Baba Saheb Ambedkar: डॉ भीम राव आंबेडकर, भारतीय संविधान के मुख्य वास्तुकार के रूप में जाने जाते हैं. 6 दिसंबर, 1956 को उनका निधन हो गया था और उनकी पुण्यतिथि को देश में महापरिनिर्वाण दिवस (Mahaparinirvan Diwas) के रूप में मनाया जाता है. बाबा साहेब की दूरदर्शी सोच और योगदान ने भारत की सामाजिक और कानूनी नींव स्थापित की थी. बाबा साहेब का जन्म महाराष्ट्र की महार जाति के एक हिन्दू परिवार में हुआ था. उन्होंने अमेरिका में कोलंबिया यूनिवर्सिटी (Columbia University) और यूनाइटेड किंगडम में लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स (London School of Economics) से अपनी शिक्षा प्राप्त की थी. वे नौ भाषाएं जानते थे. उनकी 20 पन्नों की आत्मकथा, वेटिंग फॉर ए वीसा (Waiting for a Visa) को कोलंबिया यूनिवर्सिटी में एक पाठ्यपुस्तक के रूप में इस्तेमाल किया गया है. 

बाबा साहेब का देश के लिए योगदान

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बाबा साहेब ने समाज में फैले छुआछूत, दलितों, महिलाओं और मजदूरों से भेदभाव जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज़ बुलंद की और इस लड़ाई को धार दी. उनका मानना था कि इंसानों का लक्ष्य अपनी सोच में लगातार सुधार लाना होना चाहिए. 

भीम राव आंबेडकर विदेश जाकर अर्थशास्त्र डॉक्टरेट (Doctorate in Economics) की डिग्री हासिल करने वाले पहले भारतीय थे. 1926 में भारत वापसी के बाद उन्हें मुंबई की विधानसभा का सदस्य चुना गया. फिर आज़ाद भारत के वे पहले कानून मंत्री (Law Minister) बनें. साल 1990  भारत में उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था. 

आज उनकी 66वीं पुण्यतिथि पर आइए जानते हैं उनके सुविचार 

1. बाबा साहेब कहते थे कि किसी भी समाज की प्रगति मैं उस समाज में महिलाओं की प्रगति से आंकता हूं. 

I measure the progress of a community by the degree of progress that women have achieved.

2. धर्म को लेकर उनका कहना था कि उनको वो धर्म पसंद है जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सिखाता है. 

I like the religion that teaches liberty, equality, and fraternity.

3. वे कहते थे कि सामाजिक स्वतंत्रता के बिना कानून द्वारा दिए गए किसी भी तरह के स्वंत्रता के कोई मायने नहीं होते. 

So long as you do not achieve social liberty, whatever freedom is provided by the law is of no avail to you.

4. एक महान व्यक्ति और प्रतिष्ठित व्यक्ति से इस मायने में भिन्न होता है कि वह समाज का सेवक बनने के लिए तैयार होता है.

A great man is different from an eminent one in that he is ready to be a servant of society.

5. समानता के लिए उनका कहना था कि शायद अभी वो एक कल्पना हो सकती है लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग प्रिंसिपल के रूप में स्वीकार करना चाहिए.

Equality may be fiction but nonetheless one must accept it as a governing principle.

 

 

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