Mutual Fund SIP Tips: शेयर बाजार में इन दिनों उतार चढ़ाव बना हुआ है. हालांकि सेंसेक्स और निफ्टी में पिछले 1 साल में अच्छी खासी तेजी आ चुकी है और दोनों इंडेक्स अपने रिकॉर्ड हाई के आस पास ही बने हुए हैं. वोलैटिलिटी घरेलू बाजारों में ही नहीं, ग्लोबल मार्केट में भी है, जिससे इक्विटी से जुड़े निवेश पर असर आ रहा है. एक ओर कई स्टॉक का वैल्युएशन हाई है, दूसरी ओर उतार चढ़ाव भी है, ऐसे में बहुत से निवेशकों के मन में बाजार में पैसे लगाने को लेकर कनफ्यूजन हो सकता है. हालांकि एक्‍सपर्ट का कहना है कि मौजूदा दौर में ऐसी कोई खास वजह नहीं है कि SIP को पॉज किया जाए. पुराने निवेशकों को SIP जारी रखनी चाहिए, वहीं नए हैं तो गिरावट पर निवेश शुरू कर सकते हैं.

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बता दें कि पिछले महीने 7 जून को सेंसेक्स ने रिकॉर्ड हाई बनाया था. जिसके बाद से बाजार दायरे में फंसा हुआ दिख रहा है. इस दौरान ग्लोबल मार्केट में भी इसी तरह की स्थिति है. दुनियाभर में कोविड 19 को लेकर अभी कुछ न कुछ अनिश्चितता बनी हुई है. वहीं घरेलू स्तर पर कारोना की तीसरी लहर की आशंका ने भी निवेशकों को सतर्क किया है. इस वजह से बाजार में अभी रैली थमी हुई है.

निवेशकों को क्या करना चाहिए

BPN फिनकैप के डायरेक्टर एके निगम का मानना है कि इस स्थिति में सीधे इक्विटी की बजाए म्यूचुअल फंड एसआईपी का रास्ता चुनना सबसे बेहतर विकल्प है. अभी कम पैसों के साथ निवेश शुरू करना चाहिए. आगे जब बाजार में रिकवरी शुरू हो तो धीरे धीरे कर एसआईपी बढ़ाना चाहिए या टॉप अप कराना चाहिए. देश में मैक्रो कंडीशन बेहतर हो रहे हैं. डिमांड धीरे धीरे बढ़ रही है, जिससे कंपनियों का प्रदर्शन बेहतर होगा. इससे अर्थव्यवस्था में सुधार की उम्मीद बन रही है. ऐसा होने पर बाजार में भी तेजी आएगी.

उनका कहना है कि एसआईपी के पहले कुछ बातों पर ध्यान रखना जरूरी है. एसआईपी शुरू करने से पहले लक्ष्य जरूर तय कर लें. इसके बाद अपने लक्ष्य और अपने रिस्क लेने की क्षमता के आधार पर बेहतर एसआईपी प्लान का चयन करें. उनका कहना है कि रेगुलर बेसिस पर निवेश कर रहे हैं तो बाजार की वोलैटिलिटी का ज्यादा असर नहीं होगा. लंबे समय में एवरेजिंग का फायदा मिलता है. हालांकि समय-समय पर अपने निवेश का आंकलन करते रहना चाहिए.

मौजूदा समय में दूसरे विकल्प

एसआईपी के अलावा इस समय निवेशक एसेट अलोकेशन स्‍ट्रैटेजी भी चुन सकते हैं, जहां एक साथ के इक्विटी के अलावा डेट फंड और बॉन्ड में निवेश का मौका मिलता है. यहां भी ध्यान देना चाहिए कि रिस्क लेने की क्या क्षमता है. उसी आधार पर इक्विटी और डेट का रेश्यो तय करना चाहिए. एसेट अलोकेशन स्‍ट्रैटेजी में पोर्टफोलियो अपने आप डाइवर्सिफाई हो जाता है, जिससे जोखिम कम होता है.