बाजार की पूरी नजर अब कंपनियों के तिमाही नतीजों पर है. लॉकडाउन की वजह से डर था कि ज्यादातर कंपनियों के लिए पहली तिमाही पूरी तरह से कमजोर रहेगी. लेकिन, रनिंग बिजनेस का एक कॉन्सेप्ट होता है. आपका बिजनेस खत्म नहीं होगा चलता रहेगा और चलते हुए बिजनेस में मीटर चलता रहता है. जितना डर था, उतने खराब अपडेट्स नहीं आ रहे हैं. हालांकि, ये एक सैंपल है, असली नतीजों पर ही नजर रखनी चाहिए. लेकिन, फिलहाल इससे थोड़ा कॉन्फिडेंस बढ़ाने वाले हैं. 

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

ज़ी बिज़नेस के मैनेजिंग एडिटर अनिल सिंघवी के मुताबिक, ये तिमाही उतनी खराब नहीं है, लेकिन अगर आने वाले तिमाही में प्रदर्शन ऐसा ही रहता है तो अच्छा होगा. क्योंकि, कई सारे बिजनेस ऐसे हैं, जो लॉकडाउन खुलने के बाद जब सही में पेमेंट का लेनदेन करना होगा. बिजनेस करने वालों के लिए ये वक्त आसान नहीं है. उम्मीद करते हैं कि जितने नुकसान का डर है कोरोना से वो न हो और उससे बच जाएं. दूसरी बात फंड रेसिंग, 2008 में कॉरपोरेट्स को पैसा मिल रहा था बाजारों से तो वो वैल्यूऐशंस को लेकर या एक्सेल शीट बनाकर ले जाते थे फंड्स के पास. आप जिस वैल्यूएशन पर मेरी इक्विटी लेना चाहते हैं वो तो बहुत सस्ती है. मैं तो इससे कहीं ऊपर दूंगा.

अनिल सिंघवी के मुताबिक, कॉरपोरेट्स के लिए एक सीखने वाली बात यह है कि बाजार जब आपको पैसा दे रहा तो ले लेना चाहिए. फिलहाल, जो कॉरपोरेट इंडिया कर रहा है वो बहुत अच्छा है. इसकी दो बड़ी वजह है. पहला- मार्केट काफी बुलिश है. पैसा जुटाना आसान हो, फंड्स के पास लिक्विडिटी हो. ग्लोबली आपके पास पैसों की कमी न हो तो पैसा मिल रहा है तो ले लेना चाहिए. दूसरा- इक्विटी ही क्यों? इस वक्त जो माहौल है उसमें डेट मिलना ज्यादा मुश्किल है. ये माहौल काफी कम होता है जब कर्ज मिलना मुश्किल हो और इक्विटी मिलना आसान हो. इक्विटी की कॉस्ट हमेशा ज्यादा होती है. इक्विटी में सारे खर्चे निकालने के बाद जो डिविडेंड तो आपके लिए भारी भरकम कमाई होनी चाहिए. तभी डिविडेंड दे पाएंगे. इक्विटी फंड रेसिंग प्रोग्राम है. 

अनिल सिंघवी के मुताबिक, बहुत कम वक्त ऐसा होता है कि जब डेट के मुकाबले में इक्विटी से फंड जुटाना आसान हो. इस वक्त NBFCs और बैंक ने हाथ खींच रखे हैं. चाहे लिक्विडिटी की वजह से या फिर माहौल और सेंटीमेंट्स की वजह से. ऐसे में कंपनियों के लिए काफी मुश्किल काम है कि डेट के जरिए पैसा जुटा पाएं. अगर डेट के जरिए पैसा जुटाना मुश्किल हो रहा तो इक्विटी के जरिए लिक्विडिटी है. भले ही आपको बहुत ज्यादा जरूरत न हो. लेकिन, आपको पता है इक्विटी अच्छे वैल्यूएशन पर आप दे पा रहे हैं, आपको पता है कि अगले 6 महीने काफी चुनौतियों से भरे हैं. शेयरों के वैल्यूएशन आगे रहेंगे या नहीं रहेंगे. 12 महीने बाद हमें पैसों की जरूरत है और मार्केट मजबूत है तो इस वक्त के लिए इससे अच्छा कुछ नहीं है. 

ज़ी बिज़नेस LIVE TV यहां देखें

कॉरपोरेट इंडिया को सलाम

अनिल सिंघवी ने कहा कि वो कॉरपोरेट इंडिया को सलाम करते हैं कि वो समझदारी के साथ जो पैसा मिल रहा है वो ले रहे हैं. अब यहां निवेशकों की समझ की बात है कि क्या वो सही कंपनियों में सही पैसा लगा रहे हैं, क्योंकि कंपनियों के लिए तो अच्छा है. लेकिन, क्या निवेशकों का पैसा बनेगा और बनेगा तो कितना समय लगेगा? कितना होल्ड करना पड़ सकता है? जो निवेशक इन कंपनियों में पैसा लगा रहे हैं तो पैसा तो बनेगा लेकिन कितने वक्त में बनेगा इसका अंदाजा लगाना मुश्किल काम है. तो इन फंड रेसिंग प्रोग्राम में आपको लंबे समय के लिए निवेश करना होगा.