Coronavirus mahamari के कारण उत्‍तर प्रदेश में इस बार यूनिवर्सिटी पेपर टलने की संभावना है. डिप्‍टी CM दिनेश शर्मा के मुताबिक पेपर के लिए बनी समिति की रिपोर्ट पर दो जुलाई को फैसला होगा. पेपर न होने से करीब 48 लाख छात्र प्रभावित होंगे. हालांकि सरकार के पास विकल्‍प होगा कि वह उन्‍हें उनके पुराने मार्क्‍स के हिसाब से पास कर दे.

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सूत्रों के मुताबिक पेपर के लिए मेरठ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. तनेजा की अध्यक्षता में बनी समिति ने सोमवार को अपनी रिपोर्ट सौंपी दी है. 

कहा जा रहा है कि रिपोर्ट में पेपर न कराने के समिति के सुझाव को मान लिया गया है, लेकिन सभी University के लिए समान प्रोन्नति का फॉर्मूला तय करने को कहा गया है.

उच्च शिक्षा विभाग ने प्रो. एनके तनेजा की अध्यक्षता में समिति बनाई थी. 

समिति का मानना है कि देश और प्रदेश में लगातार कोरोना संक्रमण बढ़ रहा है. ऐसे में पेपर सोशल डिस्टेंसिंग से कराया जाना संभव नहीं है. पेपर कराने से शिक्षकों और छात्रों में कोरोना संक्रमण बढ़ने का खतरा रहेगा. 

समिति ने दूसरे प्रदेशों की तर्ज पर यूपी में भी पेपर नहीं कराने और छात्रों को पास करने का सुझाव दिया है. 

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बता दें कि लखनऊ यूनिवर्सिटी में पेपर 7 जुलाई से शुरू होने वाले हैं. इस बीच, लखनऊ विश्वविद्यालय एसोसिएटेड कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन (Luacta) ने भी पेपर टालने की मांग की थी. इस सिलसिले में लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (Luta) के एक प्रतिनिधिमंडल ने उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा से भी मुलाकात की है.

एलयूटीए अध्यक्ष नीरज जैन ने कहा कि कोरोनावायरस के मामले बढ़ रहे हैं. ऐसी स्थिति में पेपर कराने से छात्रों, शिक्षकों के साथ-साथ गैर-शिक्षण कर्मचारियों के लिए भी खतरा पैदा हो जाएगा.

उधर, UGC भी पेपर को लेकर फिर अपने दिशा-निर्देशों में बदलाव करेगा. इससे पहले, इसी साल अप्रैल में UGC ने इस संबंध में दिशा-निर्देश रिवाइज किए थे. केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' के मुताबिक यूजीसी को सलाह दी गई है कि वह इंटरमीडिएट और सेमेस्टर परीक्षाओं समेत अकादमिक कैलेंडर के विषय पर अपने दिशा-निर्देशों पर दोबारा सोचे. नए दिशा-निर्देश तय करते समय छात्रों की सुरक्षा, सेहत और दूसरों की सुरक्षा को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए.

ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन भी विभिन्न राज्यों में कोविड-19 के वर्तमान हालात को देखते हुए यूजीसी द्वारा किए जा रहे इन बदलावों के पक्ष में है. यूजीसी के इस फैसले में AICTE, बार काउंसिल ऑफ इंडिया, आर्किटेक्चर काउंसिल, फार्मेसी काउंसिल समेत देश की अन्य शीर्ष शैक्षणिक संस्थाएं भी शामिल होंगी.