Farming Tips: उत्तर भारत पर ठंड ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली है. पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी का दौर लगातार जारी है जिसके चलते मैदानों में ठंड बढ़ने लगी है. उत्तर भारत के ज्यादातर राज्यों में शीतलहर देखने को मिल रही है. बढ़ती ठंड ने किसानों की परेशानी बढ़ा दी है. तापमान में तेज गिरावट के कारण पाले की भी आशंका रहती है. इससे फसल के ग्रोथ और फली विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. राई-सरसों की खेती (Mustard Cultivation) करने वाले किसानों को पाला से अपनी फसल को बचाने के लिए समय पर कदम उठाने जरूरी हैं, वरना पाला से उनकी फसल बर्बाद हो सकती है. पाला पड़ने का उचित अनुमान लगाकर इसके घातक प्रभाव से फसलों का आसानी से बचाया जा सकता है.

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किसानों को राई-सरसों की बुवाई के समय ध्यान रखना चाहिए कि बीज उन्नत प्रजातियों के होने के साथ स्वस्थ हों. इसके अलावा समय पर बुवाई और फसल सुरक्षा तरीके अपनाकर सरसों की उत्पादका को और ज्यादा बढ़ाया जा सकता है. पूसा सरसों 25, पूसा सरसों 26 और पूसा सरसों 28, सरसों की उन्नत प्रजाति हैं. ये प्रजातियां कम समय की हैं और देरी से बुवाई करने पर भी अच्छी पैदावार देने में सक्षम हैं.

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ऐसे करें बचाव

आईसीएआर के मुताबिक, पाला से राई-सरसों को बचाने के लिए सल्फरयुक्त रसायनों का इस्तेमाल फायदेमंद होता है. डाइमिथयाइल सफ्लो ऑक्साइड का 0.2% या 0.1% थायो यूरिया का छिड़काव फायदेमंद होता है. इसके साथ-साथ पाला पड़ने के समय सिंचाई करने से भी पाले का प्रभाव का दुष्प्रभाव कम होता है.

सरसों में सिंचाई, पानी की उपलब्धता के आधार पर करें. अगर एक सिंचाई उपलब्ध हो तो 50-60 दिनों में करें. दो सिंचाई उपलब्ध होने पर पहली सिंचाई बुवाई के 40-50 दिनों बाद और दूसरी सिंचाई 90-100 दिनों बाद करें. अगर तीन सिंचाई उपलब्ध है तो पहली 30-35 और अन्य दो 20-25 दिनों के अंतराल पर करें. बुवाई के लगभग 2 महीने बाद जब फलियों में दाने भरने लगे उस समय भी सिंचाई करें.

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कीटों से बचाव का तरीका

सरसों कुल की फसलों पर लगभग तीन दर्जन से भी ज्यादा कीटों का हमला होता है. इसमें माहूं और आरा मक्खी मुख्य कीट है. माहूं कीट लगभग 35 से 70 फीसदी तक उपाज में नुकसान और 5-10 फीसदी तक तेल में कमी करता है. जब कीट का प्रकोप औसतन 25 कीट प्रति पौधा या 10 फीसदी पौधों पर हो जाए तो कीटनाशक का इस्तेमाल करना चाहिए. किसान भाई इमीडाक्लोरोप्रिड (17.8%) का 20-25 ग्राम या मोनोक्रोटोफॉस 35 डब्ल्यू.एस.सी एक्टिव तत्व प्रति हेक्टेयर या डाइमेथोएट 30 ई.सी या मिथाइल डिमेटान 25 ई.सी या क्यूनलफॉस 25 ई.सी या फॉस्फोमिडान 85 डब्ल्यू.एस.सी  250 मिली या थायमिडान 25 ई.सी 1000 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से 600-800 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.