजों में शामिल हैं.

UNEP ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि "अगर मौजूदा पॉलिसी ऐसे ही काम करती रहती हैं तो अंटार्कटिक के ऊपर ओज़ोन परत उस लेवल पर चली जाएगी, जो 1980 में था (जब सबसे पहले ओज़ोन परत में छेद का पता चला था.) आर्कटिक में 2045 तक और बाकी दुनिया के लिए 2040 तक यह रिकवरी पूरी हो जाएगी." इसमें यह भी कहा गया है कि नई स्टडी में पुराने आकलनों को बल मिला है कि मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के अनुपालन के कारण ओज़ोन को नुकसान पहुंचाने वाले सब्सटेंस में उत्सर्जन में कमी से ग्लोबल वॉर्मिंग में राहत मिलेगी. 

WMO के सेक्रेटरी जनरल Petteri Taalas ने कहा कि "ओज़ोन का यह एक्शन क्लाइमेंट एक्शन में बड़ा उदाहरण है. हमारी कोशिशों से ओज़ोन को नुकसान पहुंचाने वाले केमिकल खत्म हो रहे हैं, और यह दिखाता है कि हम जीवाश्म ईंधन, ग्रीनहाउस गैसों को घटाने और बढ़ते तापमान को रोकने के लिए क्या कर सकते हैं और हमें तुरंत प्रभाव से क्या करना चाहिए."

क्या है Montreal Policy?

साल 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर हुए थे, जिसमें 46 देशों ने हिस्सा लिया था. यह 1989 में 1 जनवरी को लागू हो गया था. इसमें 1999 तक दुनिया भर में क्लोरोफ्लोरोकार्बन उत्सर्जन में 50% की कमी लाने का लक्ष्य रखा गया था. तबसे अबतक इस प्रोटोकॉल में लगातार कई संशोधन किए जा चुके हैं और कुल देशों की संख्या 200 तक हो चुकी है.

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