Cryptocurrency: हाल ही में टीम जी बिजनेस (Zee Business) ने सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और उनकी बातों में आकर निवेशकों (Cryptocurrency investment) के पैसे डूबने का मुद्दा प्रमुखता से उठाया. खासतौर पर क्रिप्टो संबंधित निवेश को प्रमोट करने वाले फिनफ्लुएंसर्स (Finfluencers) पर सोशल मीडिया में जो सवाल उठे हैं. वो सवाल शो के दायरे में लाए गए मामले की जड़ में थी. 4 जुलाई की तारीख जब क्रिप्टो एक्सचेंज वॉल्ड (crypto exchange Vauld) में अचानक ट्रेडिंग, विदड्रॉल और डिपॉजिट्स पर रोक लगा दी गई. इसके पीछे क्रिप्टो मार्केट (Crypto Market) में भारी उतार चढ़ाव का हवाला दिया गया. अनुमान है कि दुनियाभर के करीब 8 लाख निवेशक भौंचक्के और असहाय हो गए जिनमें हजारों भारतीय निवेशक भी थे. सोशल मीडिया पर वॉल्ड (Vauld) के निवेशकों का गुस्सा फूट पड़ा. धीरे धीरे गुस्से की जद में वो इन्फ्लुएंसर्स भी आ गए, जिन्होंने वॉल्ड में निवेश के लिए लोगों को प्रेरित किया था. सोशल मीडिया पर इनमें जो सबसे ज्यादा चर्चित नाम रहे उनमें पीआर सुंदर (PR Sundar), अंकुर वारिकू (Ankur Warikoo) अक्षत श्रीवास्तव (Akshat Srivastav) बूमिंग बुल्स (Booming Bulls), अनंत लढ़ा (Anant Laddha) जैसे नाम शामिल थे.

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नैतिक जिम्मेदारी बनाम कानूनी जवाबदेही

जी बिजनेस की ओर से जुटाई गई जानकारी के मुताबिक इनमें से कई इन्फ्लुएंसर्स ने मामले पर खुद चिंता जाहिर करते हुए निवेशकों के साथ खड़ा रहने की बात कही. कुछ ने तो खुद के पैसे भी डूबने का हवाला दिया. इनकी सफाई से ऐसा प्रतीत हुआ कि ये स्वयं भुक्तभोगी हैं. नैतिकता के पैमाने पर इन इन्फ्लुएंसर्स की स्वीकारोक्ति और चुप्पी तोड़ना इन्हें सहानुभूति तो देता है, लेकिन क्या सवाल सिर्फ नैतिकता का है? क्या नैतिक रूप से स्वीकार कर लेने और शर्मिंदा हो जाने से ये इन्फ्लुएंसर्स कानूनी जवाबदेही से बच सकते हैं? खासतौर से तब, जब इनमें से ज्यादातर ने ये स्वीकार किया हो या घोषित किया हो कि वॉल्ड (Vauld) पर निवेश के प्रोमोशन के लिए इन्होंने बाकायदा पैसे लिए हैं? 

क्या कहता है कानून?

सीधा सवाल ये है कि क्या कोई कंटेंट क्रिएटर या इन्फ्लुएंसर बिना किसी लीगल जिम्मेदारी के किसी भी ब्रैन्ड को प्रमोट कर सकता है? क्या हुआ अगर ब्रैन्ड फ्रॉड निकला, अंडर क्वालिटी निकला या स्वास्थ और समाज के लिए हानिकारक निकला? जवाब कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट, 2019 (Consumer Protection Act, 2019) में है. इस कानून में भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ सजा (Penalties for Misleading Advertisement) अनुचित व्यापार व्यवहार (Unfair Trade Practices) के साथ साथ सेलेब्रिटी एंडोर्समेंट (Celebrity Endorsement) को जिम्मेदार बनाने के लिए तमाम प्रावधानों का जिक्र है. इसके अलावा पारदर्शी एडवर्टीजमेंट के लिए बने स्व-नियामक संगठन ASCI (The Advertising Standards Council of India) का कोड ऑफ सेल्फ रेगुलेशन (Code for Self-Regulation in Advertising) भी है. जो सेलेब्रिटी या एंडोर्सर की जिम्मेदारियां तय करता है और इससे भी ऊपर है. कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के ही चैप्टर 3 में बनाया गया केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (Central Consumer Protection Authority) जो ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई और सजा देने के अधिकार रखता है. 

