जून-जुलाई से उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब समेत उत्तर भारत में धान की बुआई शुरू हो जाएगी. 90 से 120 दिन में यह फसल पककर तैयार हो जाती है और फिर आती है इसकी कटाई की बारी. जून-जुलाई में बोई गई फसल की कटाई नवंबर-दिसंबर में की जाती है. इन दिनों जहां किसान के घर अनाज के अंबार लगते हैं उसकी मेहनत का फल उसे मिलता है, वहीं एक बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है और वह है धान की पराली के जलाने से पैदा होने वाला प्रदूषण. 

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पिछले कुछ वर्षों से पंजाब-हरियाणा और दिल्ली के आसपास के खेतों से उठता धूआं पूरे आसमान को काला कर देता है. गांव-शहरों के ऊपर प्रदूषण की काली परत जम जाती है. इससे लोगों को सांस लेने में बहुत दिक्कतों को सामना करना पड़ता है. यह समस्या इतनी गंभीर होती जा रही है कि खुद सुप्रीम कोर्ट को इसमें दखल देना पड़ा और पराली जलाने पर कानून रोक लगानी पड़ी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का पराली जलाने की घटनाओं पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा है. 

दिसंबर-जनवरी आते ही दिल्ली और आसपास के इलाकों में वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या बन जाता है. मीडिया, शासन और प्रशासन में यह मुद्दा खूब छाया रहता है. लेकिन अभी तक इसका कोई स्थाई समाधान नहीं निकल पाया है.

20 मिलियन टन पराली जलाई जाती है

स्टडी बताती है कि हर साल पंजाब, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में लगभग 20 मिलियन टन पराली खेतों में जलाई जाती है. किसानों का तर्क है कि धान के बाद उन्हें खेत में गेहूं की बुआई करनी होती है और धान की पराली का कोई समाधान नहीं होने के कारण उन्हें इसे जलाना पड़ता है.

पराली जलाने से न केवल प्रदूषण होता है, बल्कि खेत की मिट्टी के पोषक तत्व भी जल जाते हैं और इन सबके अलावा आगजनी की घटनाएं भी बढ़ जाती हैं, जिनसे जनमाल का नुकसान भी बड़े पैमाने पर होता है. वर्ष 2017 में अकेले पंजाब में पराली जलाने के दौरान 40,000 से अधिक आगजनी की घटनाएं हुई थीं.  और पराली के जलाने से होने वाले प्रदूषण से 25 मिलियन लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.

IIT के छात्रों ने खोजा उपाय

लेकिन अब पराली की समस्या से छुटकारा पाने का उपाय आईआईटी दिल्ली के तीन छात्रों ने खोज लिया है. आईआईटी दिल्ली में 2017 बैच के तीन छात्र अंकुर कुमार, कनिका प्रजापत और प्राचीर दत्ता ने धान की पराली से कप-प्लेट और थाली बनाने की तकनीक ईजाद की है. इसके लिए इन्होंने मिलकर एक स्टार्टअप 'क्रिया लैब्स' भी शुरू किया है.

'क्रिया लैब्स' ने पराली से कप-प्लेट, थाली बनाने की एक यूनिट भी तैयार की है जिसमें अभी रोजाना 10 से 15 किलोग्राम पराली की प्रोसेसिंग करके उससे इको-फ्रेंडली कप-प्लेट तैयार किए जा रहे हैं. इन छात्रों ने इस तकनीक के पेटेंट के लिए भी आवेदन कर दिया है. 

पराली से बनाते हैं कप-प्लेट और कागज

आईआईटी के छात्र अंकुर कुमार, कनिका और प्रजापत ने पराली से कप-प्लेट बनाना शुरू किया है. पहले वे पराली में केमिकल डालकर उसका पल्प तैयार करते हैं और फिर पल्प को एक अन्य मशीन के खांचों में ढालकर उससे कप-प्लेट तैयार किए जाते हैं. 

पंजाब लगाएंगे यूनिट

अंकुर कुमार ने बताया कि अभी यह का प्रयोग के तौर पर चल रहा है. जल्द ही वे इसे कारोबार के स्तर पर शुरू करने जा रहे हैं. इसके लिए पंजाब के लुधियाना में एक यूनिट लगाने की तैयारी चल रही है.