एक तरफ भारत का चीन के साथ सीमा को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है. साल 2020 में लद्दाख के गलवान में जो कुछ हुआ, उससे लगा कि जिस चीन ने साल 1962 में भारत के साथ युद्ध लड़ा था, उससे एक बार फिर लड़ाई हो सकती है. वहीं दूसरी ओर, इस बात की भी आशंका है कि चीन की तरफ से शांघाई या उसके आस-पास बने स्मार्टफोन के फैलते बाजार पर भारतीयों की निर्भरता बढ़ती जा रही है. सिर्फ इतना ही नहीं, अभी और भी बहुत कुछ है.

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पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार मेक इन इंडिया के तहत ग्लोबल निवेशकों को आकर्षित करने की पूरी कोशिश कर रही है. इसका मकसद है कि भारत को एक आत्मनिर्भर देश बनाया जाए. ताजा खबर ये है कि लैपटॉप के आयात महंगे होने वाले हैं, क्योंकि भारत घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना चाहता है. भारत अभी इस बात का फायदा उठाना चाहता है कि मल्टीनेशनल कंपनियां अन्य देशों में भी अपनी क्षमता को बढ़ाना चाहती हैं. इसकी वजह ये है कि बीजिंग अब पश्चिमी देशों के लिए आर्थिक और मिलिट्री दोनों ही मुद्दों पर खतरा बनता जा रहा है.

हालांकि, मुझे हाल ही में पता चला कि चीन गलत तरीके से सस्ते और खराब क्वालिटी के सामान तेजी से भारत में भेज रहा है, जिनकी अक्सर जांच भी नहीं होती है. कई बार इसे अथॉरिटीज की तरफ से जान-बूझ कर नजरअंदाज कर दिया जाता है, क्योंकि अगर आयात घटता है तो उससे होने वाला नुकसान मेक इन इंडिया से होने वाले फायदे से कहीं ज्यादा होगा.

विश्व व्यापार संगठन के अनुसार डंपिंग उस स्थिति को कहते हैं जब कोई देश अपने यहां बिकने वाली कीमत से भी कम दाम में उस प्रोडक्ट को दूसरे देश को बेचने के लिए निर्यात करता है. यह अक्सर तब किया जाता है जब कोई बिजनेस अपने प्रतिद्वंद्वी को खत्म करना चाहता है या फिर जब आयातक बाजार में उस प्रोडक्ट की जरूरत का फायदा उठाकर उसे भुनाना चाहता है.

सबसे पहले तो जिस दुनिया में WTO यह सुनिश्चित कर रहा होता है कि कोई बिजनेस धांधली ना करे, वहां पॉलिसी-मेकर्स और एडमिनिस्ट्रेटर्स के लिए यह बहुत ही मुश्किल है कि वह पर्याप्त और ऑथेंटिक डेटा हासिल कर पाए. यही वजह है कि इससे निपटने के लिए वह कोई इंपोर्ट ड्यूटी नहीं लगा पाते. अगर डेटा हासिल हो भी जाता है, तो भी यह मुश्किल स्थिति होगी. इसे लेकर भारत में वाणिज्य और वित्त मंत्रालय की तरफ से एक कॉस्ट-बेनेफिट एनालिसिस की गई थी. यह एनालिसिस दिखाती है अगर पर्याप्त और ऑथेंटिक डेटा हासिल कर भी लिया जाता है तो होगा ये कि कुछ चीनी लोग भारत की इकनॉमी का एक हिस्सा भी अपने साथ लेकर चले जाएंगे. 

तेजी से बढ़ रही इंटरकनेक्टेड दुनिया में, जहां ग्लोबलाइजेशन करीब 40 सालों से चला आ रहा है, अचानक से कोई उठकर राष्ट्रभक्त नहीं हो सकता है. ऐसे में ये ध्यान रखने की जरूरत है कि जिसके साथ आप हैं, हो सकता है कि वह हमेशा या कम से कम किसी-किसी मौके पर दुश्मन की तरह देखा जाता हो.

मैं इसे Bollywood Climax Syndrome कहता हूं. अक्सर ही पुरानी हिंदी फिल्मों में एक लड़ाई का सीन होता है, जिसमें हीरो गुड़ों से लड़ रहा होता है, लेकिन पता चलता है कि विलेन ने हीरो के कुछ रिश्तेदारों जैसे मां-बहन को किडनैप कर लिया होता है. ऐसे में वह हीरो को ब्लैकमेल करने लगता है. अब अगर चीन को विलेन मान लें तो उसके साथ लड़ना भारत की अर्थव्यवस्था के लिए कम से कम अस्थाई तौर पर तो नुकसानदायक साबित हो ही सकता है.

