भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (इरडा) ने बीमा कंपनियों को मानसिक दिक्कतों, जेनेटिक बीमारियों, न्यूरो संबंधी विकारों तथा मनोवैज्ञानिक विकारों जैसी गंभीर बीमारियों को चिकित्सा बीमा की पॉलिसी से बाहर नहीं रखने का प्रस्ताव दिया है. इरडा ने दिशा-निर्देश के प्रारूप में यह भी प्रस्ताव दिया है कि बीमा जगत को चिकित्सा बीमा पॉलिसी से बीमारियों को बाहर रखने के संबंध में एक समान रवैया अपनाना चाहिए. नियामक ने बाजार में चिकित्सा बीमा कंपनियों और चिकित्सा बीमा योजनाओं की बढ़ती संख्या के मद्देनजर यह प्रस्ताव दिया है.

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नियामक ने चिकित्सा बीमा से बीमारियों को बाहर रखे जाने के मानकीकरण के लिये एक कार्य समूह का गठन किया है. उसने इसी समूह की अनुशंसा पर विचार करने के बाद चिकित्सा बीमा से बीमारियों को बाहर रखे जाने के संबंध में दिशा-निर्देश प्रस्तावित किया है.

इसमें कहा गया है कि बीमा लेने के बाद होने वाली किसी बीमारी को संबंधित चिकित्सा बीमा से बाहर नहीं रखा जाना चाहिये और बीमा के नियम एवं शर्तों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया जाना चाहिये.

हाल ही में इंश्योरेंस कंपनियों से मिलने वाले क्लेम के नियमों में भी कुछ बदलाव हुए हैं. नए नियम से क्रिटिकल इलनेस जैसी गंभीर बीमारियों में पॉलिसी होल्डर को राहत मिलेगी. बीमा नियामक ने जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा और साधारण बीमा करने वाली सभी कंपनियों से कहा है कि वह पॉलिसी जारी होने तथा बीमा प्रीमियम भुगतान के बारे में पत्र, ई-मेल, एसएमएस या अन्य मंजूरी प्राप्त इलेक्ट्रॉनिक तरीके से ग्राहकों को सूचना देगी. 

परिपत्र में कहा गया है, 'स्वास्थ्य बीमा के मामले में जहां स्वास्थ्य सेवाओं के लिये टीपीए की सेवा ली जाती है, बीमा कंपनियां यह सुनिश्चित करेंगी कि आईडी कार्ड जारी होने समेत सभी संबद्ध सूचनाएं या तो थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर द्वारा भेजी जाए या संबंधित बीमा कंपनी यह स्वयं करे.