Crude Oil: रूस-यूक्रेन में जारी युद्ध के चलते दुनियाभर में इक्विटी मार्केट, करेंसीज, कमोडिटीज पर डोमिनो इफेक्‍ट (domino effect) देखा जा रहा है. क्रूड ने 130 डॉलर प्रति बैरल का लेवल तोड़ दिया और 13 साल के टॉप पर पहुंच गया. क्रूड में तेजी के चलते भारतीय शेयर बाजारों में भारी गिरावट देखी गई. 

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S&P BSE सेंसेक्‍स 7 मार्च को करीब 1500 अंक टूटा जबकि निफ्टी50 15,900 के नीचे बंद हुआ. इससे पहले अगस्‍त 2021 में बाजार ने यह लेवल दिखाया था. क्रूड ऑयल (Crude Oil) की कीमतों में बढ़ोतरी से महंगाई में जबरदस्‍त इजाफा होगा. जिसके चलते केंद्रीय बैंक अनुमानित समय से पहले ब्‍याज दरों में इजाफा करने को विवश हो सकते हैं. इससे जहां इकोनॉमी को झटका लगेगाा. वहीं, जिन कंपनियों में क्रूड बतौर रॉ मैटीरियल इस्‍तेमाल होता है, उनके मार्जिन पर दबाव देखा जा सकता है. 

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 की शुरुआत से ग्‍लोबल क्रूड कीमतें 60 फीसदी से ज्‍यादा उछल चुकी हैं. इसके साथ-साथ कमोडिटीज के दाम भी बढ़े हैं. इसके चलते दुनियाभर की इकोनॉमिक ग्रोथ और महंगाईजनित मंदी की चिंताएं बढ़ गई हैं. सोमवार को तेल के दाम 2008 के बाद से सबसे टॉप लेवल पर पहुंच गए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका और यूरोपीय देशों की तरफ से रसियन ऑयल इम्‍पोर्ट पर बैन लगाने की खबरें हैं. वहीं, ईरान से क्रूड की सप्‍लाई में देरी के चलते ग्‍लोबल मार्केट में सप्‍लाई को लेकर आशंका गहरा गई है. 

 

 

 

TrustPlutus Wealth के मैनेजिंग पार्टनर विनीत बागरी का कहना है, ''भारत अपनी जरूरत का दो-तिहाई कच्‍चा तेल आयात करता है. तेल के दाम बढ़ने से देश का ट्रेड और करंट अकाउंट डेफिसिट बढ़ेगा. साथ ही रुपया भी कमजोर होगा और महंगाई बढ़ेगी.''

 

 

 

एक्‍सपर्ट ने बताया कि कैसे महंगा क्रूड मार्केट, इकोनॉमी और रुपये को नियर टू मीडियम टर्म में प्रभावित करेगा.  

 

 

 

मार्केट पर असर 

 

 

 

जानकारों का कहना है कि भारतीय बाजार अपने हाल के टॉप लेवल से करीब 15 फीसदी नीचे जा चुके हैं. अगर क्रूड 120-130 डॉलर के ऊपर बना रहता है, तो मार्केट में गिरावट 20 फीसदी हो सकती है. निफ्टी50 अक्‍टूबर के 18,604 के टॉप से करीब 15 फीसदी नीचे है. मार्केट, इकोनॉमी और रुपया इंटरलिंक्‍ड हैं. इनमें से किसी भी पर अगर विपरित असर होता है, तो उसका असर तीनों कम्‍पोनेंट पर होता है.

 

 

 

Tradingo के फाउंडर पार्थ न्याति का कहना है, ''क्रूड की ऊंची कीमतों के चलते करंट अकाउंट डेफिसिट बढ़ेगा और रुपया कमजोर होगा. वहीं, महंगाई एक बड़ी चिंता है, जिसका सामना दुनिया पहले से ही कर रही है.''

 

 

 

उन्‍होंने कहा, ''कमोडिटी की ऊंची कीमतों के चलते इंडिया इंक के मार्जिन पर दबाव तेजी से बढ़ेगा. इसीलिए हम शेयर बाजार में तेज गिरावट देख रहे हैं. ऐतिहासिक तौर पर आंकड़ों को देखें, तो जब भी क्रूड में तगड़ा उछाल आया, भारतीय बाजारों में 10-20 फीसदी का करेक्‍शन देखने को मिला है. फिलहाल हमारा बाजार पहले ही अपने ऑल टाइम हाई से 15 फीसदी से ज्‍यादा टूट चुका है.'' यानी, मार्केट पहले ही बहुत टूट चुका है. अगर जियोपॉलिटिकल हालात नहीं संभलते हैं, तो आगे और गिरावट देखने को मिल सकती है. 

