पिछले 1 साल में आईपीओ (IPO) मार्केट में जमकर हलचल देखने को मिल रही है. इस साल भी अबतक 3 दर्जन से ज्यादा कंपनियां अपना IPO ला चुकी हैं और आगे भी कई इस कतार में शामिल हैं. बीते 1 साल की बात करें तो कई ऐसे IPO रहे हैं, जिन्होंने निवेशकों को शानदार रिटर्न ​दिए हैं. लेकिन दिक्कत यह रही कि ज्यादा सब्सक्रिप्सन के चलते बहुत से रिटेल निवेशक खाली हाथ रह गए. निवेश के बाद भी उन्हें कंपनी के शेयर नहीं मिल पाए. ऐसे में कुछ खबरें आ रही थीं कि मार्केट रेगुलेटर सेबी (SEBI) रिटेल निवेशकों के लिए कोटा में कुछ बदलाव करने पर काम कर रह है. क्या SEBI रिटेल निवेशकों से जुड़े कोटे के नियम में बदलाव करने जा रहा है, आईपीओ प्राइस बैंड पर क्या है मार्केट रेगुलेटर का प्लान. ब्रजेश कुमार के इन सवालों का सेबी चेयरमैन अजय त्यागी ने जवाब दिया है.

रिटेल निवेशकों का बढ़ेगा कोटा

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IPO में रिटेल निवेशकों का कोटा बढ़ाने की जरूरत है? इस पर SEBI चेयरमैन का कहना है कि इससे बेहतर होगा कि रिटेल निवेशक सेकेंडरी मार्केट को भी देखें, क्योंकि वहां ट्रैक रिकॉर्ड पता करना आसान होता है. 

बता दें कि SEBI के नियम के अनुसार ऐसे निवेशकों को रिटेल निवेशक माना है जो IPO में 2 लाख रुपये से ज्‍यादा मूल्‍य की बोली नहीं लगाते हैं. कह सकते हैं कि किसी शेयर में इनकी हिस्‍सेदारी 2 लाख रुपये से कम होती है.

IPO में कितना है कोटा

मार्केट रेगुलेटर SEBI के नियम के अनुसार अगर कोई मुनाफे में रहने वाली कंपनी अपना IPO लेकर आती है तो उसमें रिटेल निवेशकों के लिए 35 फीसदी तक कोटा रिजर्व हो सकता है. लेकिन कंपनी अगर घाटे में है तो कुल IPO साइज क र्सिफ 10 फीसदी ही कोटा रिटेल निवेशकों के लिए रिजर्व हो सकता है.

IPO प्राइस बैंड पर क्या है प्लान

दूसरा सवाल यह था कि IPO प्राइस बैंड को लेकर SEBI का क्या प्लान है. इस पर SEBI  के  चेयरमैन ने कहा कि इसको ठीक करेंगे. इस पर काम हो रहा है. बता दें कि SEBI की IPO के नियमों खास कर प्राइस बैंड से जुड़े प्रावधानों में सुधार करने की योजना है. सेबी कंपनियों के प्राइस बैंड के बीच अंतर को लेकर नाखुश है. हाल के दिनों में आए कई कंपनियों के आईपीओ के प्राइस बैंड में 1-1 रुपये 2 रुपये का अंतर था. सेबी इस मसले पर काफी सख्‍त है. हाल ही में मार्केट रेग्‍युलेटर की ओर से मर्चेंट बैंकर्स को इस बारे में चिट्ठी भी लिखी गई थी.

प्राइस बैंड के अंतर को लेकर नाखुश

सूत्रों के मुताबिक, कंपनियों के प्राइस बैंड के अंतर को लेकर नाखुश सेबी फिक्‍स प्राइस बैंड का विकल्‍प ला सकता है. मार्केट रेग्‍युलेटर का कहना है कि कई कंपनियों के अपर और लोवर प्राइस बैंड में 1-1 या दो रुपये का अंतर था. ऐसे में बुक बिल्डिंग का कोई मतलब नहीं बनता है. प्राइस बैंड में वाजिब अंतर नहीं तो बुक बिल्डिंग बेमानी है. वहीं, ब्रोकर के एंड पर तकनीकी खामी पर सेबी चेयरमैन ने कहा कि ये अहम मुद्दा है और इस पर एक्सचेंजेज से बात कर रहे हैं.