India@100: 15 अगस्त 1947 को हमें आजादी तो मिली लेकिन सैकड़ों वर्षों की गुलामी की बेड़ियों ने देश को गरीबी और अव्यवस्था के दलदल में फंसा दिया था. तब से लेकर अब तक 75 साल की यात्रा में देश ने सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सैन्य, खेल और तकनीकी क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. बीते 75 सालों में अपनी अंदरूनी समस्याओं, चुनौतियों के बीच देश ने ऐसी उपलब्धियां हासिल की हैं जिनपर हमें गर्व है. ऐसा ही एक सेक्टर है स्वास्थ्य का, आइए जानते हैं कि आजादी से लेकर अबतक देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में क्या-क्या बदलाव आया है. 

कितना बदला हिंदुस्तान

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देश में स्वास्थ्य सुविधाएं ना के बराबर थीं. 1951 की जनसंख्या के मुताबिक देश के लोगों की लाइफ एक्सपेक्टेंसी यानी जीवन प्रत्याशा 32 साल थी जो 2022 में बढ़कर 70 साल पर पहुंच गई है. जन्म के समय शिशु मृत्यु दर प्रति 1 हजार पर 145 थी जो 2022 में घटकर 27 रह गई है. पिछले 75 वर्षों में स्वास्थ्य सेक्टर में काफी काम हुआ है और इसका असर भी दिख रहा है।

कितना बदला हिंदुस्तान?

                                         1951       2022

जीवन प्रत्याश                      32 साल    70 साल

शिशु मृत्युदर (1000 पर)       145          27

डॉक्टर की संख्या में बढ़ोतरी

आजादी के समय देश में सिर्फ 50 हजार डॉक्टर थे जिनकी संख्या आज बढ़कर 13 लाख 8 हजार के पार पहुंच गई है. 1947 में देश में 30 मेडिकल कॉलेज ही थे, लेकिन अब 600 से ज्यादा मेडिकल कॉलेज हैं. इतना ही नहीं, आजादी के समय देशभर में 2,014 सरकारी अस्पताल थे जिनकी संख्या आज साढ़े 23 हजार से ज्यादा है. उस वक्त देश में प्राइमरी हेल्थ केयर सेंटर्स की संख्या सिर्फ 725 थी जो आज बढ़कर 23,391 हो गई.

कितना बदला हिंदुस्तान

                               1947         2022

डॉक्टर्स                   50000       13.8 लाख

मेडिकल कॉलेज          30            600

सरकारी अस्पताल       2014        23500

प्राइमरी हेल्थ सेंटर       725          23391

हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर में आया बदलाव

आजादी से अब तक यानी 75 सालों में हमारे देश के हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर में अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई है. मेडिसिन के सेक्टर में भी भारत की 75 साल की यात्रा लाजवाब रही है. 1947 में भारत का फार्मा मार्केट विदेशी कंपनियों के कब्जे में था और उस वक्त जरूरत की 80-90 परसेंट दवाइयां इंपोर्ट होती थीं. भारत में दवाइयों के दाम बाकी देशों के मुकाबले काफी ज्यादा थे और ये स्थिति 1960 तक रही. भारत ने जब दवाइयों के घरेलू प्रोडक्शन पर फोकस बढ़ाया तो स्थिति तेजी से बदली.

75 साल बाद भारत दुनिया की फार्मेसी बन चुका है. 2021-22 में भारत ने दुनियाभर में 2,462 करोड़ डॉलर की दवाइयां एक्सपोर्ट की हैं. ग्लोबल फार्मा एक्सपोर्ट में भारत की हिस्सेदारी करीब 6 परसेंट है. वॉल्यूम के हिसाब से भारत, दुनिया की तीसरा सबसे बड़ा देश है जबकि वैल्यू के हिसाब से चौदहवें नंबर पर है.

भारत बना वर्ल्ड फार्मेसी

  • दवा एक्सपोर्ट: $2,462 करोड़
  • ग्लोबल एक्सपोर्ट में हिस्सा: 5.92% *(2021-22)

दवा प्रोडक्शन में भारत

  • वॉल्यूम: तीसरे स्थान पर
  • वैल्यू: 14वां स्थान *(2021-22)

देश में 1 हजार की आबादी पर सिर्फ 0.55 बिस्तर हैं यानी हर 2 हजार की आबादी पर सिर्फ 1 हॉस्पिटल बेड है. स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, देश में 10 हजार लोगों पर 8.6 डॉक्टर्स हैं. वर्ल्ड बैंक का आंकड़ा बताता है कि चीन में हर 10 हजार आबादी 22 से ज्यादा डॉक्टर हैं. स्वास्थ्य सुविधाओं पर भारत सरकार GDP का सिर्फ 3 परसेंट ख़र्च करती है जबकि चीन 7% से ज्यादा खर्च करता है. 

भारत को अगले 25 सालों में यानी आजादी की सौंवी वर्षगांठ पर दुनिया में अलग मुकाम हासिल करने के लिए एक किफायती और मजबूत हेल्थकेयर सिस्टम खड़ा करना होगा. इस दिशा में सरकार ने कदम बढ़ाने शुरू भी कर दिए हैं. मेडिकल कॉलेजों की संख्या में बढ़ोतरी के साथ ही एम्स जैसे प्रीमियम हेल्थ इंस्टीट्यूशन की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है. साथ ही आयुष्मान भारत से हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम के जरिए गरीबों तक बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने की पहल भी शुरू हुई है। इन कोशिशों को अगर ईमानदारी से लागू किया जाता है तो भारत अपना वो मुकाम जरूर हासिल करने में कामयाब होगा जिसका वो हकदार है.