सेलेब्रिटी जिम्मेदार, इन्फ्लुएंसर नहीं?

प्रभावशाली अभिनेता, अभिनेत्रियों या खिलाड़ियों की ओर से एडवर्टीजमेंट की दुनिया पूरी तरह से पारदर्शी तो नहीं हुई है लेकिन टीवी और अखबार की दुनिया में इन तमाम कानूनों और प्रावधानों का डर और असर सेलेब्रिटीज पर दिखता भी है. आलम ये है कि अब महानायक अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) समेत कई बड़े सेलेब्रिटी कोई भी एड साइन करने से पहले कानूनी सलाह लेने लगे हैं. आम्रपाली मामले में क्रिक्रेटर एमएस धोनी (MS Dhoni ) को नोटिस पर नोटिस मिल रहे हैं. ASCI ने भी क्रिकेटर विराट कोहली (Virat Kohli) को एक विश्वविद्यालय के प्रोमोशन मामले में नोटिस भेजा था. ASCI अभिनेता रणवीर सिंह (Ranveer Singh) से लेकर जैकलीन फर्नांडीज (Jacqueline Fernandez) तक कई प्रभावशाली लोगों को नोटिस भेज चुका है, लेकिन सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स की दुनिया इससे या तो अनभिज्ञ है या फिर बेखौफ खासकर क्रिप्टो (Crypto) को प्रोमोट करने वाले इन्फलुएंसर्स और कंटेंट क्रिएटर्स जानकार. इसका सबसे बड़ा कारण क्रिप्टो के बारे में निवेशक और रेगुलेटर दोनों के स्तर पर कन्फ्यूजन को मानते हैं.

क्रिप्टो का प्रचार बेलगाम क्यों?

दरअसल, क्रिप्टो भारत में मान्यता प्राप्त नहीं है. यही वजह है कि इसके लेन देन या निवेश में धोखाधड़ी पर किसी रेगुलेटर का संरक्षण नहीं है. जैसे बैंकों के लिए RBI, इंश्योरेंस के लिए IRDAI और शेयर बाजार के लिए SEBI है. वैसा रेगुलेटर क्रिप्टो निवेश पर नहीं है. इसी बात का फायदा क्रिप्टो को प्रोमोट करने वाली एजेंसियां, प्लेटफॉर्म्स और इन्फलुएंसर्स उठाते हैं इसीलिए जानकार सरकार से जल्द से जल्द क्रिप्टो पर कन्फ्यूजन दूर कर उसे कानूनी दायरे में लाने की मांग कर रहे हैं ताकि इसमें निवेश से जुड़ी गतिविधियां निगरानी और जवाबदेही के दायरे में आ सकें.

मेन स्ट्रीम और सोशल मीडिया में फर्क नहीं 

यहां एक बात समझने वाली ये भी है कि रेगुलेटर नहीं होने पर भी इन्फ्लुएंसर्स या कॉन्टेंट क्रिएटर्स को कुछ भी एंडोर्स करने की इम्युनिटी नहीं है. कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट, उसके तहत बना CCPA और ASCI ये सब क्रिप्टो में निवेश को लेकर हर एक इन्फ्लुएंसर की जिम्मेदारी तय करते हैं और जितनी जिम्मेदारी सामान्य उत्पाद या सर्विस प्रोमोट करने वाले एंडोर्सर की टीवी और अखबार की दुनिया में है उतनी ही सोशल मीडिया पर क्रिप्टो प्रोमोट करने वाले इन्फ्लुएंसर की भी है.

