फसल की बंपर पैदावार के कारण कीमतों में नरमी से कृषि क्षेत्र के लिये 2018 अच्छा नहीं रहा लेकिन नए साल में सरकार का इस क्षेत्र पर विशेष जोर होगा. भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार आम चुनाव से पहले किसानों की नाराजगी दूर करने के लिए बड़े पैकेज की घोषणा कर सकती है. सूत्रों के अनुसार, सरकार कृषक समुदाय को राहत देने के लिये समय पर कर्ज चुकाने वाले किसानों को ब्याज से पूरी तरह छूट, बीमा प्रीमियम में कमी तथा कच्चे माल की लागत पूरी करने के लिए आय उपलब्ध कराने जैसे उपाय कर सकती है.

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सरकार के प्रमुख निर्णयों में फसल लागत का न्यूनतम समर्थन मूल्य कम-से-कम डेढ़ गुना करना शामिल हैं. भाजपा ने 2014 में आम चुनावों के दौरान यह वादा किया था. हालांकि आलोचक लागत निर्धारण के तरीकों पर सवाल खड़े किये.

किसानों की आय दोगुनी करने का मकसद

सरकार ने 15,000 करोड़ रुपये की ‘प्रधानमंत्री-आशा’ योजना भी शुरू की ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य मिले. यह 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की योजना के तहत यह कदम उठाया गया. वहीं, गन्ना किसानों को राहत देने तथा उनके बकाये भुगतान में मदद के लिए चीनी मिलों को कई प्रोत्साहन दिए गए.

कृषि कर्ज लक्ष्य बढ़ाया गया

चालू वित्त वर्ष के लिये कृषि कर्ज लक्ष्य एक लाख करोड़ रुपये बढ़ाकर 11 लाख करोड़ रुपये किया गया है. इतना ही नहीं किसानों को राहत देने के लिये खाद्य तेल और दलहन समेत कई वस्तुओं के लिये आयात शुल्क बढ़ाये गये. वहं चीनी और प्याज के मामले में निर्यात प्रोत्साहन दिये गये. इन उपायों के बावजूद किसानों को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार दोनों में अपनी उपज लाभकारी मूल्य पर बेचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. 

2018 में बढ़ी किसानों की समस्या

वास्तव में किसानों की वित्तीय समस्या 2018 में और बढ़ी. इसका कारण खाद्यान्न उत्पादन करीब 28.5 करोड़ टन के स्तर पर पहुंच गया. वहीं तिलहन, गन्ना, कपास के साथ बागवानी फसलों में अच्छी पैदावार से कई फसल के भाव एमएसपी ही नहीं बल्कि लागत से भी नीचे चले गये. ऐसी रिपोर्ट आती रही कि किसानों ने अपनी उपज सड़कों पर डाल दी है. वहीं, कुछ मामलों में खुदकुशी की भी रिपोर्ट आई.

सूखे से हालात हुए खराब

कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों के कई भागों में सूखे की स्थिति से किसानों की समस्या और बिगड़ी. फसलों के बेहतर मूल्य और कर्ज माफी समेत अपनी विभिन्न मांगों को लेकर किसानों ने इस साल एक से अधिक बार दिल्ली मार्च किए और देश के कई भागों में व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन किए. हालांकि भाजपा शासित केंद्र सरकार ने कर्ज माफी से इनकार किया लेकिन विपक्षी कांग्रेस ने हाल में विधानसभा चुनावों में इसकी घोषणा की जिसका फायदा भी पार्टी को मिलता दिखा.

चुनाव से पहले किसानों की रिझाने की कोशिश

चार राज्यों कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनी और चुनावी वादा पूरा करते हुए पार्टी ने किसानों के कर्ज भी माफ किए. इससे केंद्र पर किसानों के अनुकूल फैसले लेने को लेकर दबाव बना है. अब अगले साल लोकसभा चुनावों को देखते हुए यह तय है कि भाजपा नीति राजग सरकार तथा विपक्षी किसानों को रिझाने की कोशिश करेंगे और लुभावनी वादा कर सकते हैं.

सहमत नहीं हैं पूर्व कृषि सचिव

उधर, पूर्व कृषि सचिव एस के पटनायक क्षेत्र में व्यापक संकट बारे में मौजूदा विचार से सहमत नहीं है. उनका कहना है, ‘‘जब उत्पादन अधिक हो, संकट नहीं हो सकता. यह कुछ चीज से वंचित होने का सवाल है. किसानों को हो सकता है, उम्मीद के मुताबिक कीमत नहीं मिल रही हो.’’ पटनायक ने पीटीआई भाषा से कहा, ‘‘कुछ क्षेत्रों में समस्या का कारण फसल खराब होना तथा उच्च ब्याज पर कर्ज है. ये समस्याएं क्षेत्र के लिये नई नहीं है....’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘कृषि कर्ज माफी दीर्घकालीन समाधान नहीं है..अगर सरकार के पास किसानों के कर्ज माफ करने की क्षमता है, यह अच्छा है. लेकिन अगर यह अन्य जगह बजट में कटौती के आधार पर होगा, तब यह कोई बेहतर उपाय नहीं है.’’ 

किसानों की आय दोगुनी करने के लिये बनी उच्च स्तरीय समिति के चेयरमैन अशोक दलवई ने कहा कि सरकार विपणन के रास्ते में चुनौतियों को समझ रही है और दीर्घकालीन नजरिये से कई पहल की है जिसका असर आने वाले समय में दिखेगा.

(भाषा)