यमन के विद्रोहियों के सऊदी अरब की सरकारी तेल कंपनी अरामको के ठिकानों पर ड्रोन हमले के बाद दुनियाभऱ में तेल कीमतों को लेकर कई कयास लगाए जाने लगे हैं. दुनियाभर के बाजारों के लिए इसके मायने क्या हैं? इसपर मार्केट एक्सपर्ट अजय बग्गा का कहना है कि इसको दो तरीके से समझना होगा. पहला तो ये कि सऊदी अरब दुनिया का 10 प्रतिशत तेल का उत्पादन करता है. उसका रैंक तीसरा है. पहला अमेरिका और दूसरा रूस का है. इस हमले से सऊदी अरब की दिन की 10 मिलियन बैरल उत्पादन में 50 प्रतिशत क्षमता में आग लगी है. अब वो कितनी जल्दी अपनी क्षमता को वापस हासिल करते हैं, उस पर तय होगा कि तेल की कीमतें कहां जाएंगी. अगर आज देखें तो जब फ्यूचर्स शुरू हुए तो तेल की कीमतें 20 प्रतिशत बढ़ी, अब वह घटकर 10 प्रतिशत पर आ गई है.

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दूसरी बात यह समझनी होगी कि यमन के पीछे ईरान है. सऊदी अरब और ईरान में एक तरह का प्रॉक्सी वॉर है. ट्रंप का भी ट्वीट है कि हम तैयार हैं. सऊदी अरब जैसे बोलेगा, आगे कार्रवाई करेंगे. ऐसे हालात में जियो पॉलिटिक्स रिस्क बढ़ जाता है. कहीं ईरान पर बमबारी होगी या सऊदी-अमेरिका मिलकर अगर ईरान पर कार्रवाई करते हैं तो तेल के लिए और मिडल ईस्ट के लिए रिस्क एकदम से बढ़ जाएगा. इस वजह से आज मार्केट गिर रहे हैं. 

तेल की कीमत फिलहाल बढ़ी तो है, लेकिन वह जल्द ही ठीक हो जाएगी. इसके पीछे बहुत बड़ी मात्रा में स्पेयर कैपिसिटी का होना है. रूस के पास भी कैपिसिटी है. सऊदी ने भी बोला है कि उसका 20 लाख बैरल का उत्पादन आज ही ठीक हो जाएगा. साथ ही यह भी कहा है कि हम एक हफ्ते में पूरा उत्पादन बहाल कर लेंगे.

शॉर्ट टर्म में ऐसा नहीं है कि तेल की कोई किल्लत है. अमेरिका के पास स्टोरेज में 650 मिलियन बैरल तेल पड़ा है. ट्रंप ने कल कहा है कि हम तेल रिलीज करेंगे. विकसित देशों ने भी कहा है कि हम तेल रिलीज करेंगे. सऊदी के पास भी बहुत इन्वेंट्री पड़ी है. इसलिए एकदम से तेल की किल्लत नहीं होने वाली है.

डर है कि सऊदी और ईरान में युद्ध छिड़ता है तब दुनिया भर के बाजारों में बहुत बुरा असर देखने को मिल सकता है. हालांकि युद्ध की संभावना बेहद कम है, क्योंकि ईरान भी बहुत सक्षम है और सऊदी के पीछे अमेरिका है. हालांकि बग्गा का यह भी कहना है कि अगर दुर्भाग्य से लड़ाई होती है तब तो तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल भी जा सकती है.