पिछले छह-साल सालों से देशभर में रीयल एस्टेट सेक्टर की रफ्तार बेहद सुस्त रही है. बिक्री में तेजी नहीं आने के बावजूद तैयार फ्लैट या बिना बिके फ्लैट की संख्या में लगातार तेजी दर्ज की जा रही है. इसका अंदाजा ऐसे लगाया जा सकता है कि सितंबर 2018 में खत्म तिमाही के अंत में देश में 27 सूचीबद्ध रियल्टी कंपनियों के पास 1.13 लाख करोड़ रुपये के अनबिके फ्लैट थे. जो पिछले साल मार्च के अंत की तुलना में 21 फीसदी अधिक है. उस समय इन कंपनियों के पास 93,358 करोड़ रुपये के ऐसे फ्लैट थे जो बिके ही नहीं.

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एक दशक में सबसे ऊंचा स्तर

बिना बिके फ्लैट लगातार कंपनियों के लिए सिरदर्द बनते रहे हैं. आंकड़ों के मुताबिक, बिना बिके फ्लैट की खेप चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में इंडस्ट्री के शुद्ध सालाना बिक्री के 32 महीने के बराबर थी. माना जा रहा है कि यह स्थिति बीते करीब 10 सालों में बिना बिके फ्लैट की संख्या का सबसे ऊंचा स्तर है. बिना बिके फ्लैट या मकान और राजस्व के बीच बढ़ती दूरी से रियल्टी सेक्टर में नकदी की भारी दिक्कत पैदा हो गई है. 

IL&FS मामले से परेशानी बढ़ी

लगातार तरलता का सामना कर रही रियल्टी कंपनियों के लिए गैर बैंकिंग वित्त कंपनियां (एनबीएफसी) पैसे पाने का एक महत्वपूर्ण जरिया थीं. लेकिन हाल में इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग ऐंड फाइनैंशियल सर्विसेज (आईएलऐंडएफएस) के डिफॉल्ट होने के बाद लगभग यह भी खत्म हो गया. बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के मुताबिक, रियल्टी रिसर्च फर्म प्रॉपइक्विटी के सीईओ समीर जसूजा कहते हैं, 'एनबीएफसी में नकदी संकट ने बिल्डर और डेवलपर्स के लिए बिना बिके मकानों को बनाए रखना मुश्किल कर दिया है.

इस घटना के बाद कुछ बिल्डर अपने कर्ददाता को ब्याज चुकाने के मामले में डिफॉल्ट भी कर गए हैं. खराब हालात का अंदाजा आप ऐसे लगा सकते हैं कि सालाना आधार पर बीते तीन साल में रीयल एस्टेट क्षेत्र में शुद्ध बिक्री 3.2 प्रतिशत घटी है और बिना बिके मकानों या फ्लैट की संख्या में 8.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.