आए दिन आप किसी ना किसी स्कैम के बारे में सुनते होंगे. कोई शेयर बाजार से जुड़ा होता है तो कोई निवेश से. इन स्कैम के चक्कर में भी लोग इसलिए फंस जाते हैं, क्योंकि हर बार स्कैम करने का तरीका कुछ अलग होता है, जो देखने में बिल्कुल सच सा लगता है. आज Startup Scam सीरीज में हम एक ऐसे स्कैम की बात कर रहे हैं, जिसके तहत करीब 5.5 करोड़ लोगों को 50 हजार करोड़ रुपये से भी अधिक का चूना लगाया गया. इतने बड़े घोटाले को अंजाम देने के लिए देश भर में 70 लाख एजेंट्स की मदद ली गई. आइए जानते हैं कैसे एक दूध बेचने वाले शख्स ने किया 50 हजार करोड़ रुपये का स्कैम.

PACL Scam

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हम बात कर रहे हैं पीएसीएल (PACL) यानी पर्ल एग्रोटेक कॉरपोरेशन लिमिटेड की, जिसे दूध बेचने वाले निर्मल सिंह भंगू ने अंजाम दिया था. यह एक पिरामिड स्कीम फ्रॉड था, जिसमें लोगों से भारी भरकम रिटर्न के वादे किए गए. इसमें लोगों से कहा गया कि वह इस कंपनी में पैसे लगाएं. कंपनी ने कहा था कि जो पैसे लोग इसमें निवेश कर रहे हैं, उससे उनके नाम पर जमीन खरीदी जाएगी. कंपनी का दावा था कि उस जमीन को एग्रीकल्चरल और कमर्शियल इस्तेमाल के लिए डेवलप किया जाएगा. इसके बाद उसे मोटे मुनाफे पर बेचे जाने की बात कही गई. कंपनी ने कहा कि इससे जो मुनाफा होगा, उससे लोगों को तगड़ा रिटर्न मिलेगा. 

जमीन के कागज के नाम पर मिलती थी एक रसीद

कंपनी जो भी जमीन खरीद रही थी, उसकी कोई सेल डीड या प्रॉपर्टी के कोई कागज नहीं दिखाती थी. लोगों को सिर्फ एक रिसीप्ट मिल जाती थी, जो असल में सिर्फ कागज के एक टुकड़े से ज्यादा कुछ नहीं थी. कंपनी लोगों को बताती थी कि वह भारत के किसी भी हिस्से में जमीन खरीदेगी. खैर, लोगों को भी इससे कोई खास मतलब नहीं था, क्योंकि कंपनी लोगों को फिक्स रिटर्न का वादा करती थी. कंपनी के अनुसार लोग 5 साल बाद या तो अपना रिटर्न ले सकते थे या फिर अपनी जमीन ले सकते थे. लोग सिर्फ रिटर्न पर फोकस करते थे. कंपनी की तरफ से फिक्स रिटर्न का वादा भी किया जा रहा था. 10 साल में पैसे 4 गुना तक करने का वादा किया गया. 

कौन है निर्मल सिंह भंगू?

पर्ल्स ग्रुप का मालिक निर्मल सिंह भंगू पंजाब के बरनाला जिले का रहने वाला है. बताया जाता है कि वह जवानी के दिनों में अपने भाई के साथ साइकिल से दूध बेचता था. इसी दौरान उसने पॉलिटिकल साइंस में पोस्‍ट ग्रैजुएशन भी किया. इसके बाद नौकरी की तलाश में 70 के दशक में कोलकाता चला गया. जहां उसने एक फेमस इनवेस्टमेंट कंपनी पियरलेस में कुछ साल तक काम किया. उसके बाद इन्वेस्टर्स से करोड़ों की ठगी करने वाली हरियाणा की कंपनी गोल्डन फॉरेस्ट इंडिया लिमिटेड में काम करने लगा. इस कंपनी बंद होने के बाद निर्मल सिंह बेरोजगार हो गया.

यूं चल रही थी ये पोंजी स्कीम

यह एक पोंजी स्कीम थी, तो इसे उसी तरह चलाया गया. कंपनी ने शुरुआत में कुछ लोगों को तगड़े रिटर्न भी दिए, जिससे लोग हर जगह कंपनी की बातें करने लगे. पोंजी स्कीम के तहत कंपनी नए निवेशकों के पैसों में से पुराने निवेशकों को रिटर्न दिए जा रहे थे. तगड़ा रिटर्न मिलता देख और लोग भी इसमें पैसा लगाने लगे. कंपनी ने इस स्कैम को और बड़ा बनाने के लिए पिरामिड स्कीम शुरू कर दी, जिसके तहत सबको अपने नीचे 2 लोग जोड़ने थे. एजेंट्स को कंपनी तगड़े कमीशन दे रही थी, जिसकी वजह से लोग अपने दोस्तों, रिश्तेदारों को जोड़ते चले गए. कंपनी की तरफ से लोगों को लुभाने के लिए कई सेमिनार भी आयोजित किए जाते थे, जिसमें कंपनी अपने बारे में और इन्वेस्टमेंट के फायदों के बारे में बताती थी. 

