आगामी 26 फरवरी को वित्त मंत्री तमाम सेक्टर के स्टार्टअप्स (Startups) से मुलाकात करेंगी. इसमें स्टार्टअप्स को हो रही परेशानियों पर भी बात होगी. पिछले करीब 2 सालों से फंडिंग विंटर (Funding Winter) का दौर चल रहा है, जिसके तहत स्टार्टअप्स को फंडिंग (Funding) मिलना मुश्किल हो गया है. यही वजह है कि बहुत सारे स्टार्टअप्स ने तगड़ी छंटनी की है, कई बंद हुए हैं और कुछ बंद होने के कगार पर पहुंच चुके हैं. Byju's की हालत किसी से छुपी नहीं है, जो दिवालिया होने के कगार पर है. 

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वहीं दूसरी ओर, हाल ही में पेटीएम पर हुए एक्शन ने स्टार्टअप्स को डरा दिया है. पिछले कई महीनों से जीएसटी के चलते तमाम ऑनलाइन गेमिंग स्टार्टअप भी चिंता में हैं. वहीं जोमैटो को भी डिलीवरी चार्ज पर जीएसटी की डिमांड का नोटिस भेजा गया था. ऐसे में स्टार्टअप्स थोड़ी चिंता में हैं. समझते हैं उन्हें कौन-कौन सी परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं और क्या डर उन्हें सता रहे हैं.

एमएसएमई एक्ट 2016 बन रहा मुसीबत

Fleeca के फाउंडर टीकम चंद जैन कहते हैं कि एमएसएमई एक्ट 2016 से बहुत दिक्कतें हो रही हैं, जो छोटे बिजनेस और स्टार्टअप के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. इसके तहत बड़े बिजनेस को 15 दिन के अंदर-अंदर स्टार्टअप या छोटे बिजनेस से लिए प्रोडक्ट या सर्विस का भुगतान करना होता है. अगर ऐसा नहीं होता है तो वह पैसे कंपनी के इनकम टैक्स में जुड़ जाते हैं और फिर सीए ऑडिट में इस बारे में बताता पड़ता है. 

ऐसे में जो कंपनियां 15 दिन में भुगतान नहीं कर पाएंगी, मुमकिन है कि उनमें से बहुत सारी कंपनियां एमएसएमई के साथ बिजनेस करना ही बंद कर देंगी. इससे स्टार्टअप के लिए मौके कम हो जाएंगे और उनकी ग्रोथ पर बड़ा असर पड़ सकता है. वहीं सरकार ने इस नियम से खुद को बाहर रखा है. यानी अगर कोई एमएसएमई या स्टार्टअप सरकार के साथ कोई बिजनेस करता है, तो सरकार 15 दिन के भीतर भुगतान करने के लिए जिम्मेदार नहीं है. इस एक्ट की वजह से स्टार्टअप्स को डर लग रहा है.

इनकम टैक्स के नोटिस से खतरे में पड़ रही फंडिंग

Insurance Samadhan के को-फाउंडर दीपक भुवनेश्वरी उनियाल के अनुसार 90 फीसदी स्टार्टअप पैसों की कमी के चलते बंद होते हैं. सरकार की ओर से बहुत सी स्कीमें चलाई जाती हैं, लेकिन वह बहुत छोटी हैं और बहुत कम लोगों तक सीमित हैं. जब यहां स्टार्टअप को फंडिंग नहीं मिलती तो वह विदेशों का रुख करते हैं. इस तरह स्टार्टअप से होने वाली कमाई का एक हिस्सा विदेशी ले जाते हैं, जबकि अगर सरकार फंडिंग की सुविधा दे तो उसकी भी कमाई हो सकती है.

