2023 Delhi G20 Summit की मेजबानी पहली बार भारत करने जा रहा है. इसके लिए तैयारियां हो चुकी हैं. दिल्‍ली को दुल्‍हन की तरह से सजाया गया है. मुख्‍य कार्यक्रम 9 और 10 सितंबर को प्रगति मैदान में भारत मंडपम (Bharat Mandapam) में होगा. इसके लिए भारत मंडपम को बहुत खूबसूरती से सजाया गया है. सोशल मीडिया पर इसके तमाम वीडियोज वायरल हो रहे हैं. आपने भी इसके वीडियो और फोटोज देखे होंगे तो भारत मंडपम में लगी नटराज की प्रतिमा (Natraj Statue in Bharat Mandapam) ने आपका ध्‍यान जरूर खींचा होगा. क्‍या आप जानते हैं कि भारत मंडपम में नटराज की प्रतिमा क्‍यों लगाई गई है और इसकी खासियत क्‍या है? यहां जानिए इसके बारे में.

क्‍यों लगाई गई है नटराज की प्रतिमा

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भारत मंडपम में नटराज की प्रतिमा लगाने का धार्मिक और ऐतिहासिक कारण है. दरअसल नटराज का ये स्‍वरूप शिव के आनंद तांडव का प्रतीक है. शिव नटराज की प्रतिमा को अगर ध्‍यान से देखें तो आपको भगवान शिव की नृत्‍य मुद्रा साफतौर पर नजर आएगी, साथ ही वो एक पांव से दानव को दबाए हैं. ऐसे में शिव का ये स्‍वरूप बुराई के नाश करने और नृत्‍य के जरिए सकारात्‍मक ऊर्जा का संचार करने का संदेश देता है. ऐसे में यहां आने वाले सभी मेहमानों को ये प्रतिमा ब्रह्मांडीय ऊर्जा, रचनात्मकता और शक्ति का महत्वपूर्ण प्रतीक के तौर पर दिखेगी.

हाल ही में पीएम नरेंद्र मोदी ने भी भारत मंडपम में लगी नटराज प्रतिमा का जिक्र करते हुए बताया था कि भारत मंडपम में भव्य नटराज प्रतिमा हमारे समृद्ध इतिहास और संस्कृति के पहलुओं को जीवंत करती है. जब दिल्‍ली में दुनिया के तमाम राष्‍ट्रप्रमुख और प्रतिनिधि जी20 शिखर सम्मेलन के लिए दिल्‍ली में इकट्ठे होंगे, तो ये मूर्ति भारत की सदियों पुरानी कलात्मकता और परंपराओं के प्रमाण के तौर पर नजर आएगी.

अष्‍टधातु की बनी है ये प्रतिमा

भारत मंडपम में लगी ये नटराज की प्रतिमा दुनिया में सबसे ऊंची नटराज प्रतिमा बताई जाती है. ये 28 फीट ऊंची, 18 टन वजनी है और इसे अष्‍टधातु से तैयार किया गया है. अष्‍टधातु में सोना-चांदी, रांगा, तांबा, पीतल, जस्ता, लोहा और कांसा होता है. हर धातु के अपने अलग गुण हैं. ज्‍योतिष में अष्‍टधातु का काफी महत्‍व माना गया है. ज्‍योतिष के मुताबिकअष्टधातु का संयोजन होने की वजह से कोई भी प्रतिमा अपने केंद्र के चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है. मन को शांत करती है और निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाती है. यही वजह है कि देश के प्राचीन मंदिरों में अष्‍टधातु की मूर्तियां लगाई जाती थीं.

तमिलनाडु के शिल्पकार ने बनाई ये मूर्ति

दिल्‍ली के भारत मंडपम में लगी इस मूर्ति को तमिलनाडु के शिल्पकार राधाकृष्णन ने अपने भाई स्वामीनाथन के साथ मिलकर बनाया है. इसे बनाने में उन्‍हें करीब 6 से 7 महीने का समय लगा. प्रसिद्ध मूर्तिकार राधाकृष्णन की 34 पीढ़ियां चोल साम्राज्य काल से मूर्तियां बनाती आ रही हैं. दिल्ली में स्थापित इस मूर्ति को 2500 किमी दूर तमिलनाडु से ट्रक द्वारा यहां तक लाया गया है, जिसके लिए खास तौर से ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया था.

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