मुझे हाल ही में एक थिंक-टैंक Centre for Digital Economy Policy Research की तरफ से कुछ रिपोर्ट भेजी गईं. ये रिपोर्ट दिखाती हैं कि कॉमर्स मिनिस्ट्री और कई बार वित्त मंत्रालय लीगल एंटी-डंपिंग क्लेम्स को रिजेक्ट करता रहा है. मैंने मंत्रालय के मेरे कुछ सूत्रों से बात की और मुझे बताया गया कि यह सच हो सकता है, लेकिन दिक्कत इससे कहीं ज्यादा बड़ी है. ऐसा इसलिए क्योंकि बहुत सारी ऐसी इंडस्ट्री हैं, जो चीन से आने वाले प्रोडक्ट्स को कच्चे मान या इनपुट मटीरियल की तरह इस्तेमाल करती हैं और अगर इन चीजों पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी लगा दी जाती है तो इससे उनके बिजनेस बहुत नुकसान झेलना पड़ेगा. इनमें से अधिकतर इंडस्ट्री छोटी या मध्यम हैं, जिनके चलते बहुत बड़ी मात्रा में रोजगार भी पैदा होता है. अभी और ज्यादा नौकरियां पैदा करने और महंगाई को नीचे रखने की जरूरत है. भारत के 5जी टेलिकॉम रिवॉल्यूशन को चीनी इनपुट से ही मदद मिल रही है. बहुत सारे यूट्यूबर्स घर बैठे-बैठे चाइनीज मोबाइल से वीडियो बनाकर मोटी कमाई कर रहे हैं. 

इस हफ्ते भारत के घरेलू फाइबर ऑप्टिक मैन्युफैक्चरर्स लिए एक अच्छी खबर आई है, जो गलत तरीके से चीन से होने वाले आयात की आलोचना कर रहे थे. वित्त मंत्रालय ने Directorate-General of Trade Remedies की तरफ से आए एक एक्शन लेने के सुझाव पर रोक लगा दी है. इसके तहत DGTR ने जांच करने के बाद चीन, कोरिया और इंडोनेशिया से आने वाले ऑप्टिकल फाइबर पर इंपोर्ट ड्यूटी लगाने का सुझाव दिया था. लेकिन क्या आपको पता है कि अगर ऑप्टिकल फाइबर लॉबी बहुत ताकतवर है तो टेलिकॉम सर्विस प्रोवाइडर लॉबी भी कम से कम इतनी ताकत तो रखती ही है कि आपके इंटरनेट का बिल बढ़ सकता है और उसका असर सब पर होगा. देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले में आगे क्या होगा. ऑप्टिक फाइबर तो इस खेल में अजगर की पूंछ भर है.

C-Dep की रिसर्च के अनुसार DGTR के करीब 61 फीसदी सुझावों को सितंबर 2020 से अक्टूबर 2022 के बीच में रिजेक्ट कर दिया गया, जबकि यह आंकड़ा 1991 से लेकर अगस्त 2020 तक 4करीब 0.67 फीसदी ही था. ये सुनने में काफी अजीब लग रहा होगा, है ना?

चीन से होने वाले खतरे से निपटने के लिए भारत तो लंबी अवधि की रणनीति तैयार करने की जरूरत है और किसी ने किसी को इसे समझना होगा. सरकार को एक रोडमैप तैयार करना होगा कि ड्रैगन से आगे कैसे निकला जाए. बॉलीवुड फिल्मों में हीरो की तरफ से कोई न कोई स्मार्ट पैंतरेबाजी जरूर की जाती है, ताकि विलेन को हराया जा सके. कई बार तो एक बलिदान तक देना पड़ता है. यह स्थिति के हिसाब से निर्भर करता है कि क्या करना है. लेकिन अगर हमेशा नहीं तो अधिकतर वक्त ऐसा होता है कि हैप्पी एंडिंग होती है. वाणिज्य और वित्त मंत्रालयों को बॉलीवुड स्क्रिप्टराइटर्स से ऐसे पैंतरे सीखने की जरूरत है.

मेरा मानना है कि चीन पर निर्भर इन छोटी इंडस्ट्रीज को फाइनेंस या मार्केटिंग सपोर्ट या किसी तरह के टैक्स बेनेफिट देकर वैकल्पिक इंसेंटिव देने की जरूरत है. यह एक अव्यवस्थित बिजनेस है, जिसमें बहुत सारा डेटा और डिटेल है. लेकिन आपको चीजें समझ आ ही जाएंगी. उम्मीद है कि ऑप्टिक फाइबर की कहानी एक अच्छी शुरुआत साबित होगी.