पार्टिसिपेटरी नोट्स (पी-नोट्स) के माध्यम से भारतीय पूंजी बाजार में किया जाने वाला निवेश लगातार कम हो रहा है. अक्टूबर तक यह घटकर 66,587 करोड़ रुपये रह गया जो पिछले साढ़े नौ साल का सबसे निचला स्तर है. पी-नोट्स, पंजीकृत विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा ऐसे विदेशी निवेशकों को जारी किए जाते हैं जो भारतीय बाजार में बिना प्रत्यक्ष पंजीकरण के निवेश करने के इच्छुक होते हैं. हालांकि इसके लिए उन्हें एक प्रक्रिया से गुजरना होता है.

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निवेश घटकर 66,587 करोड़ रुपये

सेबी के आंकड़ों के अनुसार पूंजी बाजार में शेयर, ऋण और डेरीवेटिव में पी-नोट्स से कुल निवेश अक्टूबर में घटकर 66,587 करोड़ रुपये रहा जो सितंबर अंत तक 79,548 करोड़ रुपये के स्तर पर था. जबकि इससे पहले अगस्त के अंत में यह आंकड़ा 84,647 करोड़ रुपये था. यह इससे पहले के 10 महीनों में पहली बार निवेश में बढ़ोत्तरी देखी गई थी. आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर में पी-नोट्स के जरिए निवेश मार्च 2009 के बाद सबसे कम रहा. मार्च 2009 में पी-नोट्स से 69,445 करोड़ रुपये का निवेश हुआ था.

नियामक की पहल का असर

विशेषज्ञों का कहना है कि पी-नोट्स के दुरुपयोग को रोकने के लिए बाजार नियामक द्वारा कई कदम उठाए जाने से इसके जरिए होने वाले निवेश में कमी आई है. पिछले महीने पी-नोट्स के जरिए किए गए कुल निवेश में 50,584 करोड़ रुपये का निवेश शेयर बाजार में और बाकी ऋण एवं डेरीवेटिव बाजार में किया गया. समीक्षाधीन अवधि में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश का मात्र 2.2 प्रतिशत पी-नोट्स के जरिए हुआ है जबकि सितंबर में यह आंकड़ा 2.5 प्रतिशत था.

कड़े नियम हुए थे जारी

सेबी ने जुलाई 2017 में पी- नोट्स के जरिये निवेश के लिये कड़े नियम जारी किये. इसके बाद से ही निवेश के इस साधन के जरिये होने वाला निवेश गिरावट में है. सेबी ने पी-नोट्स के जरिये किसी भी तरह की गड़बड़ी अथवा इसके जरिये कालेधन का प्रवाह रोकने के लिये प्रत्येक निवेश साधन के लिये 1,000 डॉलर की फीस रखी है. सेबी ने इसके अलावा एफपीआई पर कुछ और शर्तें भी लगाई हैं. 

(इनपुट एजेंसी से)