रिजर्व बैंक जून में होने वाली द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में मुख्य नीतिगत दर रेपो में एक और कटौती कर सकता है. उसके बाद मुद्रास्फीति और राजकोषीय घाटे की आशंका से साल के बचे हुए महीनों में रेपो (फौरी उधार पर ब्याज की दर) में कटौती की गुंजाइश कम होगी. वैश्विक स्तर पर बाजार संबंधी सूचनाएं उपलब्ध कराने वाली लंदन की फर्म आईएचएस मार्किट ने एक रपट में यह जानकारी दी. 

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केंद्रीय बैंक ने आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिये इस साल फरवरी और अप्रैल में रेपो दर में 0.25-0.25 प्रतिशत की कटौती की. इस समय आरबीआई की यह दर 6 प्रतिशत वार्षिक है जिस पर वह बैंकों को एक दिन के लिए नकद धन उधार देता है.

वैश्विक मौद्रिक नीति कार्रवाई तथा उसका आर्थिक प्रभाव के बारे में लंदन की आईएचएस मार्किट ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि आरबीआई 2020 की शुरूआत से मध्य के बीच मौद्रिक नीति को कड़ा कर सकता है.

रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू और वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में नरमी तथा देश में महंगाई दर के आरबीआई के मुद्रास्फीति लक्ष्य से नीचे रहने के साथ ऐसी संभावना है कि केंद्रीय बैंक नीतिगत दर में और कटौती कर सकता है.

इसमें कहा गया है, ‘‘जून के बाद मुद्रास्फीति दबाव तथा राजकोषीय घाटा बढ़ने की आशंका को देखते हुए नीतिगत दर में और कटौती की गुंजाइश सीमित होगी. हमारा अनुमान है कि जून के बाद 2019 में नीतिगत दर में कटौती नहीं होगी जबकि 2020 की शुरूआत से मध्य के बीच मौद्रिक नीति को कड़ा किया जा सकता है.’’ 

रिपोर्ट के अनुसार 2019 की पहली तिमाही में मौद्रिक नीति में नरमी के साथ कर्ज नियमों में ढील तथा चुनावों के दौरान खर्च बढ़ने से 2019-20 की पहली छमाही में वृद्धि को कुछ गति मिलेगी.

इसमें यह भी कहा गया है कि आने वाले महीनों में खासकर मानसून के सामान्य से कमजोर रहने के अनुमान को देखते हुए खाद्य पदार्थ तथा ईंधन के दाम में तेजी आने की आशंका है. इससे सकल महंगाई दर (हेडलाइन मुद्रास्फीति) 5 प्रतिशत से ऊपर निकल सकती है. 2019 में इसके औसतन 4.2 प्रतिशत तथा 2020 में 5.3 प्रतिशत रहने की संभावना है.