Natural Farming: युवा प्रगतिशील किसान प्रवीण कुमार ने खेती की लागत को शून्य तक पहुंचाकर अन्य किसानों के लिए उदाहरण पेश किया है. बाजार और समय को ध्यान में रखते हुए अपने आप को ढालने वाले प्रवीण इन दिनों मिश्रित खेती कर रहे हैं. इसमें उसने कुछ जमीन पर प्राकृतिक खेती को अपनाया और पहले साल में बेहतर परिणाम मिलने के बाद अब पूरी तरह प्राकृतिक खेती करते हैं. खेती में नए प्रयोग के लिए उन्हें साल 2011 में कृषक प्रेरणाश्रोत अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है. इस वजह से उनकी पहचान एक प्रगतिशील किसान के रूप में बनी है.

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प्रवीण ने अपने खेतों में प्राकृतिक खेती के तहत मक्का, सोयाबीन, अरहर, घीया और टमाटर लगाया. इसमें बाजार से कुछ भी लाने की जरूरत नहीं पड़ती है, जिससे खर्च नाम नात्र का रह जाता है. उनका कहना है कि प्राकृतिक खेती में बहुत कम बीमारियां आती हैं और जो अन्न या सब्जियां पैदा होती हैं उनका स्वाद और क्वालिटी बेहतर होती है. जिसकी वजह से इसे बाजार में बेचने में किसी भी प्रकार की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ता.

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सरकार भी दे रही बढ़ावा

सरकार जैविक, प्राकृतिक खेती और पारंपरिक खेती प्रणाली में प्रकृति आधारित उर्वरकों, पोषक तत्वों और कीटनाशकों के महत्व से अवगत है और विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत उनके उत्पादन और उपयोग को बढ़ावा दे रही है.

प्राकृतिक खेती में है फायदे ही फीयदे

उन्होंने प्राकृतिक खेती विधि से 6 किलोग्राम बीज से 1 क्विंटल गेहूं उगाई है. हिमाचल प्रदेश कृषि विभाग के मुताबिक, प्रवीण का कहना है कि प्राकृतिक खेती सस्त तो है ही, साथ ही इससे पैदावार में कोई कमी नहीं आती है. जो किसान इसे पूरी तरह अपनाता है उसके खेतों से बीमारियां दूर रहती हैं.

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5 हजार लगाकर कमाए 2.15 लाख रुपये

प्रवीण का कहना है कि बाजार में लोगों को उनकी सब्जियों का इंतजार रहता है. कई लोग उनके रेगुलर खरीदार बन गए हैं और केवल उनके खेतों से उगी हुई सब्जियां ही खरीद रहे हैं. उनका कहना है कि पहले रासायनिक खेती में खर्च 50,000 रुपये होती थी और कमाई 2 लाख रुपये. अब प्राकृतिक खेती में सिर्फ 5 हजार रुपये का खर्चा होता है और 2 लाख से ज्यादा कमा हो जाती है. प्राकृतिक खेती में लागत में घटती औऱ मुनाफा बढ़ता है.

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