जब भी बात शेयर बाजार (Share Market) की आती है तो आप अक्सर फ्यूचर एंड ऑप्शन (F&O) का नाम सुनते होंगे. यूट्यूब से लेकर तमाम सोशल मीडिया पर आप देखते होंगे कि कैसे एक ही दिन में कुछ लोग चंद हजार रुपये लगाकर लाखों रुपये का मुनाफा कमाने का दावा करते हैं. दरअसल, यह सब मुमकिन होता है फ्यूचर एंड ऑप्शन ट्रेडिंग (Future & Option Trading) से. अब इसमें इतना पैसा बनता है तो फिर सेबी (Sebi) ये क्यों कहता है कि इसमें हर 10 में से 9 लोग नुकसान झेलते हैं? इसका मतलब तो ये हुआ कि 90 फीसदी लोगों को नुकसान होता है. जी, बिल्कुल होता है. फ्यूचर एंड ऑप्शन में ही आप से सुनते हैं कि लोगों के लाखों रुपये डूब गए या कुछ लोग कंगाल तक हो गए. आइए समझते हैं ये फ्यूचर एंड ऑप्शन ट्रेडिंग होती क्या है और इसमें कैसे होता है फायदा-नुकसान.

सबसे पहले समझना होगा डेरिवेटिव्स का मतलब

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फ्यूचर और ऑप्शन, ये दोनों ही डेरिवेटिव्स कहे जाते हैं. डेरिवेटिव्स उन्हें कहा जाता है, जिनकी वैल्यू किसी दूसरे असेट से डिराइव होती है या तय होती है. शेयर बाजार में ये डेरिवेटिव्स किसी स्टॉक के हो सकते हैं या फिर किसी इंडेक्स के हो सकते हैं. ऐसे में जैसे-जैसे स्टॉक या इंडेक्स की वैल्यू बढ़ती-घटती है, उनके डेरिवेटिव्स यानी फ्यूचर ऑप्शन की वैल्यू में भी बदलाव होता है. 

अब समझते हैं क्या होती है फ्यूचर ट्रेडिंग

फ्यूचर ट्रेडिंग के तहत आप भविष्य की किसी कीमत पर ट्रेडिंग करते हैं. इस डील में आप आज ही भविष्य की कीमत पर शेयर खरीदने की डील कर लेते हैं. इसके बाद भविष्य में तय तारीख पर आपको वह शेयर उसी कीमत पर मिलता है, जिस पर आपने उसे खरीदने की डील की होती है. देखा जाए तो फ्यूचर ट्रेडिंग पुराने वक्त की फॉरवर्ड ट्रेडिंग का ही बेहतर हो चुका स्वरूप है. बस फर्क इतना है कि फॉरवर्ड ट्रेडिंग ऑफलाइन होती थी और उसमें कोई ब्रोकर नहीं होता था, जिससे अक्सर लोग डील तोड़ देते थे. वहीं फ्यूचर ट्रेडिंग ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर होती है और इसमें ब्रोकर दो पार्टियों के बीच की कड़ी होता है. ऐसे में कोई भी पार्टी डील को छोड़कर भाग नहीं सकती है. 

फ्यूचर ट्रेडिंग में आपको पूरा लॉट खरीदना होता है, जिसकी वजह से एक लॉट की कीमत ही कई लाख रुपये तक हो जाती है. बता दें कि फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट खरीदने के लिए आपको शेयर के पूरे दाम नहीं देने होते हैं, बल्कि एक मार्जिन का भुगतान करना होता है. यहां मिलने वाली लीवरेज 2-3 गुना तक होती है. यानी आप 1 लाख रुपये में 2-3 लाख रुपये के शेयर खरीद सकते हैं. यह लीवरेज अलग-अलग स्टॉक पर अलग-अलग भी हो सकती है.

उदाहरण के लिए मान लेते हैं कि किसी कंपनी का शेयर आज 100 रुपये का है और इसके फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की कीमत 120 रुपये है. वहीं आपको लगता है कि इसकी कीमत भविष्य में 200 रुपये तक हो सकती है तो आप उसे खरीद लेंगे. आप जब फ्यूचर की तय तारीख पर शेयर खरीदेंगे, तो वह आपको 120 रुपये के हिसाब से ही मिलेंगे, भले ही कीमत 200 रुपये हो जाए या 80 रुपये ही क्यों ना रह जाए. हालांकि, अधिकतर लोग उस फ्यूचर डेट तक का इंतजार नहीं करते हैं और उससे पहले ही सही वक्त देखकर डील सेटल कर लेते हैं.

क्या होती है ऑप्शन ट्रेडिंग?

