Silver Valley Bank Crisis: अमेरिका में पिछले एक हफ्ते में दो बैंक डूबे हैं- Silver Valley Bank और Signature Bank. अचानक डूबे इन बैंकों ने 2008 के आर्थिक संकट की याद दिला दी है, लेकिन आर्थिक विशेषज्ञ कह रहे हैं कि इस बार स्थिति 2008 वाली नहीं है. लेकिन फिर भी इसका असर भारत में भी दिखाई दे रहा है. शेयर बाजार गिरा है और बैंकिंग सिस्टम को लेकर भी चिंता जताई जा रही है. ऐसे वक्त में एक सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या भारत में भी बैंकों के डूबने का खतरा है? और अगर कोई बैंक डूबता भी है तो इसका ग्राहकों पर क्या असर होगा और उन्हें क्या मिलेगा?

Silver Valley Bank के डिपॉजिटर्स को क्या मिला है?

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10 मार्च को सिल्वर वैली बैंक के डूबने के बाद पैनिक (Silver Valley Bank Crisis) फैल गया था, लेकिन FDIC (Federal Deposit Insurance Corporation) ने भरोसा दिलाया था कि डिपॉजिटर्स का पैसा सुरक्षित रहेगा और वो 13 मार्च से अपना जमा पैसा निकाल सकते हैं. देश के बैंकिग सिस्टम में जनता का भरोसा मजबूत बनाए रखने और अमेरिका की अर्थव्यवस्था की रक्षा करने के उद्देश्य से बाइडेन प्रशासन ने घोषणा की थी कि इस बैंक के डिपॉजिटर्स सोमवार से अपने पैसे का इस्तेमाल कर सकेंगे. FDIC के नियमों के तहत अमेरिका में डिपॉजिटर्स को बैंक के डूबने की स्थिति में बैंक में 2.5 लाख डॉलर तक का इंश्योरेंस मिलता है. अगर सरकार दखल दे तो डिपॉजिटर्स को इससे ज्यादा का इंश्योरेंस अमाउंट या फिर उनका पूरा डिपॉजिट भी मिल सकता है, लेकिन वैसे 2.5 लाख डॉलर तक के अमाउंट पर गारंटी मिलती है.

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भारत में भी लागू है डिपॉजिट इंश्योरेंस का नियम (Babnk Deposit Insurance Rules in India)

अब सवाल है कि भारत में बैंक के ग्राहकों को क्या सुरक्षा मिलती है? FDIC की ओर से डिपॉजिट मनी पर भरोसा दिलाए जाने पर केंद्रीय आईटी मिनिस्टर अश्विनी वैष्णव ने सोमवार को कहा कि ये प्रस्ताव ‘‘आश्वस्त’’ करने वाला है और इससे कई स्टार्टअप को राहत मिलेगी. खैर वो तो स्टार्टअप की बात रही, लेकिन एक आम डिपॉजिटर या ग्राहक की  बात हो तो उनको क्या मिलता है? दरअसल, भारत में भी डिपॉजिट इंश्योरेंस का नियम लागू है.

Deposit Insurance क्या होता है?

डिपॉजिट इंश्योरेंस एक तरीके से बैंक में जमा पैसे पर इंश्योरेंस कवर होता है, यानी कि आपको आपके बैंक में जमा रकम का इंश्योरेंस कराने का विकल्प मिलता है, ताकि बैंक के डूबने या आपका पैसा फंसने की स्थिति में आपको उस रकम पर एक निश्चित अमाउंट वापस मिल सके. यानी किसी संकट में आपका पूरा पैसा न डूब जाए, आप कुछ रकम को रिकवर कर सकें. अलग-अलग देशों में इसके लिए अलग-अलग संस्थाएं काम करती हैं. भारत में इस व्यवस्था को 1962 में लॉन्च किया गया है. The Deposit Insurance and Credit Guarantee Corporation या DICGC है, जो भारत में ये नियम लागू करवाती है और डिपॉजिट मनी को सुरक्षा देती है. ये बैंकिंग रेगुलेटर रिजर्व बैंक की पूर्ण स्वायत्त प्राप्त ईकाई है.

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भारत में क्या हैं बैंक डिपॉजिट इंश्योरेंस का नियम? (Bank Deposit Insurance Rule)

भारत में DICGC के नियमों के तहत हर बैंक डिपॉजिटर को बैंक में जमा रकम पर 5 लाख तक इंश्योरेंस मिलता है. फरवरी, 2020 के पहले ये रकम 1 लाख हुआ करती थी, जिसे बढ़ाकर 5 लाख किया गया था. इस स्कीम के तहत आपका सेविंग्स अकाउंट, करंट अकाउंट फिक्स्ड डिपॉजिट अकाउंट, हर तरह का डिपॉजिट इंश्योर्ड किया जाता है. इसके एक्ट के तहत डिपॉजिटर्स को उनके डिपॉजिट पर 5 लाख तक की इंश्योरेंस रकम मिलती है. यानी कि उनके अकाउंट में 5 लाख रुपये तक की रकम इंश्योर्ड रहती है. 

अगर कुल डिपॉजिट 5 लाख से ज्यादा है तो?

अगर आपके बैंक अकाउंट में 5 लाख से ज्यादा की रकम डिपॉजिट थी, तो भी आपको 5 लाख रुपये ही मिलेगी. जैसे कि मान लीजिए कि जिस तारीख को आरबीआई किसी बैंक का लाइसेंस रद्द कर दे, या फिर बैंक का मर्जर/अमालगमेशन/रीकंस्ट्रक्शन हो रहा हो, तो ऐसे में उस तारीख में किसी ग्राहक के अकाउंट में जितना प्रिंसिपल और इंटरेस्ट अमाउंट होगा, उसमें से अधिकतम पांच लाख तक की रकम इंश्योर्ड रहेगी.

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कौन से बैंक DICGC के तहत इंश्योर्ड हैं?

देश में हर कॉमर्शियल बैंक और को-ऑपरेटिव बैंक को DICGC के तहत खुद को Deposit Insurance के लिए रजिस्टर्ड कराना होता है. जब DICGC किसी बैंक के इंश्योरेंस के लिए उसका रजिस्ट्रेशन करता है तो उसे इसकी जानकारी लीफलेट पर छापकर देता है, इसमें बताया जाता है कि वो उस बैंक के डिपॉजिटर्स को किस तरह की सुरक्षा दे रहा है. इसके अलावा आप खुद अपने बैंक के ब्रांच पर जाकर वहां अधिकारियों से इसकी डिटेल्ड जानकारी मांग सकते हैं.

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