Delhi AIIMS: दिल्ली का अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में दुनिया भर के लोग इलाज के लिए आते हैं. देश के सबसे प्रतिष्ठित अस्पताल All India Institute of Medical Sciences यानी एम्स जल्द ही डॉक्टर मरीजों का इलाज करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का भी इस्तेमाल करेंगे.

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इन चीजों में इस्तेमाल होगा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक

इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक के जरिए यह पता लगाया जाएगा कि क्या मरीज की आंखों की रोशनी जाने वाली है? एक्स-रे के मुताबिक, किस मरीज की हालत एमरजेंसी वाली है. किस मरीज को तुरंत एडमिट किए जाने की ज़रुरत है. ये ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब में AI मॉडल्स बहुत मदद कर सकते हैं.

अभी एम्स में चलाए जा रहें 39 AI आधारित प्रोग्राम

एम्स के एंडोक्रिनोलॉजी विभाग के प्रमुख और AI कमेटी के हेड डॉ राजेश खड्गावत के मुताबिक, फिलहाल एम्स के अलग अलग डिपार्टमेंट में 39 AI आधारित प्रोग्राम रिसर्च प्रोजेक्ट के तौर पर चलाए जा रहे हैं. इन अनुभवों को स्टडी करके मरीजों के इलाज में सिलसिलेवार तरीके से AI का प्रयोग किया जाएगा.

7 डॉक्टरों की एक कमेटी बनाई गई

इस काम के लिए 7 डॉक्टरों की एक कमेटी बनाई गई है. ये कमेटी ये भी देखेगी कि इलाज के लिए ड्रोन और रोबोट का इस्तेमाल कैसे किया जाए. मरीजों के स्तर पर उनकी सेहत का रिकॉर्ड का काम AI तकनीक से आसानी से हो सकेगा. जिससे वो मरीज की हालत और टेस्ट रिपोर्ट्स को स्टडी करके उसका एक डायग्नोसिस तैयार कर मरीज की कंडीशन के बारे में बताएगी. एम्स में एक दिन में एक हज़ार ब्लड चेक किए जाते हैं. जिसमें से गंभीरमरीजों के बारे में AI टेक्नीक पता लगाएगी.

AI टेक्निक स होगा आंखों का इलाज

एम्स डायबिटीज़ के मरीजो की आंखों की रोशनी का स्तर चेक करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद ले सकता है. इस तकनीक के कई मॉडल्स आ चुके हैं. इसमें आपकी आंखों की एक फोटो क्लिक की जाएगी. इस फोटो को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित whatsApp chat bot पर अपलोड किया जाएगा.  30 सेकेंड से भी कम समय में ये वॉट्सऐप चैट बॉट आपको बता देगा कि आपकी आंखों का मोतियाबिंद का नतीजा पॉजिटिव है या नेगेटिव. ये तकनीक cataract यानी मोतियाबिंद का पता लगा सकती है. दिल्ली में आंखों के एक निजी अस्पताल में इस तकनीक को फिलहाल मुफ्त में इस्तेमाल करके देखा जा रहा है कि ये कितने सही नतीजे दे रही है. अभी तक AI टेक्नीक के परिणाम 92 प्रतिशत सही आए हैं. यानी 100 में से 8 मरीजों को छोड़कर मोतियाबिंद के सही मरीजों की पहचान की जा सकी है.

AI रखेगा मरीज का हेल्थ रिक़ॉर्ड

प्राइवेट अस्पतालों में कई जगह AI Models का इस्तेमाल पहले से हो रहा है. खासतौर पर बीमारी पकड़ने और मरीज का हेल्थ रिक़ॉर्ड देखने में ये काम में लाया जा रहा है. एम्स को अपनी शुरुआती कोशिश में कामयाबी भी हासिल हुई है. पैरालिसिस के 50 मरीजों की फिजियोथेरेपी यानी एक्सरसाइज़ के लिए एम्स ने आईआईटी की मदद से बनाए गए रोबोटिक ग्लव्स इस्तेमाल किए – जिससे मरीजों की एक्सरसाइज़ की स्पीड बढ़ी और इलाज जल्दी पूरा हो सका. लेकिन अब AI models को पूरे अस्पताल में ज्यादा से ज्यादा मरीजों के लिए इस्तेमाल में लाने के लिए काम किया जाएगा.