मुंबई में भारी बारिश के बाद रेलवे ट्रैक पर महालक्ष्मी एक्सप्रेस के फंसने के बाद ये सवाल उठने लगे हैं कि क्या पूरे मामले में रेलवे की तरफ से कोई लापरवाही हुई. अगर ट्रैक पर पानी भरा था तो ट्रेन चलाने की इजाजत क्यों दी गई. दरअसल मुम्बई, कोलकाता चेन्नई और दिल्ली में इस तरह की परिस्थितियां हर साल बारिश में आती हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि ट्रैक के ऊपर 4–6 इंच पानी रहे तो ट्रेनों को सीमित गति (Caution Order) से चलाया जा सकता है. 

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भारतीय रेलवे के पूर्व सिग्नल सुपरवाइजर राजेंद्र अग्निहोत्री ने कोरा (Quora) पर एक सवाल के जवा में बताया, 'ट्रैक के ऊपर 4–6 इंच पानी रहे तो ट्रेनों को सीमित गति से चलाया जाता है. ट्रैक बदलने के लिए जो पाइंट्स होते हैं, उन्हें मैनुअली क्लैम्प करके लॉक लगा दिया जाता है और फिर ट्रेन बिना लाइन बदले सीधे चलती रहती हैं. सीधे से मतलब लोकल लाइन (स्लो लाइन) वाली ट्रेन स्लो लाइन पर ही चलेगी और फास्ट लाइन वाली ट्रेन फास्ट लाइन पर ही चलेगी.'

उन्होंने बताया, 'पानी भरने से ट्रैक सर्किट फेल होने के साथ मेन सिगनल भी फेल हो जाते हैं, लेकिन आटोमेटिक सिगनेलिंग में हर मेन सिगनल के पोस्ट पर एक "A marker" सिगनल लगा रहता है. ट्रेनें उसी को देखकर 15 किमी की गति से चलती हैं. इसमें कोई रिस्क नहीं है क्यों कि ट्रेन महज 15 किलोमीटर की गति से चलती हैं.'

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महालक्ष्मी एक्सप्रेस के मामले में ऐसा हो सकता है कि ड्राइवर या रेलवे स्टॉफ ट्रैक पर पानी के भराव का सही अंदाज न लगा पाए हों या अचानक बारिश तेज होने से वाटर लेबल बढ़ गया हो. हालांकि अब रेलवे की सूझबूझ और एनडीआरएफ की मदद से सभी यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया है. जिन यात्रियों को ट्रेन से रेस्क्यू किया गया उनमें 9 गर्भवती महिलाएं भी शामिल हैं. रेलवे की तरफ से जारी बयान में यात्रियों की कुल संख्या 700 बताई गई है. ट्रेन से निकाले गए यात्रियों को लेकर स्पेशल रिलीफ ट्रेन कल्याण से कोल्हापुर जाएगी. ट्रेन में 19 डिब्बे लगाए गए हैं. यात्रियों के खाने, पानी और दवाइयों का इंतजाम भी किया गया है.