इन्फ्लुएंसर के अधिकार

सिर्फ ग्राहक ही नहीं कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट इन्फ्लुएंसर को भी अपनी बात रखने का अधिकार देता है. Consumer Protection Act, 2019 के section 21(5) के तहत एंडोर्सर दंड और बैन से बच सकता है. अगर वो ये सिद्ध कर दे कि उसकी ओर से विज्ञापन में किए गए दावों की सत्यता की पुष्टि करने के लिए पूरा अध्ययन किया था.

शेयर मार्केट निवेशक भी रहें सावधान

उत्पादों और सेवाओं के प्रमोशन के अलावा सोशल मीडिया पर ऐसे फर्जी सलाहकारों की भरमार है. जो बिना सेबी में रजिस्टर्ड हुए मनमाने शेयरों में निवेश की सलाह देते हैं. जी बिज़नेस अपने कई कार्यक्रमों में ऐसे फर्जी सलाहकारों का भंडाफोड़ कर चुका है और सेबी (SEBI) भी इस मामले में कड़ी कार्रवाई कर चुका है. बावजूद इसके अब भी यूट्यूब, ट्विटर, टेलिग्राम पर फर्जी सलाहकारों की भरमार है जिनसे निवशकों (Cryptocurrency investment) को सावधान रहने की जरूरत है. 

फॉलोअर का भरोसा, धोखाधड़ी का लाइसेंस नहीं

चाहे क्रिप्टो हो, कोई दूसरा उत्पाद, टीवी-अखबार की दुनिया हो या सोशल मीडिया, किसी भी उत्पाद या सेवा को प्रोमोट करने वाले एंडोर्सर को ये समझना होगा कि कोई भी फॉलोअर किसी व्यक्ति का अनुसरण तभी करता है जब वो आपकी स्किल, सलाह या व्यक्तित्व को पसंद करता हो और आपके द्वारा कहा गया हर शब्द उसके लिए इसलिए मायने रखता है क्योंकि उसे आपकी सोच और राय पसंद होती है. आपकी राय को पसंद करने का सबसे बड़ा कारण ये होता है कि आपका फॉलोवर ये समझता है कि आपके कहे शब्दों के पीछे कोई हेरफेर नहीं किया गया है. अगर कोई प्रभावशाली व्यक्ति किसी उत्पाद की सिफारिश सिर्फ इसलिए करता है क्योंकि उसे ऐसा करने के लिए पैसा दिया गया था, तो वह उपभोक्ताओं को किसी ऐसी चीज को आजमाने को कह रहा है जिसके बारे में वो खुद भरोसा ना जुटा पाया हो और यहीं उसकी कानूनी जवाबदेही तय हो जाती है.

ताकि इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग बदनाम न हो

भारत में इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग कारोबार खूब फल फूल रहा है. हाल ही में जारी GroupM INCA’s India Influencer Marketing Report बताती है कि फिलहाल ये इंडस्ट्री 900 करोड़ रुपए की हो चुकी है. यही नहीं इसके 25% सालाना की ग्रोथ के साथ 2025 तक 2200 करोड़ की इंडस्ट्री होने की संभावना है. भारत में तेजी से फल फूल रहे स्टार्ट -अप इकोसिस्टम में इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग (Influencer Marketing) ग्रोथ का बेहद अहम हिस्सा हो चुकी है. आज कई ऐसे उदाहरण हैं जिनमें नए नए स्टार्ट-अप सिर्फ इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग के सहारे ही तेजी से बड़ी कंपनियों में तब्दील हो गए. इसलिए इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग में अगर कानून और विज्ञापन प्रेषित करने की मर्यादाओं का खयाल रखा गया तो ये इंडस्ट्री न सिर्फ बड़े जॉब प्रदाता सेक्टर के रूप में उभरेगी बल्की देश की आर्थिक तरक्की में भी अपना अहम योगदान दे सकती है.