Midcap, Small-Cap Funds: मार्केट रेगुलेटर सेबी (SEBI) ने हाल ही में म्‍यूचुअल फंड कंपनियों को स्‍मॉलकैप और मिडकैप फंड्स के निवेशकों के हितों को प्रोटेक्‍ट करने के लिए जरूरी फ्रेमवर्क लाने के लिए कहा. इस निर्देश के बाद म्‍यूचुअल फंड्स की संस्‍था AMFI ने म्‍यूचुअल फंड हाउसेस को लेटर लिखा कि मिडकैप, स्‍मॉलकैप फंड्स में फंड फ्लो धीमा करिये. पैसा कम लीजिए क्‍योंकि जरूरत से ज्‍यादा पैसा इन स्‍कीम्‍स में आ रहा है. ऐसे में इनमें एंट्री तो आसान है लेकिन रिडम्‍प्‍शन के समय दिक्‍कत आ सकती है. सवाल यह है कि अचानक स्‍मॉलकैप-मिडकैप फंड्स पर सेबी की इस सतर्कता का इंडस्‍ट्री और निवेशकों पर क्‍या असर होगा. एक्‍सपर्ट से समझते हैं. 

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मार्केट एक्‍सपर्ट अजीत गोस्‍वामी का कहना है, सेबी के निर्देश के बाद AMFI ने फंड हाउ‍सेस को स्‍मॉल-कैप स्‍कीम्‍स के ब्रेकेट को कम करने के लिए कहा है. इसका मकसम रिटेल निवेशकों के हितों को सुरक्षित रखना है. इनमें सेफ्टी प्रोटोकॉल, रिस्‍क फैक्‍टर कम करने और मार्केट में संभावित गिरावट से निपटने के लिए तैयार रहने जैसे उपाय शामिल हैं. 

उनका कहना है, जिन कंपनियों की वैल्‍यू बढ़ गई है उनमें दिक्‍कतें पैदा होती हैं. ऐसे में मिड कैप और स्मॉल-कैप फंड्स पर रिडम्‍प्‍शन के दबाव को प्रबंधित करना जरूरी है. रिस्‍क कंट्रोल करने के लिए ये फंड्स लार्ज-कैप में अपना स्‍टेक बढ़ा सकते हैं और लिक्विटी बेहतर स्‍तर पर बनाए रख सकते हैं. 

गोस्‍वामी कहते हैं, जरूरी डिस्‍क्‍लोजर के जरिए एसेट मैनेजमेंट कंपनियां (AMCs) निवेशकों को सबकुछ स्पष्ट कर देती हैं. साथ ही संभावित आउटलुक भी देती हैं. इन सभी एक्‍शन का मकसद निवेशकों के फाइनेंशियल हितों की रक्षा करना और यह गारंटी देना कि म्यूचुअल फंड अप्रत्याशित घटनाओं के लिए तैयार हैं, जिससे मार्केट में संतुलन को बनाए रखने में मदद मिलती है. 

क्‍वांटम AMC के सीईओ चिराग मेहता का कहना है, सेबी ने म्‍यूचुअल फंड कंपनियों को स्‍मॉल और मिड कैप स्‍कीम्‍स में निवेश कराने वाले निवेशकों को हितों को प्रोटेक्‍ट करने के लिए फ्रेमवर्क बनाने को कहा है. सेबी की तरफ से यह निर्देश तब आया है, जब बड़ी एएमसी वाली स्मॉल कैप और मिड कैप स्‍कीम्‍स पर स्‍ट्रेस टेस्‍ट किया गया. इसमें यह जानने की कोशिश की गई कि क्‍या फंड हाउस बाजार में मंदी की स्थिति में भारी रिडम्‍शन का मैनेजमेंट कर सकते हैं.

फंड हाउसेस को क्‍या करना चाहिए

अजीत गोस्‍वामी कहते हैं, फंड हाउसेस मार्केट में गिरावट के दौर में स्‍मॉल कैप और मिड कैप में रिडम्‍शन के संभावित चुनौतियों से निपटने के लिए कुछ जरूरी कदम उठा सकते हैं. फंड हाउसेस को पॉलिसी करेक्‍शन करना चाहिए. निवेशकों के फंड की सिक्‍युरिटी को ध्‍यान में रखते हुए एक व्‍यापक पॉलिसी डेवलप करनी चाहिए. जिसमें रिस्‍क डिटेल शेयर करने के साथ-साथ इनफ्लो कंट्रोल करने पर फोकस करना चाहिए. अचानक भारी रिडम्‍शन से निपटने के लिए फाइनेंशियल बैकअप होना चाहिए. इसके लिए बैंकिंग सिस्‍टम से एक्‍स्‍ट्रा क्रेडिट सपोर्ट हासिल करना चाहिए. 

उनका कहना है, मिडकैप-स्‍मॉल कैप में इनफ्लो को रेगुलेट करने के लिए एकमुश्‍त या  SIP पर लिमिट लगाने की जरूरत है. इसके अलावा AMC के प्‍लेटफॉर्म पर उपलब्‍ध मिड कैप और स्‍मॉल कैप स्‍कीम्‍स से जुड़े रिस्‍क पैरामीटर बनाए. इसमें निवेशकों को रिडम्‍शन शेड्यूल की इनसाइट्स होनी चाहिए. वहीं, कंपनियों को पर्याप्‍त कैश रिजर्व रखना चाहिए. कम से कम फंड रिसोर्सेस का 5 फीसदी होना चाहिए. जोकि रिडम्‍शन की जरूरत हो पूरा कर सके. फंड हाउसेस को पोर्टफोकिलयो रीबैलेंसिंग का भी व्‍यापक मैकेनिज्‍म बनाना होगा. 

निवेशकों को सतर्क रहना होगा? 

अजीत गोस्‍वामी का कहना है, मार्केट में निवेशकों को हमेशा सतर्क रहना चाहिए. ब्रॉडर मार्केट में बिकवाली से स्‍मॉल कैप और मिडकैप फंड्स में बड़े पैमाने पर रिडम्‍प्‍शन देखने को मिल सकता है. जोकि स्‍कीम्‍स के NAVs पर निगेटिव असर होगा. निवेशकों को यह ध्‍यान रखना चाहिए कि स्‍मॉल कैप फंड्स में लार्ज कैप के मुकाबले कम लिक्विडिटी रहती है. 

(डिस्‍कलेमर: म्‍यूचुअल फंड्स में निवेश बाजार के जोखिमों के अधीन है. निवेश संबंधी फैसला करने से पहले अपने एडवाइजर से परामर्श कर लें.)