शार्क टैंक इंडिया के तीसरे सीजन (Shark Tank India-3) में एक ऐसा स्टार्टअप (Startup) आया, जो लोगों को अपना गुस्सा निकालने की सुविधा देता है. इसकी धमाकेदार एंट्री ने सबको हैरान कर दिया. यह स्टार्टअप लोगों को अपना गुस्सा निकालने के लिए चीजें तोड़ने की सुविधा देता है. जी हां, आपने बिल्कुल सही पढ़ा, इस स्टार्टअप के आउटलेट में जाकर आप एसी-फ्रिज से लेकर टीवी तक तोड़ सकते हैं. इस स्टार्टअप का नाम है The Rage Room, जिसकी शुरुआत हैदराबाद के रहने वाले सूरज पुसरला ने अक्टूबर 2022 में की है. 

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

सूरज कहते हैं कि हम अपने तमाम इमोशन दबा कर रखते हैं, जिससे नुकसान होता है और हमारी मेंटल हेल्थ पर असर पड़ता है. इसी निपटने के लिए शुरुआत की गई है द रेज रूम की. यहां पर आपको बोतल, फ्रिज, टीवी, वॉशिंग मशीन सब मिलता है, तोड़ने के लिए. सूरज कहते हैं कि रोड-रेज और फिजिकल वाइलेंस कम करने के लिए यह कॉन्सेप्ट लाया गया है. रेज रूम में लोगों ने अब तक 500 से भी अधिक प्रोडक्ट तोड़े हैं और इस स्टार्टअप के जरिए सूरज लोगों को यादगार डिसट्रक्टिव एक्सपीरियंस देना चाहते हैं.

कहां से आया ये आइडिया?

सूरज बताते हैं कि उन्हें बचपन से ही बहुत ज्यादा गुस्सा आता है. यही वजह है कि वह गुस्से में अपना फोन तक तोड़ देते थे, जिससे उन्हें कुछ अच्छा महसूस होता था. सूरज बताते हैं कि वह अब तक 29 फोन तोड़ चुके हैं और अब 30वां फोन इस्तेमाल कर रहे हैं. अपने गुस्से से निपटने के लिए उन्होंने काउंसलिंग भी ली है, लेकिन रेज रूम से उन्हें बहुत फायदा मिलता है.

इसी बीच उन्हें एक दिन आइडिया आया कि गुस्सा निकालने के लिए चीजें तोड़ने वाला बिजनेस शुरू किया जाए. इसके बारे में जब उन्होंने अपनी मां को बताया तो उन्होंने डांट कर भगा दिया, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी मां को मना लिया और यह बिजनेस शुरू कर दिया. बता दें कि जर्मनी में भी इस तरह के रेज रूम होते हैं. अभी सूरज एक एडटेक कंपनी में फाइनेंस में 5 साल से नौकरी कर रहे हैं. 

शार्क ने लिया रेज रूम का अनुभव

अमन गुप्ता, अनुपम मित्तल और पीयूष बंसल ने भी द रेज रूम का अनुभव लिया. फीडबैक देते हुए अमन ने कहा कि एक दो सामान तोड़ने के बाद उनका गुस्सा और बढ़ने लगा. वहीं बाकी दोनों शार्क ने भी कहा कि द रेज रूम से एंगर मैनेजमेंट नहीं हो सकता है. हालांकि, सूरज बताते हैं कि अगर कोई शख्स रेज रूम में महीने में 5-6 बार आ जाता है तो उसकी काउंसलिंग कराई जाती है. इसके लिए मुफ्त में थेरेपिस्ट के साथ अप्वाइंटमेंट बुक कराई जाती है, ताकि किसी को इसकी लत ना लगे.

स्प्लैश रूम भी है यहां

इस स्टार्टअप में सिर्फ तोड़-फोड़ ही नहीं, बल्कि मस्ती भी होती है. उनके बिजनेस में एक हिस्सा स्प्लैश रूम का भी है, जिसमें एक दूसरे के ऊपर या दीवारों पर पेंट फेंका जाता है. सूरज कहते हैं कि जो लोग तोड़-फोड़ नहीं करना चाहते हैं, वह पेंट फेंकने वाली फन एक्टिविटी करते हैं, जिनमें अधिकतर बच्चे होते हैं.

70 फीसदी महिला ग्राहक

सूरज कहते हैं कि इसे ऑफिस की टीम ऑफसाइट फन के लिए भी इस्तेमाल कर सकती है. उन्होंने बताया कि यहां लोग सिर्फ गुस्सा निकालने नहीं आ रहे बल्कि फन करने भी आ रहे हैं, जिनमें कपल्स, दोस्त, मां-बेटी और बुजुर्ग भी शामिल हैं. द रेज रूम में आने वाले ग्राहकों में 70 फीसदी संख्या महिलाओं की है.

द रेज रूम में अभी हर महीने 200-250 ग्राहक आते हैं. यहां पर ग्राहकों को अलग-अलग पैकेज के तहत 650 से 1500 रुपये तक चुकाने होते हैं. यह कंपनी तोड़-फोड़ के लिए जो भी सामान लेते हैं, वह रीसाइकिलिंग कंपनियों से लेती है और बाद में उन्हें ही वापस बेच देती है. मौजूदा वक्त में कंपनी हर महीने करीब डेढ़ लाख रुपये कमाती है. सूरज ने अपने स्टार्टअप के लिए 66.67 लाख रुपये के वैल्युएशन पर 30 फीसदी इक्विटी के बदले 20 लाख रुपये की मांग की थी. हालांकि, किसी भी शार्क ने उनके बिजनेस में निवेश नहीं किया.

क्या कहते हैं साइकोलॉजिस्ट?

इस बिजनेस पर नमिता थापर ने राय देते हुए कहा था कि इसे फन एक्टिविटी की तरह तो देखा जा सकता है, लेकिन एंगर मैनेजमेंट की तरह नहीं. उनका मानना है कि इससे लोगों का गुस्सा बढ़ सकता है. इस पर जी बिजनेस ने मेंटल हेल्थ स्टार्टअप LISSUN की Lead Clinical Psychologist सोनल चड्ढा से बात की. वह कहती हैं कि गुस्से को निकालना बहुत जरूरी है. अगर गुस्सा शरीर में बढ़ता रहेगा, तो उससे तनाव होगा, जिसका शरीर पर बुरा असर पड़ेगा. 

सोनल कहती हैं कि अगर एक रेज रूम के कॉन्सेप्ट को देखा जाए, तो उसमें कंट्रोल्ड एनवायरमेंट में पूरे सेफ्टी गियर के साथ तोड़-फोड़ की जाती है. छोटी अवधि में तो इससे गुस्सा निकलता है, लेकिन यह हेल्दी तरीका नहीं है. सोनल मानती हैं कि रेज रूम को एक गुस्सा निकालने के बजाय एक मस्ती या फन एक्टिविटी वाली जगह की तरह देखना चाहिए. गुस्से के मैनेजमेंट यानी एंगर मैनेजमेंट के लिए डिस्ट्रक्टिव तरीकों का इस्तेमाल करना ठीक नहीं है. इसके लिए आप ब्रीदिंग एक्सरसाइज, फिजिकल वर्क आउट, सोशल सपोर्ट सिस्टम, बॉक्सिंग, स्वीमिंग आदि का इस्तेमाल कर सकते हैं.