राजस्थान के राजसमंद जिले की एक पंचायत है पिपलांत्री. लगभग 6000 की आबादी वाला यह गांव की कामयाबी की कहानी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गर्व के साथ सुनाई जाती है. गांव में एकता की मिसाल का यह आलम है कि आज इस गांव में हर हाथ को काम है और हर बेटी के लिए एक एफडी यानी फिक्स डिपोजिट.राजसमंद से करीब 15 किलोमीटर दूर बसा पिपलांत्री गांव देश ही नहीं दुनिया के लिए एक निर्मल ग्राम, स्वजल ग्राम, आदर्श ग्राम और अब पर्यटक ग्राम बन गया है.

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समस्याओं का था अंबार

इस गांव की कामयाबी की कहानी शुरू होती है वर्ष 2005 से. इस साल पंचायती चुनाव में गांव के ही एक नौजवान श्याम सुंदर पालीवाल गांव के सरपंच चुने गए. उस समय पानी की समस्या से जूझ रहे इस गांव में हर कदम पर समस्याएं मुंह फैलाएं खड़ीं थीं. बेरोजगार नौजवानों की फौज नशे की तरफ जा रही थी. ऊंची-नीची पहाड़ी पर बसे इस गांव में सिंचाई के साधन नहीं होने से खेत बंजर हो रहे थे. बच्चों की शिक्षा का कोई माकूल इंतजाम नहीं था.

श्याम सुंदर पालीवाल ने सबसे पहले गांव में पानी की समस्या को दूर करने की ठानी और गांव के ही बेरोजगार नौजवानों को लेकर बरसाती पानी को इकट्ठा करने के लिए लगभग एक दर्जन स्थानों पर एनीकट तैयार करवाए. गांव के नंगे जंगलों में पौधारोपण का काम शुरू करवाया और शिक्षा में सुधार के लिए स्कूल की इमारतों को दुरस्त करवाया. देखते ही देखते गांव की तस्वीर बदलने लगी. बरसात का पानी एककटों में एकत्र होने लगा और कुछ वर्षों में जलस्तर ऊपर उठने लगा.

सूखे से जूझते गांव में पानी के झरने

आज ये हालात हैं कि जहां कभी जल स्तर 500 फुट की गहराई था, आज वहां पानी के सैकड़ों झरने फूट रहे हैं. श्याम सुंदर बताते हैं कि उन्होंने स्वच्छता को लेकर काम शुरू किया और खुद ही झाड़ू लेकर सफाई करनी शुरू की. उनकी देखादेखी गांव के अन्य लोग भी साफ-सफाई में आगे आने लगे. और गांव में इतनी साफ-सफाई रहने लगी कि 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति ने पिपलांत्री को स्वच्छ ग्राम पंचायत के पुरस्कार से सम्मानित किया.

हर किसी को मिलता है काम

पांच साल बाद श्याम सुंदर पिपलांत्री के सरपंच तो नहीं बने, लेकिन जो भी सरपंच बनता है, उन्हीं के दिशा-निर्देशन में काम करता है. श्याम सुंदर बताते हैं कि उन्होंने गांव की खाली पड़ी जमीन पर आंवला और एलोवीरा लगाने का काम किया. इस समय गांव में 25,000 आंवले के पेड़ हैं. पंचायत की जमीन पर सैकडो़ं बीघा में एलोवीरा लगवाया. इस काम के लिए महिलाओं के स्वयं सहायता समूह बनाए. जब एलोवीरा की फसल तैयार हुई तो गांव में ही एलोवीरा प्रोसेसिंग प्लांट लगाया गया. गांव की महिलाएं एलोवीरा से जूस, क्रीम आदि तैयार करके उन्हें बाजार में बेचने लगीं. इससे गांव में ही महिलाओं को रोजगार मिल गया. श्याम सुंदर बताते हैं कि अब वह आंवला प्रोसेसिंग प्लांट और बांस उद्योग लगाने की तैयारी कर रहे हैं. राजस्थान सरकार ने इसके लिए एक पक्की इमारत बनवाने का फैसला किया है. 

लड़की के जन्म पर करा दी जाती है FD

श्याम सुंदर पालीवाल ने गांव में एक और योजना शुरू की है. यहां लड़की के जन्म पर लड़की के परिजनों द्वारा 51 पौधे लगाए जाते हैं, और वही परिवार उनकी देखरेख करता है. जब तक लड़की की ब्याह-शादी की उम्र होगी, पौधे पेड़ बनकर तैयार हो जाएंगे. और इन पेडों की बिक्री से होने वाली आय से लड़की की शादी की जाएगी. जब किसी घर में किसी मृत्यु होती है तो उसकी स्मृति में भी पेड़ लगाने की यहां परंपरा है. पेड़ों को बचाने के लिए यहां हर साल रक्षाबंधन के त्योहार पर महिलाएं पेड़ों को राखी बांधती हैं. और इसके लिए एक बड़ा आयोजन होता है.

पिपलांत्री की कामयाबी को देखकर राजस्थान सरकार ने राज्य की 200 से अधिक पंचायतों को पिपलांत्री की तर्ज पर विकसित करने की योजना चलाई है. श्याम सुंदर पालीवाल की कामयाबी का आलम यह है कि आज देशभर से उन्हें गांवों स्वच्छता, जल संरक्षण और पौध रोपण का प्रोजेक्ट लागू करने के लिए उन्हें आमंत्रित किया जाता है. महाराष्ट्र सरकार की जल संरक्षण कमेटी में श्याम सुंदर को सम्मानित सदस्य बनाया गया है. 

पिपलांत्री और श्याम सुंदर पालीवाल की कामयाबी को देखकर कहा जा सकता है कि कामयाब होने के लिए शहरी संसाधन नहीं बल्कि इमानदारी के साथ मजबूत इरादों की जरूरत होती है. आज इस गांव को देखने के लिए यहां विदेशी पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है.