Autism एक डेवलपमेंटल डिसएबिलिटी है जो बच्चों के दिमाग में बदलाव की वजह से होता है. इस समस्‍या का मेडिकल नाम ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (Autism Spectrum Disorder- ASD) है.  आमतौर पर ASD के लक्षण बच्‍चों में दो-तीन साल की उम्र में नजर आने लगते हैं. Centers for Disease Control and Prevention के अनुसार ऑटिज्‍म से पीड़‍ित बच्‍चों का व्‍यवहार, कम्‍यूनीकेशन, इंटरेक्‍शन और सीखने की क्षमता ज्‍यादातर दूसरे लोगों से अलग होती है. 

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जैसे- ASD से ग्रसित कुछ लोगों में एडवांस कन्‍वरसेशन स्किल हो सकते हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे हो सकते हैं जो ठीक से बोल भी न सकें. कुछ लोगों को रोजमर्रा के सामान्‍य कामों में भी दूसरों की मदद की जरूरत हो सकती है, वहीं कुछ लोग बिना किसी की हेल्‍प के काम कर सकते हैं. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार, दुनियाभर में हर 100 बच्चे में से 1 बच्चा ऑटिज्म से पीड़‍ित है. बच्‍चों को होने वाली इस बीमारी के प्रति लोगों को संवेदनशील बनाने, पीड़ित लोगों को सशक्त और समर्थ बनाने और इस बीमारी को लेकर लोगों को जागरुक करने के मकसद से हर साल 2 अप्रैल को  वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे मनाया जाता है. आइए आपको बताते हैं इस बीमारी से जुड़ी खास बातें.

ये लक्षण आते हैं सामने

  • एक ही एक्शन बार-बार दोहराना, जैसे बैठे-बैठे हिलते रहना, एक ही शब्द को बार-बार दोहराना
  • देर से बोलने का विकास
  • बुलाने पर जवाब न देना
  • लोगों से बात करते समय उनसे नजरें न मिलाना
  • लोगों की बात समझने में दिक्‍कत होना
  • चुनिंदा चीजों में दिलचस्पी लेना
  • लोगों की बातों को अनसुना करना
  • फिजिकल टच पसंद न करना
  • रोबोटिक या फ्लैट आवाज में बात करना
  • ज्यादा तेज आवाज से परेशान होना या चिढ़ना
  • अकेले रहना ज्यादा पसंद करना
  • लोगों के साथ रिश्ते न बना पाना

क्‍या है ऑटिज्‍म की वजह

ऑटिज्‍म का कोई सटीक कारण अब तक सामने नहीं आ सका है. ज्‍यादातर विशेषज्ञ आनुवांशिकता और वातावरण को इसकी वजह मानते हैं. अगर आपको बच्‍चे में इस तरह के कोई असामान्‍य लक्षण नजर आते हैं तो फौरन विशेषज्ञ से परामर्श करें. ज्‍यादातर डॉक्‍टर बिहेवियरल टेस्ट की मदद से इसका पता लगाते हैं. ऐसे में कई बार बीमारी का पता लगाने में समय भी लग सकता है.

ऑटिज्‍म का इलाज

मौजूदा समय में ASD का सटीक उपचार नहीं है, लेकिन विशेषज्ञ बिहेवियर थैरेपी, स्‍पीच थैरेपी, ऑक्‍यूपेशनल थैरेपी के जरिए बच्‍चों में इस समस्‍या से जुड़े लक्षणों को कम करने का प्रयास करते हैं. जरूरत पड़ने पर दवा का भी सहारा लेते हैं ताकि ऑटिज्‍म से पीड़‍ित बच्‍चा भी सामान्‍य लोगों की तरह लाइफ जी सके.