वहीं इनकम टैक्स डिपार्टमेंट बीच-बीच में नोटिस भेजता है कि जिसने आपके स्टार्टअप में पैसे लगाए हैं, उसकी सारी डिटेल दो. ऐसे में निवेशक भी घबरा जाते हैं, जिससे वह फंडिंग से कतराने लगते हैं, जिससे सबसे ज्यादा नुकसान स्टार्टअप को होता है. अगर सरकार ऐसा करना ही चाहती है तो निवेशक की डीटेल्स जांचने को फंडिंग प्रोसेस का हिस्सा बनाया जा सकता है, जिससे स्टार्टअप के हितों की भी रक्षा होगी. जिस तरह IRDAI ने अपनी इंडस्ट्री की तमाम कंपनियों के साथ बात करने के लिए फोरम तक बना दिया है, उसी तरह रिजर्व बैंक और सेबी को भी कंपनियों से और ज्यादा जुड़ना होगा, ताकि किसी कम्युनिकेशन गैप के चलते कोई बड़ी परेशानी सामने ना आए.

रेगुलेटर्स को ज्यादा क्लीयर होने की जरूरत

PayMe के सीईओ और फाउंडर महेश शुक्ला कहते हैं कि सरकारी सपोर्ट के बिना स्टार्टअप ईकोसिस्टम आगे नहीं बढ़ सकता है. पिछले कुछ सालों से फंडिंग विंटर का दौर चल रहा है. ऐसे में अगर सरकार किसी स्टार्टअप पर एक्शन करती है, तो उसका असर पूरे स्टार्टअप ईकोसिस्टम पर पड़ता है, जिसके चलते फंडिंग से जुड़ी समस्याएं और ज्यादा बढ़ जाती हैं. टैक्सेशन को लेकर स्टार्टअप्स के लिए जो नियम बनाए गए हैं, उन पर और ज्यादा क्लैरिटी की जरूरत है. ग्रांट हो या फंडिंग हो, इन्हें सरकार को एड्रेस करने की जरूरत है. रेगुलेटर जितने ज्यादा क्लीयर होंगे, स्टार्टअप के लिए उतना ही अच्छा है. कई सरकारी एजेंसियां हैं, जिनसे बात कर के क्लैरिटी ही नहीं मिल पाती है. छोटे स्टार्टअप तो इन्हीं चक्करों में घूमते रह जाते हैं.

सरकारी बैंकों पर ध्यान देने की जरूरत

स्ट्रट स्टोर के को-फाउंडर्स विशेष खोसला और श्रुति ढांडा भी मानते हैं कि इस वक्त स्टार्टअप को बहुत सारी चुनौतियां झेलनी पड़ रही हैं. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के इस स्टार्टअप को लोन लेने में बहुत दिक्कतें हुईं. महिला फाउंडर को उसके स्टार्टअप के लिए बिना कोलेट्रल लोन दिया जाता है, लेकिन जब श्रुति और विशेष लोन लेने गए तो उन्हें कोलेट्रल देना पड़ा, वो भी लोन अमाउंट के दोगुने से भी ज्यादा. यह लोन भी उन्होंने एक पीएसयू बैंक से लिया था. ऐसे में श्रुति और विशेष कहते हैं कि ऐसे में सरकार को बैंकों पर और ज्यादा ध्यान देना होगा, वरना स्टार्टअप्स आगे नहीं बढ़ पाएंगे और पैसों की कमी के चलते उनका बिजनेस तक बर्बाद हो सकता है.

कोलेट्रल फ्री लोन की शर्तें प्रैक्टिकल नहीं

ParkMate के को-फाउंडर और सीईओ धनंजय भारद्वाज कहते हैं कि अगर किसी स्टार्टअप को कोलेट्रल फ्री लोन चाहिए तो उसे 3 साल की बैलेंस शीट दिखानी होगी. साथ ही उसका 3 साल से प्रॉफिटेबल होना भी जरूरी है, जबकि टेक्नोलॉजी वाले स्टार्टअप शुरुआत में ही मुनाफे में नहीं आ सकते. सरकार प्रोजेक्ट्स को भी स्टार्टअप्स को रेफर करना चाहिए, ताकि वह आगे बढ़ सकें. अभी सरकार की मंशा और नीति दोनों एक साथ ठीक से बैठ नहीं पा रहे हैं, जिसके चलते दिक्कतें हो रही हैं. 

