महंगा है तो बेहतर है और सस्ता है तो खराब ही होगा – आमतौर पर लोग ऐसा ही सोचते हैं लेकिन इस साल ये तस्वीर बदली है. भारत में सस्ती जन औषधि दवाओं ने कारोबार के 15 वर्ष पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. पिछले एक साल में जन औषधि स्टोर्स ने कुल 1236 करोड़ रुपए का कारोबार किया है, जो कि आठ साल पहले केवल 12 करोड़ रुपए का था.इस कारोबार से फायदा सिर्फ मरीज ही नहीं बल्कि दुकानदार से लेकर सरकार तक को हो रहा है. इसी साल दिसंबर तक देश में 10 हजार तक जन औषधि दवा दुकानें पहुंच जाएंगी .  

247 करोड़ रुपए अतिरिक्त कमाए

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बीते साल के आंकड़े देखें तो जन औषधि के जरिए देश में दुकानदारों ने 247 करोड़ रुपए अतिरिक्त कमाए हैं. करीब आठ साल पहले यह मुनाफा तकरीबन दो करोड़ रुपए हुआ करता था लेकिन, अब इसमें 103 गुना की बढ़ोतरी हुई है. जन औषधि दवाएं वो दवाएं हैं जिन्हें सरकार कंट्रोल रेट पर बेचती है. देश में ऐसी 1800 दवाएं और 250 से ज्यादा मेडिकल डिवाइस हैं जिन्हें इस योजना के तहत सस्ते दामों पर बेचा जा रहा है. मार्केट के मुकाबले ये दवाएं 50 से 90 प्रतिशत तक सस्ती है .

क्वालिटी पर हुआ है काम

पिछले आठ सालों में जनऔषधि में बिकने वाली दवाओं की क्वालिटी पर काम हुआ है. सरकार का दावा है कि जनऔषधि के तहत बनाई जाने वाली दवाओं को कोई चाहकर भी नकली नहीं बना सकता. लोगों में इन दवाओं को लेकर भरोसा जगा है.अब लोग दवाओं के बिल में जमीन और आसमान का फर्क महसूस कर रहे हैं और यही वजह है कि इस साल इन दवाओं की सेल ने बीते सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं.  

दवाओं के दामों में है फर्क 

डायबिटीज कंट्रोल करने वाली जो दवा आप रोज़ाना खाते हैं वो 10 गोली अगर मार्केट में आपको 100 रुपए की मिलती है. वही दवा जन औषधि स्टोर पर आपको 20 रुपए में मिल सकती है. इसी तरह बीपी और हार्ट रेट कंट्रोल करने वाली Amlodipine (एमलोडिपिन) की दस गोली जो आप मार्केट से 30 रुपए की खरीदते हैं जन औषधि स्टोर पर केवल पांच रुपए में मिल सकती है.  ऑगमेंटिन के नाम से बिकने वाली एंटीबायोटिक दवा जो आपको 6 गोली मार्टे में 122 रुपए की मिलती हैं वो जनऔषधि स्टोर पर केवल 56 रुपए में मिल जाती है.  

ये हैं भारत में बिकने वाली टॉप पांच दवाएं  

जन औषधि स्टोर्स पर इस साल जिन दवाओं की सेल सबसे ज्यादा रही उनमें पहले नंबर पर एसीडिटी की दवा पैंटाप्रेजोल और डोमपेरिडोन का कॉंबिनेशन  हैं. इसे आप ब्रांड नेम Pan D के नाम से जानते हैं.  दूसरे नंबर पर बीपी की दवा टेल्मीसार्टेन,  तीसरे नंबर पर ब्लड प्रेशर की दवा एमलोडिपिन , चौथे नंबर पर डायबिटीज की मेटफॉर्मिन, पांचवे नंबर पर ऐसीडिटी की दवा पैंटाप्रेजोल.  टॉप टेन दवाओं में मोटे तौर पर दिल की बीमारी, डायबिटीज, पेनकिलर और एसीडिटी की दवाएं हैं. 

जन औषधि दुकानदारों ने कमाए 247 करोड़

आठ साल में 12 से 1236 करोड़ रुपये जनऔषधि केंद्रों का कारोबार पहुंच गया है.  दुकानदारों का मुनाफा भी 103 गुना बढ़ा है.  प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) के तहत दुकानदारों को उनकी कुल बिक्री का 20 फीसदी मुनाफा अलग से दिया जाता है। इस हिसाब से 2022 में दुकानदारों को करीब 247 करोड़ रुपये की कमाई हुई है. मणिपुर, जम्मू कश्मीर और पटना के लोगों ने जन औषधि दवाओं पर किया सबसे ज्यादा भरोसा है. यूपी में सबसे ज्यादा जनऔषधि केंद्र हैं.  

1236 करोड़ रुपए तक पहुंचा कारोबार

बीते आठ साल में जन औषधि का सालाना कारोबार 12 से बढ़कर 1236 करोड़ रुपये तक पहुंचा है. प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) के तहत दुकानदारों को उनकी कुल बिक्री का 20 फीसदी मुनाफा अलग से दिया जाता है. इस हिसाब से 2022 में दुकानदारों को करीब 247 करोड़ रुपये की कमाई हुई है. इसी तरह अगर मरीजों के फायदे की बात करें तो वर्ष 2021-22 में करीब 850 करोड़ रुपये से ज्यादा कारोबार हुआ तब सरकार ने कहा कि जेनेरिक दवाओं के जरिए मरीजों को तकरीबन 4500 करोड़ रुपये की बचत हुई है. लेकिन साल 2022 में यह कारोबार 1200 करोड़ से ज्यादा हुआ है. इसके हिसाब से मरीजों की बचत अब बढ़कर सात हजार करोड़ रुपये तक होने का अनुमान है. 

10 लाख से अधिक दवाएं 

देश के 756 में से 651 जिलों में मौजूद 9484 जन औषधि केंद्रों पर हर दिन 10 लाख से अधिक लोग दवाएं खरीद रहे हैं, जिन्हें ब्रांडेड की तुलना में पांच से छह गुना सस्ती दवाएं मिल रही हैं. प्रति माह इन केंद्रों को मिलाकर करीब 120 करोड़ रुपये का कारोबार किया जा रहा है.  जनऔषधि केंद्र में मिल रही दवाओं और बाजार में उपलब्ध दवाओं की तुलना करने के लिए अपने स्मार्टफोन में जनऔषधि सुगम नाम का ऐप डाउनलोड करें.  दवाओं के दाम की तुलना करें और दवा खरीदने का फैसला खुद लें.

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अगर आपने बी फार्मा किया है और आपके पास 120 स्कवेयर फीट जगह का इंतजाम है तो आप अपना स्टोर खोल सकते हैं. सरकार इस साल 600 नए स्टोर खोलने वाली है.