ब्रोकर्स के पास क्लाइंट का ऐसा पैसा जो किसी इस्तेमाल में न आ सका हो वो क्लियरिंग कॉरपोरेशन का जाएगा. सेबी (Sebi) की मंशा ये है कि क्लाइंट का पैसा ब्रोकर के पास न जाए, ताकि दुरुपयोग की आशंका भी न हो. लेकिन ब्रोकर्स को चिंता है कि इससे उनकी ब्याज से होने वाली आमदनी प्रभावित होगी, तो अब इस पर भी रास्ता निकाला जा रहा है.

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सूत्रों के मुताबिक, ब्रोकर्स को फ्लोट इनकम पर पूरा घाटा नहीं होगा. NSE क्लियरिंग से भी ब्रोकर्स को फ्लोट पर ब्याज संभव है. ब्याज पर ब्रोकर्स और NSE क्लियरिंग के बीच चर्चा जारी है. ICCL की तर्ज पर NSE क्लियरिंग की भी ब्याज की तैयारी कर रही है. फ्लोट वो क्लाइंट फंड जो अनयूज्ड और ब्रोकर के पास पड़ा है.

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कैसे तय होगा कि कितना ब्याज दें?

देखा जा रहा है कि रोजाना कितनी लिक्विडिटी की जरूरत है. लिक्विडिटी की जरुरत देखकर कहां निवेश करें, ये तय होगा. इंडस्ट्री सूत्रों का दावा कि करीब 1,00,000 करोड़ रुपये का फ्लोट है. निवेश का चुनाव लिक्विडिटी और सुरक्षा देखकर तय होगी.  निवेश के माध्यम के हिसाब से ही ब्याज की दर तय होगी. ICCL, हफ्ते के मिनिमम बैलेंस पर 2.7% ब्याज देता है . सबसे सुरक्षित माध्यम में पैसा निवेश हो इस पर फोकस होगा.

 

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सेबी की चिंता क्या थी?

सेबी की मंशा कि ब्रोकर के पास पैसा न बचे, ताकि दुरुपयोग रूके. ग्राहकों का पैसा रखने वाले बैंकों के मुकाबले ब्रोकर पर सख्ती कम है.

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