बजट में टैक्सपेयर्स को 5 लाख तक की आय पर छूट दी गई है. लेकिन, क्या यह सही मायने में छूट है या फिर रिबेट? दरअसल, सरकार ने रिबेट के माध्यम से छूट देने का ऐलान किया है. हालांकि, पहले भ्रम यह था कि यह सीधे तौर पर छूट यानी Tax Exemption है. लेकिन, हकीकत में ऐलान रिबेट (Rebate) का हुआ है. ज्‍यादातर टैक्‍सपेयर्स टैक्‍स छूट (Tax Exemption), कटौती (Deduction) और रिबेट (Rebate) में अंतर नहीं समझते हैं. ये तीनों आपके टैक्‍स देनदारी को घटाने में मददगार है, लेकिन ये एक-दूसरे से भिन्‍न हैं. आइए जानते हैं इनमें अंतर क्‍या है.

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टैक्‍स छूट (Exemption)

आय के कुछ स्रोत ऐसे होते हैं जिनपर टैक्‍स में छूट मिलती है. दूसरे शब्‍दों में कहें तो ऐसे स्रोतों से होने वाली आय पर टैक्‍स देने की जरूरत ही नहीं होती है. टैक्‍स देनदारी का कैलकुलेशन करते समय छूट वाली ऐसी आय को आपकी कुल सैलरी या आय के अन्‍य स्रोतो में से सबसे पहले घटाई जाती है. उदाहरण के तौर पर HRA कुछ खास नियमों के अधीन टैक्‍स छूट के दायरे में आता है. 

टैक्‍स रिबेट (Rebate)

छूट और कटौती के बाद जो आय बच जाती है उस पर आपको टैक्‍स देना होता है. टैक्‍स की गणना करने के बाद रिबेट आपको इनकम टैक्‍स की राशि के भुगतान में राहत देता है. यह वह राशि होती है जिस पर करदाता को टैक्‍स नहीं देना होता है. उदाहरण के तौर पर धारा 87A के तहत मिलने वाला रिबेट. इसके अनुसार अगर आपकी सालाना आय 3.5 लाख रुपए से कम है तो आप 2,500 रुपए तक के रिबेट का दावा कर सकते हैं. 

यहां समझिए

मान लीजिए किसी व्‍यक्ति की कमाई 5 लाख रुपए है और उसे 50,000 रुपए का HRA मिलता है. छूट के बाद उसकी आय 4.5 लाख रुपए होगी. अगर हम मान लें कि धारा 80सी के तहत उसने 1.5 लाख रुपए के डिडक्‍शन का फायदा उठाया है तो उसकी कुल आय 3 लाख रुपए होगी जिस पर टैक्‍स देना होगा. 5% के हिसाब से उसे 2,500 रुपए टैक्‍स देना होगा. 2,500 रुपए का रिबेट मिलने की वजह से उस व्‍यक्ति को कोई इनकम टैक्‍स नहीं देना होगा.

टैक्‍स में कटौती (Deduction)

एक बार अपने वेतन या सभी स्रोतों से होने वाली आया में से छूट वाली आय को घटा लेते हैं तो वह आपकी ग्रॉस टोटल इनकम होती है. डिडक्‍शंस के जरिए आप इसे और घटा सकते हैं. निवेश के कुछ खास स्रोतों जैसे इक्विटी लिंक्‍ड सेविंग्‍स स्‍कीम, पीपीएम आदि जैसे खास प्रोडक्‍ट्स इसमें मददगार होते हैं. कुछ खास तरह के खर्च भी इसके दायरे में आते हैं. उदाहरण के तौर पर अगर आप वेतनभोगी हैं तो 40,000 रुपए का स्‍टैंडर्ड डिडक्‍शन का दावा कर सकते हैं. इसके अलावा, आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत निवेश कर भी डिडक्‍शन का लाभ प्राप्‍त कर सकते हैं.