मेडिक्लेम में अब ज्यादा बीमारियों का कैशलेस इलाज हो सकेगा. IRDAI ने सभी मेडिक्लेम प्रोडक्ट के लिए स्टैंडर्डाइज़ाशेन के लिए ड्राफ्ट गाइडलाइंस जारी की है.  जिसके तहत मानसिक बीमारियों, जेनेटिक बीमारियों, न्यूरो डिसऑर्डर, ऑरल केमोथेरेपी, रोबोटिक सर्ज़री, स्टेम सेल थेरेपी जैसी बीमारियों के लिए भी कवर मिलेगा. साथ ही डायबिटीज़ और हाइपरटेंशन जैसी लाइफ स्टाइल बीमारियों के लिए वेटिंग पीरियड 30 दिन होगा.

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वेटिंग पीरियड घटाया जाएगा

वेटिंग पीरियड घटने से क्लेम के दायरे से कम समय ही पॉलिसीहोल्डर बाहर रहेगा. नई गाइडलाइंस के बाद हेल्थ इंश्योरेंस से जुड़ा कंफ्यूजन दूर होगा और ग्राहकों को इंश्योरेंस पॉलिसी को चुनने में मदद मिलेगी. अगर कोई पॉलिसी होल्डर 8 साल तक लगातार प्रीमियम भर रहा है तो इंश्योरेंस कंपनी फ्राड की आशंका को छोड़कर क्लेम को रिजेक्ट नहीं कर पाएगी.  

17 बीमारियों पर नहीं मिलेगा क्लेम

इंश्योरेंस रेगुलेटर IRDAI ने 17 बीमारियों को कवर से बाहर की लिस्ट में रखा है इन 17 बीमारियों में शामिल है एपिलैप्सी, हैपीटाइटिस बी, अलजाइमर, पार्किंसंस, क्रोनिक लिवर और गुर्दे  की बीमारी औऱ HIV/एड्स जैसी बीमारियों के इलाज के लिए इंश्योरेंस कवर नहीं दिया जाएगा.  

बीमा के प्रीमियम में भी होगा बदलाव

सभी कंपनियों के लिए बीमा कवर से बाहर हुई बीमारियों की लिस्ट तय होने के बाद अब हेल्थ इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स के प्रीमियम में भी बदलाव होगा यानी अभी जिस पॉलिसी में 17 से कम एक्सक्लूजन है तो वहां प्रीमयम घटेगा और 17 से ज्यादा बीमारियों कवर के दायर से बाहर है तो ऐसी स्थिति में प्रीमियम में बढ़ोतरी होगी. 10% से ज्यादा प्रीमियम बढ़ोतरी होने पर इंश्योरेंस कंपनी को प्रोडक्ट दोबारा फाइल कर मंजूरी लेनी होगी. IRDAI अब से सभी नए प्रोडक्ट्स को मंजूरी मौजूदा प्रस्ताव के तहत देगा और 1 अप्रैल 2020 तक सभी कंपनियों को अपने हेल्थ प्रोडक्ट नए नियमों के तहत करने होंगे और पुराने प्रोडक्ट्स बंद होंगे.  

कंपिनियों को लम्बे समय में मिलेगा फायदा

SBI जनरल के अंडरराइटिंग हेड सुब्रमण्यम ब्रह्मजोस्युला के मुताबिक नई गाइडलाइंस के बाद हेल्थ इंश्योरेंस से जुड़ा कंफ्यूजन दूर होगा, और मौजूदा पॉलिसी में एक्सक्लूजन के मुताबिक प्रीमियम बढ़ सकता है या घट सकता है लेकिन इंश्योरेंस का दायरा बढ़ेगा और जिन लोगों को इंश्योरेंस कवर नहीं मिल पाता था अब नए नियमों के बाद उन्हें भी कवर मिल पाएगा, छोटी अवधि में इंश्योरेंस कंपनियों के लिए चुनौतियां होंगी लेकिन लॉन्ग टर्म में फायादा होगा.