किस्सा-ए-कंज्यूमर: भई ये तो बहुत बड़ी बात हो गई. इस पर तो हो-हल्ला होना चाहिए. चर्चा होनी चाहिए. बहस होनी चाहिए. सवाल पूछे जाने चाहिए. लेकिन ये क्या, इतनी बड़ी खबर आई और दबे पांव निकलती जा रही है. इतना बड़ा फैसला आया और उसके असर पर कोई बात ही नहीं हो रही. आपने सुनी है ना मेहंदी हसन साहब की आवाज में अहमद फ़राज़ की लिखी वो ग़ज़ल- रंजिश ही सही, उसमें एक बड़ा अच्छा शेर है-  

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

अब भी दिल-ए-ख़ुशफ़हम को हैं तुझसे उम्मीदें 

ये आखिरी शम्मे भी बुझाने के लिए आ 

अब यहां दिल-ए-ख़ुशफ़हम को उम्मीदें थीं अपने बैंक से, लेकिन आखिरी शम्मे बुझाने के लिए आ गया खुद कंज्यूमर कोर्ट. जी हां, पहले जरा ये पूरा वाकया समझ लीजिए क्योंकि ऑनलाइन फ्रॉड (Online Fraud) के अंजाम को लेकर अब तक जो आपकी जानकारी है ना, उसमें एक ट्विस्ट आ गया है. बहुत बड़ा ट्विस्ट. 

गिरिजेश कुमार के दूसरे लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

ज़ी बिज़नेस LIVE TV यहां देखें