Fisheries: झारखंड के हजारीबाग जिले के निवासी जोधन प्रसाद खेती-बाड़ी छोड़कर मछली पालक बन गए. बीए करने के बाद उन्होंने एक छोटे से तालाब में मछली पालन (Fisheries) का काम शुरू किया. इससे उन्हें हर महीने ₹32,000 की कमाई हो जाती थी और अपनी जरूरतों को पूरा करने में मदद मिली. लेकिन उन्हें बीमारी के प्रकोप और फंड की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा. इस दौरान, उन्होंने केज कल्चर (Cage Culture) में लगे कई मछली पालन करने वाले किसानों से मुलाकात की और अपनाई जाने वाली तकनीक, उत्पादन और फायदे  के बारे में सीखा. इसके बाद, उन्होंने केज कल्चर अपनाने की ठानी.

3 लाख रुपये में शुरू किया मछली पालन का काम

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जोधन प्रसाद ने झारखंड सरकार के मत्स्य विभाग (State Fisheries Department) के मार्गदर्शन और तकनीकी सहायता के तहत, उन्होंने नीली क्रांति योजना (Blue Revolution Scheme) के तहत केज कल्चर गतिविधि के लिए आवेदन किया और 1.8 x 2.4 x 1.2 m3 डायमेंशन के साथ 12 टन उत्पादन क्षमता के साथ केज लगाया.

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राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (NFDB) के मुताबिक, इस प्रोजेक्ट की कुल लागत 3 लाख रुपये थी, जिसमें से 2 लाख रुपये कुल परियोजना लागत ₹ 3 लाख थी, जिसमें से ₹2.7 लाख की सब्सिडी मिली. बाकी उन्होंने अपनी जेब से लगाया. इसके बाद उन्होंने मछली को पालने में शामिल जरूरी काम को किया. वह बेहतर मैनेजमेंट का पालन करते हैं. जैसे केज के जाल की नियमित सफाई और ट्रीटमेंट, पानी को बदलने के लिए केज को एक अंतराल पर ट्रांसफर करना, सर्दियों के मौसम में प्रत्येक केज में चूने की थैली लटकाना, फीडिंग मैनेजमेंट और समय पर मछलियों को निकालकर बेचना.

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