RBI Monetary Policy Committee: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) हर दो महीने या समय-समय पर मोनेटरी पॉलिसी कमिटी (RBI Monetary Policy Committee) के फैसले का अनाउंसमेंट करता है. आपको जब तब सुनने को मिलता है कि आरबीआई ने आज नीतिगत दरों में बढ़ोतरी कर दी या कटौती कर दी या कोई बदलाव नहीं किया. आखिर ये आरबीआई की मोनेटरी पॉलिसी की समीक्षा होती क्या है? क्या कभी आपने गौर किया है? अगर नहीं तो आज हम इसे अच्छी तरह समझने की कोशिश करते हैं. दरअसल, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI), अधिनियम, 1934 (आरबीआई अधिनियम, 1934) (2016 में संशोधित) के तहत, आरबीआई को भारत में मौद्रिक नीति (Monetary Policy) के संचालन की जिम्मेदारी सौंपी गई है, जिसका मुख्य मकसद देश के विकास और महंगाई को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता को बनाए रखना है.

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आरबीआई मोनेटरी पॉलिसी कमिटी

साल 2016 से पहले आरबीआई अकेले ही नीतिगत दरों पर फैसला कर इसकी अनाउंसमेंट करता था, लेकिन फिर इसके लिए एक कमिटी बनी और फिर यही कमिटी आरबीआई मोनेटरी पॉलिसी कमिटी कहलाती है. कमिटी में 6 सदस्य होते हैं. इसमें एक, आरबीआई के गवर्नर कमिटी के चेयरपर्सन की भूमिका में होते हैं. दूसरे, एक आरबीआई के डिप्टी गवर्नर होते हैं जो कमिटी के इन्चार्ज होते हैं. तीसरे, आरबीआई के एक ऑफिसर होते हैं जिन्हें सेंट्रल बोर्ड नॉमिनेट करता है.

इसके अलावा, तीन सदस्य आरबीआई से बाहर के होते हैं. आरबीआई (RBI) की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक, फिलहाल ऐसे तीन सदस्यों (rbi monetary policy committee members 2022) में- इंदिरा गांधी विकास अनुसंधान संस्थान से प्रोफेसर आसिमा गोयल, आईआईएम अहमदाबाद से प्रोफेसर जयंत आर वर्मा और नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च, दिल्ली के सीनियर एडवाइजर डॉ. शशांक भिंडे मोनेटरी पॉलिसी कमिटी में सदस्य हैं. तीनों बाहरी सदस्यों का कार्यकाल 4 साल का होता है या अगले आदेश तक बने रहते हैं. 

कमिटी की बैठक और कैसे करती है काम

आरबीआई मोनेटरी पॉलिसी कमिटी (MPC) की बैठक साल में कम से कम चार बार होती है. वैसे विशेष परिस्थिति में कमिटी कभी भी अपने अचानक लिए फैसले का ऐलान कर सकती है. मोनेटरी पॉलिसी कमिटी या एमपीसी, महंगाई के टारगेट को हासिल करने के लिए जरूरी नीतिगत दर यानी रेपो रेट तय करता है. रेपो रेट वह रेट होता है, जिस रेट पर आरबीआई कमर्शियल बैंकों (Commercial Banks) और दूसरे बैंकों को लोन देता है. रेपो रेट से बैंकों के ब्याज दर पर असर पड़ता है. इसी के आधार पर आप सस्ता या महंगा लोन लेते हैं.

मोनेटरी पॉलिसी कमिटी में हर सदस्य के पास एक वोट करने का अधिकार होता है. मोनेटरी पॉलिसी कमिटी या मौद्रिक नीति समिति (RBI Monetary Policy Committee) का हर सदस्य प्रस्तावित प्रस्ताव के पक्ष या विपक्ष में वोटिंग की वजह बताते हुए स्टेटमेंट लिखते हैं. अगर प्रस्तावित प्रस्ताव पर वोटिंग बराबर होती है तो निर्णायक वोटिंग मोनेटरी पॉलिसी कमिटी के चेयरपर्सन यानी आरबीआई के गवर्नर करते हैं और फिर आखिरी अनाउंसमेंट सार्वजनिक किए जाते हैं.

हर 6 महीने में एक रिपोर्ट होती है जारी

आरबीआई मोनेटरी पॉलिसी कमिटी (RBI Monetary Policy Committee) हर छह महीने में एक रिपोर्ट जारी करती है जिसमें बीते छह महीनों में महंगाई की क्या स्थिति रही और आने वाले समय में महंगाई (inflation) का रुख कैसा रहेगा, की व्याख्या की जाती है. इसके अलावा, मुद्रास्फीति,विकास दर और जोखिम संतुलन को लेकर भी अनुमान लगाया जाता है. साथ ही इस रिपोर्ट में अर्थव्यवस्था की स्थिति का आकलन, वास्तविक अर्थव्यवस्था, वित्तीय बाजारों और स्थिरता, राजकोषीय स्थिति और बाहरी क्षेत्र को कवर करना, जो मौद्रिक नीति निर्णयों पर असर डाल सकता है, की चर्चा की जाती है.

इन दरों पर फैसले करती है कमिटी

आरबीआई मोनेटरी पॉलिसी कमिटी अपनी समीक्षा बैठक में रेपो रेट के अलावा, रिवर्स रेपो रेट, बैंक रेट, सीआरआर, एसएलआर, एसडीएफ रेट, एमएसएफ रेट, एलएएफ,एलएएफ कॉरिडोर और अन्य बातों की घोषणा करती है. बता दें, 3 अगस्त से आरबीआई मोनेटरी पॉलिसी कमिटी की बैठक शुरू हो गई है जो दो दिनों तक चलेगी. 5 अगस्त को कमिटी (RBI Monetary Policy) अपने फैसले की घोषणा करेगी.