रेल यात्रियों को अधिक से अधिक कनफर्म सीटें उपब्लध कराने के साथ ही ट्रेनों को चलाने का खर्च बचाने के लिए भारतीय रेलवे अपनी सभी प्रीमियम ट्रेनों को हेड ऑन जनरेशन (HOG) तकनीक के जरिए चलाने की योजना पर काम कर रही है. कुछ ट्रेनों को पहले से इस तकनीक के तहत चलाया जा रहा है.

रेलवे के एक्शन प्लान में है ये बात
रेल मंत्रालय की ओर से तैयार किए गए 100 दिन के एक्शन प्लान में भारतीय रेलवे की सभी प्रीमियम रेलगाड़ियों में हेड ऑन जनरेशन (HOG) तकनीक का प्रयोग करने की बात कही है. इससे बड़े पैमाने पर डीजल की बचत होगी. रेलवे ने हाल ही में बांद्रा से सहरसा के बीच चलने वाली हमसफर एक्सप्रेस के इंजन में Head On Generation (HOG) का प्रयोग किया है. इस तकनीक के प्रयोग से रेलवे को इस ट्रेन के एक बार बांद्रा से सहरसा जाने व वापस आने में लगभग 5000 लीटर डीजल की बचत होगी. इस तकनीक का सभी प्रीमियम गाड़ियों में प्रयोग किए जाने के बाद हर साल लाखों लीटर डीजल की बचत हो सकेगी.
 
ऐसे काम करता ही HOG तकनीक
रेलगाड़ियों में चलने वाले इलेक्ट्रिक इंजन को चलाने के लिए ओवरहेड वायर से बिलजी की सप्लाई की जाती है. इसी बिजली से ताकत ले कर इंजन चलता है. सामान्य एसी गाड़ियों में दो पावर कार लगी होती हैं. जो बड़े जनरेटर होते हैं और इनसे मिलने वाली बिजली से गाड़ी के सभी डिब्बों को जरूरत के अनुरूप बिजली की आपूर्ति की जाती है. वहीं हेड ऑन जनरेशन (एचओजी) तकनीक तकनीक के तहत इंजन को ओवरहेड वायर से मिलने वाली बिजली को रेलगाड़ी के हर डिब्बे तक इंजन के जरिए ही पहुंचाया जाता है. ऐसे में डिब्बों में पंखे, एसी, लाइट आदि जलाने के लिए इंजन से ही बिजली की सप्लाई भेजी जाती है.
 
यात्रियों को मिलेगा कनफर्म टिकट

हेड ऑन जनरेशन (एचओजी) तकनीक के प्रयोग से ट्रेन के डिब्बों में बिजली की सप्लाई इंजन के जरिए होने के चलते पावर कार की जरूरत खत्म हो जाएगी. एक AC ट्रेन में सामान्य तौर पर दो पावर कार लगाई जाती हैं जिनकी जरूरत हेड ऑन जनरेशन (एचओजी) तकनीक के प्रयोग के दौरान नहीं होती है. ऐसे में इन पावर कार को हटा कर इनकी जगह पर सामान्य यात्री डिब्बे लगाए जा सकते हैं. यदि किसी ट्रेन में दो डिब्बे बढ़ा दिए जाते हैं तो लगभग 140 यात्रियों को रेलगाड़ी में आसानी से सीट उपलब्ध उपलब्ध कराई जा सकेगी. सभी प्रीमियम ट्रेनों में HOG तकनीक के प्रयोग से हर दिन इन ट्रेनों में लगभग 4 लाख तक अतिरिक्त सीटें उपलब्ध होने की संभावना जताई जा रही है. इस तकनीक की वजह से रेलवे को ईंधन में सालाना 6000 करोड़ रुपए की बचत होगी.