पार्किंग सेवा मुहैया कराने वाले इस स्टार्टअप को को-फाउंडर धनंजय को सबसे ज्यादा दिक्कतें होती हैं लोकल बॉडीज़ के साथ. गेमिंग सेक्टर पर लगे 28 फीसदी जीसटी से पूरा गेमिंग सेक्टर ही हिल गया है. वहीं अभी भी बिजनेस से जुड़े कामों में बहुत सारे पेपरवर्क होता है, जिससे दिक्कतें आती हैं. जेम पोर्टल पर कई तरह की दिक्कतें आती हैं, जिसकी वजह से पार्कमेट भी उस पर रजिस्टर नहीं हो पा रहा है. धनंजय का मानना है कि सरकार को स्टार्टअप्स से और भी ज्यादा बात करनी चाहिए, जिससे उनकी दिक्कतों के बारे में उन्हें पता चल सके.

रेस्टोरेंट चल रहे हैं डर के साए में

CYK Hospitalities के डायरेक्टर सिमरनजीत सिंह कहते हैं कि अगर फूड एंड बेवरेज इंडस्ट्री के हिसाब से देखें तो इस वक्त तमाम रेस्टोरेंट डर के साए में हैं. इन्हें सबसे बड़ी दिक्कत ये हो रही है कि उन्हें इनपुट क्रेडिट का फायदा नहीं मिलता है. ऐसे में वह कच्चा माल अलग-अलग ऊंचे स्लैब में खरीदते हैं, लेकिन ग्राहकों को सिर्फ 5 फीसदी जीएसटी पर प्रोडक्ट दिए जाते हैं. यही वजह है कि कई सारे रेस्टोरेंट कैश रूट अपनाने लगते हैं. 

रेस्टोरेंट का ऑपरेशनल खर्चा बहुत अधिक है, रेंट बहुत अधिक है, जिसके चलते प्रॉफिटेबिलिटी तक पहुंचना मुश्किल हो रहा है. रीयल एस्टेट की कॉस्ट बहुत अधिक हो गई है, जिसके चलते रेस्टोरेंट्स के लिए सर्वाइव करना मुश्किल हो रहा है. रीयल एस्टेट पर रेगुलेटरी अथॉरटी को थोड़ा सख्ती करनी चाहिए, वरना रेंटल के बोझ तले रेस्टोरेंट दब जाएंगे. करीब 82 फीसदी रेस्टोरेंट रेंटल की वजह से ही बंद हो जाते हैं. वहीं अभी तक 24 घंटे रेस्टोरेंट खोलने को लेकर भी कोई स्पष्ट बात सामने नहीं आई है, जिससे रेस्टोरेंट इंडस्ट्री को काफी दिक्कतें हो रही हैं.

एक जगह दिकक्त से पूरी इंडस्ट्री को लगता है डर

आई लोन क्रेडिट के सीईओ राजीव दास कहते हैं कि अगर आप कोई आइडिया ला रहे हैं, जो पहले से बने फ्रेमवर्क और नियमों पर सेट नहीं बैठता तो आपको दिक्कत होना तय है. पिछले कुछ वक्त में यूपीआई का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है और तमाम स्टार्टअप इसमें घुसे हैं, लेकिन उनकी केवाईसी पर सही से ध्यान नहीं दिया जा रहा है. हमने करीब 20 सालों तक बैंकिंग में काम किया है, तो हम इसकी बारीकियों को समझते हैं, लेकिन युवा कई बार ऐसे आइडिया के साथ आते हैं, जिनके साथ आगे बढ़ने पर दिक्कतें हो सकती हैं. इससे एक बड़ा डर ये भी होता है कि एक कंपनी में कुछ खामियां निकलने पर पूरी इंडस्ट्री शक के घेरे में आ जाती है.