देश दुनिया में आज के समय में लोग मोबाइल (Mobile) और वाईफाई (Wi-Fi) पर काफी बड़े पैमाने पर निर्भर है. सुबह उठने के लिए अलार्म लगाने से लेकर रात को सोते वक्त अगले दिन के लिए रिमाइंडर सेट करने तक लोग अब बहुत तरीके से अपने फोन पर ही निर्भर रहते है. इतना ज्यादा फोन पर निर्भर रहना लोगों को अल्जाइमर का शिकार बना रहा है, ऐसा कहना है करेंट अल्जाइमर रिसर्च जर्नल में पब्लिश हुई हालिया शोध में है. वैज्ञानिकों का ऐसा कहना है कि, फोन और wifi से निकल रहे रेडिएशन लोगों के दिमाग के सेल्स में कैल्शियम कि मात्रा बढ़ा रहा है, जो अल्जाइमर डिजीज का मुख्य कारण है.

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रिसर्चर्स ने अपने रिसर्च में ऐसा पाया की फोन के इस्तेमाल से जो इलेक्ट्रो मैग्नेटिक फोर्स निकलता है वो हमारे दिमाग पर काफी बुरा प्रभाव डालता है. रिसर्चर्स का ऐसा भी मानना है की जितने भी वायरलेस कम्युनिकेशन सिग्नल होते है वो हमारे दिमाग में calcium के चैनल्स को एक्टिवेट कर देते है. इससे हमारे दिमाग में एकदम से कैल्शियम कि मात्रा बढ़ जाती है जिससे अल्जाइमर की बीमारी समय से पहले हो सकती है.

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इस पर दिल्ली के max hospital के सीनियर न्यूरोलॉजिकल कंसल्टेंट डॉक्टर राजीव गुप्ता का ऐसा कहना है की अभी के वक्त लोगों के जीवन में मोबाइल फोन, इंटरनेट और वाईफाई की अहमियत बहुत ज्यादा बढ़ गई है. ऐसे में फोन का दुष्प्रभाव भी लोगों के ऊपर ज्यादा बढ़ चुका है. लोग अब अपने दिमाग पर निर्भर रहना छोड़ चुके है. अपने छोटी से बड़ी जरूरतों के लिए वो फोन पर ही निर्भर रह रहे है. चौबीसों घंटे फोन के आगे रहने से लोगों को और भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है जैसे की वजन बढ़ जाना, फिजिकल एक्टिविटी की खासा कमी और आंखों में परेशानी बढ़ना. इसके अलावा लोगों ने अपने दिमाग का इस्तेमाल कम करके अपनी memory power को भी काफी कम कर लिया है.

इससे पहले भी कई शोधों में ऐसा पाया गया है कि लोगों में अल्जाइमर संबंधी बदलाव के लक्षण दिखने के 25 साल पहले से ही आने लगते है. शोध के नतीजे ऐसा भी कहते है कि ज्यादा वक्त तक हमारा दिमाग अगर इलेक्ट्रो मैग्नेटिक फील्ड के प्रभाव में रहा तो अल्जाइमर कि परेशानी लोगों को बुढ़ापे से पहले भी आ सकती है. डॉक्टर्स के मुताबिक पिछले 20 सालों में लोगों में अल्जाइमर होने की औसतन उम्र घटी है. ये दुनिया भर में लोगों का वाईफाई और फोन के रेडिएशन के प्रभाव के बढ़ने से हुआ है. एक तरह से हम इस बीमारी को डिजिटल डिमेंशिया भी बोल सकते है.

अल्जाइमर न्यूज टुडे वेबसाइट के अनुसार दुनिया में 4.4 करोड़ लोग अल्जाइमर समेत डिमेंशिया के किसी ना किसी प्रकार से शिकार है. इनमे से तकरीबन 53 लाख लोग 65 साल से ज्यादा के है, वहीं 2 लाख लोग युवा हैं और अल्जाइमर के शुरुआती लक्षण से जूंझ रहे है. ये हमारे वक्त में एक बढ़ती समस्या का भी कारण बन चुका है.