 

 

 

 

 

 

 

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इकोनॉमी पर असर 

 

 

 

क्रूड 130 डॉलर प्रति बैरल के पार जा चुका है. इसका भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था पर विपरित असर होगा. ऐसा इसलिए क्‍योंकि भारत अपनी जरूरत का दो-तिहाई क्रूड आयात करता है. कुछ अर्थशास्‍त्री मानते हैं कि अगर क्रूड की मजबूती लंबे समय तक रहती है, तो करंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) बढ़ सकता है और इससे GDP अनुमान में कटौती हो सकती है. अमेरिका की तरफ से रसियन ऑयल इम्‍पोर्ट पर प्रतिबंध लगाने की आशंका के चलते क्रूड 139 डॉलर के लेवल पर पहंच गया. 

 

 

 

CapitalVia Global Research के लीड कमोडिटीज एंड करेंसीज क्षितिज पुरोहित का कहना है, ''कमोडिटीज खासकर एनर्जी पर होने वाले असर भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है. पेट्रोलियम कीमतों में बढ़ोतरी से रुपये में गिरावट आएगी और महंगाई व बजट डेफिसिट में इजाफा होगा. इसके चलते GDP ग्रोथ धीमी हो सकती है.''

 

 

 

उन्‍होंने कहा, ''पेट्रोलियम कीमतों में 10 फीसदी के उछाल से जीडीपी ग्रोथ में 20 बेसिस प्‍वाइंट की सुस्‍ती और महंगाई में 40 बेसिस प्‍वाइंट का इजाफा हो सकता है. और इससे करंट अकाउंट डेफिसिट बढ़ जाएगा.''

 

 

 

ICRA का अनुमान है कि अगर क्रूड के भाव औसतन 130 डॉलर प्रति बैरल पर रहते हैं, तो भारत का करंट अकाउंट डेफिसिट FY2023 में जीडीपी का 3.2 फीसदी पहुंच जाएगा. बीते एक दशक में ऐसा पहली बार होगा, जब करंट अकाउंट डेफिसिट 3 फीसदी को पार कर जाएगा. 

 

 

 

रुपये पर असर

 

 

 

पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, रूस-यूक्रेन वार (Russia-Ukraine War) के चलते जारी जियोपॉलिटिकल जोखिम से भारतीय रुपया सोमवार को डॉलर के मुकाबले 84 पैसे टूटकर 77.01 (प्रोविजनल) के रिकॉर्ड निचले स्‍तर पर बंद हुआ. निवेशक सेफ हैवेन एसेट्स पर शिफ्ट हो रहे हैं. इससे पहले शुक्रवार को रुपया 23 पैसे टूटकर 76.17 पर बंद हुआ था, जोकि 15 दिसंबर 2021 के बाद सबसे निचला स्‍तर था. जानकार मानते हैं कि नियर टर्म में रुपये में कमजोरी जारी रहेगी. 

 

 

 

LKP Securities के सीनियर रिसर्च एनॉलिस्‍ट जतिन त्रिवेदी का कहना है, ''बीते एक हफ्ते में रुपये में तेज गिरावट आई है. ऐसा इसलिए क्‍योंकि मार्च में क्रूड के दाम 30 डॉलर से ज्‍यादा बढ़ गए हैं. इसके चलते रुपया मार्च में ही 75.50 से गिरकर 77 के लेवल तक आ गया है. 

उन्‍होंने कहा, ''क्रूड के दाम जब तक 105 डॉलर के उपर बने हुए हैं, रुपये के लिए आउटलुक कमजोर है. नियर टर्म में यह 78 का लेवल दिखा सकता है. अगर क्रूड की कीमतें 130 डॉलर के पार रहती है तो रुपया 78.50 का लेवल भी बहुत जल्‍द टच कर लेगा. 

 

 

 

 

 

 

 

(Disclaimer: The views/suggestions/advices expressed here in this article is solely by investment experts. Zee Business suggests its readers to consult with their investment advisers before making any financial decision.)