कंपनी के लेकर किया जाता था गुमराह

कंपनी यह भी कहती थी कि वह 1983 से काम कर रही है, लेकिन ऐसा नहीं था. कंपनी 1996 से शुरू हुई थी. 1983 में पर्ल्स ग्रुप की ही एक दूसरी कंपनी पीजीएफ (PGF) शुरू हुई थी. लोगों को भरोसा जीतने के लिए उन्होंने कहा कि अगर आप इस बात को लेकर डर रहे हैं कि कंपनी बंद हो गई तो क्या होगा, तो आपको जो रसीद मिली है, उसे लेकर आप कॉरपोरेट अफेयर्स मिनिस्ट्री में जा सकते हैं. यह एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी है, जो एमसीए पर रजिस्टर्ड है. हालांकि, उस रसीद का कोई मतलब नहीं था. 

और फिर सेबी के पास जा पहुंची शिकायत

1998-99 के दौरान सेबी के  पास ऐसी बहुत सारी स्कीम की शिकायतें आ रही थीं, जिसके चलते सेबी ने एक नियम बनाया. इस नियम का नाम था कलेक्टिव इन्वेस्टमेंट स्कीम रेगुलेशन. इसके तहत लोगों से पैसा जुटाया जाता है और जिस काम के लिए उसे लिया गया होता है, वहां इस्तेमाल किया जाता है. इसके बाद उससे मिलने वाले रिटर्न को लोगों में बांट दिया जाता है. सेबी ने पाया कि पीएसीएल और पीजीएफ दोनों ही सीआईएस रेगुलेशन को फॉलो नहीं कर रही है. ऐसे में सेबी ने दोनों कंपनियों को बंद करने और निवेशकों का पैसा उन्हें वापस करने को कहा. 

सेबी को कोर्ट में चुनौती दी

इसके बाद दोनों कंपनियां कोर्ट चली गईं. पीजीएफ पंजाब हाईकोर्ट जा पहुंची और पीएसीएल ने राजस्थान हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. पंजाब हाईकोर्ट ने पीजीएफ को सेबी के नियम कायदे ना मानने के चलते बिजनेस बंद करने का निर्देश दिया. हालांकि, कंपनी के प्रमोटर्स पर कोर्ट की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं हुई. दोनों ही कंपनियां जमीन खरीदने और रिटर्न को लोगों में देने की बात करती थी. पीजीएफ में बड़े अमाउंट पर निवेश लिया जाता था और बड़े प्लॉट की रिसीप्ट दी जाती थी. पीएसीएल में छोटे निवेश भी लिए जाते थे और उन्हें रिसीप्ट दी जाती थी. साल 2003 में पीएसीएल की स्कीम को राजस्थान में सीआईएस स्कीम नहीं मानी और बिजनेस चलाते रहने की मंजूरी दी. 

मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, 10 साल का वक्त लगा

सेबी सुप्रीम कोर्ट गई. 25 फरवरी 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सीआईएस है, सेबी को जांच करने और कंपनी पर एक्शन लेने को कहा. पीएसीएल के प्रमोटर्स अपने लिए असेट खरीदते जा रहे थे. कंपनी ने तो P7 नाम का एक न्यूज चैनल भी शुरू किया था, जिसके चलते वह अपने ऑपरेशन चलाती थी और इसी वजह से लोगों को कंपनी पर भरोसा बना रहा. पीएसील कंपनी आईपीएल टीम किंग्स 11 पंजाब की स्पॉन्सर भी रह चुकी है. क्रिकेटर ब्रेटली को कंपनी ने ब्रांड अंबेसडर बनाया था. मामला लंबे वक्त तक कोर्ट में खिंचता रहा, जिसके चलते कंपनी तेजी से लोगों से पैसे जुटाते रही और करीब 5.5 करोड़ लोग इस स्कैम की चपेट में आ गए. इसमें पंजाब, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के अधिकतर लोग थे. 

सेबी ने दिया निवेशकों के पैसे वापस करने का आदेश

22 अगस्त 2014 को सेबी ने जांच के बाद कहा कि कंपनी निवेशकों के सारे पैसे वापस करे, लेकिन कंपनी ने ऐसा नहीं किया. इसके बाद फिर मामला ईडी के पास चला गया और उसने पीएसीएल चीफ निर्मल सिंह बांगू से पूछताछ शुरू कर दी और असेट्स अटैच करने शुरू कर दिए. ऑस्ट्रेलिया में ही उसकी करीब 500 करोड़ रुपये की प्रॉपर्टी पाई गई. इसके अलावा भी बहुत सारे असेट्स को अटैच किया गया और फिर रिफंड की प्रोसेस शुरू की गई. 

2016 में सीबीआई ने भंगू को गिरफ्तार किया. जांच में सीबीआई को 1300 बैंक खाते मिले, जो संदिग्ध थे. सीबीआई ने करीब 280 करोड़ रुपये की संपत्तियां जब्त कीं. 108 करोड़ रुपये दिल्ली हाईकोर्ट में जमा भी किए गए थे. एजेंसी ने करीब 20 हजार करोड़ रुपये के दस्तावेज भी जब्त किए, जिनकी वैल्यू करीब 5000 करोड़ रुपये पाई गई. 

अभी सेबी की तरफ से रिफंड की बात हुई ही थी कि जिन लोगों ने पैसे लगाए थे, उनके साथ रिफंड के नाम पर भी एक फ्रॉड हो गया. बहुत से निवेशकों को फोन आया कि रिफंड पाने के लिए उन्हें 10 फीसदी का चार्ज देना होगा. इस तरह कई लोगों के साथ ये फ्रॉड हुआ, जिसके बाद सेबी ने sebipaclrefund.co.in नाम की वेबसाइट शुरू की और लोगों को रिफंड देने शुरू किए. इस वेबसाइट के अनुसार कंपनी ने अभी तक 17 हजार रुपये तक निवेश वाले लोगों को उनके पैसे रिफंड कर दिए हैं.

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