ऑप्शन ट्रेडिंग एक तरह से फ्यूचर ट्रेडिंग का ही थोड़ा बदला हुआ रूप होता है. जैसा कि इसका नाम है, इसमें आपको एक ऑप्शन यानी विकल्प मिलता है. यह विकल्प होता है डील छोड़ने का. ऑप्शन ट्रेडिंग में लॉट खरीदने की जरूरत नहीं होती, बल्कि आप अपनी क्षमता के हिसाब से ऑप्शन खरीद सकते हैं. इसमें आप एक प्रीमियम देकर डील करते हैं और भविष्य की तय तारीख पर आपको उसी दाम पर शेयर मिल जाते हैं, जो पहले से तय होता है. अगर आप पहले ऑप्शन खरीदते हैं फिर बेचते हैं, तो उसे कॉल ऑप्शन कहा जाता है. वहीं अगर आप पहले ऑप्शन बेचते हैं और फिर उसे खरीदते हैं यानी शॉर्ट सेलिंग करते हैं तो उसे पुट ऑप्शन कहा जाता है.

एक उदाहरण से समझते हैं. मान लीजिए कि किसी ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट की कीमत 100 रुपये है और इसका ऑप्शन खरीदने के लिए आपको 10 रुपये का प्रीमियम चुकाना होता है. ध्यान रहे कि शेयर के दाम बढ़ें या घटें, आपने ये जो 10 रुपये का प्रीमियम दिया है, वह आपको वापस नहीं मिलेगा. अब मान लेते हैं कि भविष्य की तय तारीख पर शेयर का भाव 150 रुपये हो जाता है तो भी आपको वह 100 रुपये में ही मिलेगा. यानी 100 रुपये शेयर की कीमत और 10 रुपये प्रीमियम काटने के बाद आपको 40 रुपये प्रति शेयर का मुनाफा होगा. इस तरह आपने सिर्फ 10 रुपये खर्च किए आपको मुनाफा हो गया 40 रुपये का.

वहीं अगर शेयर का भाव घटकर 50 रुपये रह जाता है तो शेयर खरीदने पर आपको 100 रुपये प्रति शेयर ही चुकाने होंगे. वहीं 10 रुपये का प्रीमियम भी कट चुका है. यानी आपको कुल 110 रुपये चुकाने होंगे, जबकि शेयर की कीमत उस तय तारीख मतलब एक्सपायरी के दिन गिरकर 50 रुपये रह गई है. ऐसे में आपको सिर्फ 10 रुपये प्रति शेयर खर्च करने के बाद ही हर शेयर पर 60 रुपये का नुकसान होगा. इस स्थिति में आपको ये ऑप्शन मिलता है कि आप डील छोड़कर हट जाएं.

फ्यूचर ट्रेडिंग है बहुत खतरनाक

शेयर के दाम आपकी उम्मीद से उल्टा चलने पर ऑप्शन ट्रेडिंग में तो आपके पास विकल्प होता है कि आप डील छोड़कर निकल जाएं, लेकिन फ्यूचर में ऐसा नहीं होता. अगर आप कोई फ्यूचर ट्रेड करते हैं तो आपको वह एक्सपायरी तक सेटल करना होगा, वरना एक्सपायरी पर डील के तहत तय किए दाम पर आपको शेयर खरीदने होंगे. इस बीच अगर शेयर के दाम आपकी उम्मीद से उल्टी दिशा में जाते हैं तो आपको अतिरिक्त मार्जिन चुकाना होता है, वरना ब्रोकर आपके शेयर बेचकर पैसों की वसूली कर लेगा.

अगर फ्यूचर ट्रेडिंग के तहत आप कोई ट्रेड खरीदते हैं तब तो आपका नुकसान लिमिटेड होता है. क्योंकि कोई शेयर अधिक से अधिक गिरकर 0 हो सकता है यानी 100 फीसदी गिर सकता है. वहीं अगर आप कोई फ्यूचर शॉर्ट करते हैं तो इसमें आपको कितना नुकसान हो सकता है, इसकी कोई सीमा नहीं. ऐसा इसलिए क्योंकि कोई शेयर बढ़ते-बढ़ते कई हजार फीसदी तक बढ़ सकता है और आपका नुकसान लगातार बढ़ता चला जाएगा. यानी मुमकिन है कि सिर्फ 1 लाख रुपये के ट्रेड से आपको 10 लाख रुपये का भी नुकसान हो जाए. जैसे-जैसे आपका नुकसान बढ़ता जाएगा, आपका ब्रोकर आपसी मार्जिन मांगता रहेगा, जो आपको चुकाना ही होगा. हालांकि, आपके पास एक विकल्प ये जरूर है कि आप अपना सौदा एक्सपायरी से पहले ही सेटल कर के अपना ज्यादा नुकसान होने से बचा लें.