India in Global Bond Index: भारतीय बाजारों के लिए बड़ी खबर है. तकरीबन 10 साल के लंगे इंतजार के बाद भारत ने इमर्जिंग मार्केट्स के लिए ग्‍लोबल बॉन्‍ड इंडेक्‍स में अपनी जगह बनाने जा रहा है. जेपी मॉर्गन (JP Morgan) ने बताया कि भारत को उसके इमर्जिंग मार्केट डेट इंडेक्‍स (GBI-EM) में जून 2024 से शामिल किया जाएगा. इस फैसले के बाद दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था के लिए अरबों डॉलर के इनफ्लो का रास्‍ता साफ हो गया है. 

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जेपी मॉर्गन की ओर से जारी बयान के मुताबिक, भारतीय बॉन्ड्स को इमर्जिंग मार्केट इंडेक्स में 28 जून 2024 से शामिल किया जाएगा. जेपी मॉर्गन इंडेक्स पर भारतीय बॉन्ड्स का मैक्सिमम वेटेज 10 फीसदी होगा. फिलहाल 23 भारतीय सरकारी बॉन्‍ड्स (IGBs) इंडेक्‍स के लिए एलिजिबल हैं. इनकी कम्‍बाइन्‍ड नेशनल वैल्‍यू 330 अरब अमेरिकी डॉलर है. ग्‍लोबल बॉन्‍ड इंडेक्‍स में IGBs को 10 महीने की अवधि में क्रमबद्ध किया जाएगा, जोकि 28 जून 2024 से शुरू होकर 31 मार्च 2025 तक होगा. यानी, हर महीने 1 फीसदी IGBs को शामिल किया जाएगा. 

 

इसके बाद भारत के JADE ग्‍लोबल डायवर्सिफाइड इंडेक्‍स में शामिल की संभावना है. एशिया (एक्‍स जापान) लोकल करेंसी बॉन्‍ड इंडेक्‍स (JADE Global Diversified) भारत को अपने में शामिल करेगा. यह GBI-EM GD के टाइम फ्रेम के मुताबिक होगा. साथ ही इसका वेटेज 18.48 फीसदी हो सकता है. इस बीच, JADE ब्रॉड डायवर्सिफाइड इंडेक्‍स में भारत का वेटेज 10 महीने की अवधि के लिए 10 फीसदी से बढ़कर 20 फीसदी हो जाएगा.

भारतीय सरकारी बॉन्‍ड्स को इमर्जिंग मार्केट डेट इंडेक्‍स में शामिल करने के जेपी मॉर्गन के फैसले पर वित्‍त मंत्रालय के DEA सेक्रेटरी अजय सेठ का कहना है, ''यह स्‍वागत करने योग्‍य पहल है. साथ ही यह भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में भरोसे को दर्शाता है.'' 

भारतीय बॉन्‍ड मार्केट, रुपये पर क्‍या होगा असर

ग्‍लोबल बॉन्‍ड इंडेक्‍स में भारतीय बॉन्‍ड्स के शामिल होने से भारतीय बाजार में तगड़ा इनफ्लो देखने को मिल सकता है.  ICICI डायरेक्‍ट के मुताबिक, अगले 6-8 महीने में भारतीय बॉन्‍ड मार्केट में 40-50 अरब का इनफ्लो आ सकता है. HSBC होल्डिंग्स का मानना है कि इससे भारत में 30 अरब डॉलर तक का इनफ्लो बढ़ सकता है. वहीं, एक अन्‍य आकलन है कि अगले 10 महीने में 20-22 अरब डॉलर भारतीय बॉन्‍ड मार्केट में आ सकता है. 

भारतीय बॉन्‍ड को ग्‍लोबल बॉन्‍ड इंडेक्‍स में शामिल होने से सरकारी कर्ज (Government borrowing) के लिए एक वैकल्पिक सोर्स तैयार होगा. इसके अलावा इससे कॉरपोरेट बॉन्‍ड जारी करने वालों के लिए भी एक बड़ा अवसर बनेगा. भारतीय बॉन्‍ड मार्केट में अरबों डॉलर का इनफ्लो होने से भारतीय रुपये को सपोर्ट मिलेगा और इसमें मजबूती आएगी.  

HDFC सिक्‍युरिटीज के हेड (कमोडिटी एंड करेंसी) अनुज गुप्‍ता का कहना है, बॉन्‍ड मार्केट से भारतीय रुपये के आउटलुक के लिए अच्‍छी खबर है. जेपी मॉर्गन के बेंचमार्क इमर्जिंग मार्केट इंडेक्‍स में भारतीय सरकारी बॉन्‍ड्स का शामिल होना, भारतीय करेंसी के लिए पॉजिटिव है. वो भी ऐसे समय में जब करंट अकाउंट कमजोर हो रहा है.

अनुज गुप्‍ता कहते हैं,  इंडेक्‍स प्रोवाइडर भारतीय सिक्‍युरिटीज को जेपी मॉर्गन सरकारी बॉन्‍ड इंडेक्‍स में 28 जून 2024 से शामिल करेंगे. इससे बॉन्‍ड इनफ्लो बेहतर होगा. इंडेक्‍स में भारतीय बॉन्‍ड्स का वेटेज 10 फीसदी होगा. इससे एक अनुमान है कि 20-25 अरब डॉल्‍र का का इनफ्लो देखने को मिल सकता है. साल 2014 में भारतीय बॉन्‍ड में नेट विदेशी इनफ्लो करीब 26 अरब डॉलर रहा. इस साल 20 सितंबर तक करीब 3.5 अरब डॉलर का इनफ्लो आ चुका है. इसलिए अभी और इनफ्लो आना बाकी है. 

भारतीय बॉन्‍ड का इंडेक्‍स में होना यह दर्शाता है कि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था मजबूत है. भारत या भारतीय कंपनियां जो भी कर्ज ले रही हैं, अप्रत्‍यक्ष रूप से उनकी रेटिंग मजबूत हो रही है. दुनिया भर में जो फंड इंडेक्‍स फॉलो करते हैं, उनका जो वेटेज है, उसी के हिसाब से उन्‍हें भारत के बॉन्‍ड भी खरीदना होगा. इससे भारत के बॉन्‍ड के ब्‍याज की देनदारी कम होगी. 

ग्‍लोबल फंड्स को भारतीय बॉन्‍ड रुपये में खरीदने होंगे और डॉलर का इनफ्लो भारत में बढ़ेगा. ऐसे में रुपये को मजबूती मिलना तय माना जा रहा है. क्‍योंकि भारतीय रुपये में बॉन्‍ड खरीदने तभी बेहतर होगा, जब वह मजबूत होगा. करेंसी मार्केट और बॉन्‍ड मार्केट एक दूसरे के ट्रेंड के मुताबिक ही चलते हैं. ऐसे में आने वाले सालों में भारतीय करेंसी की कमजोरी कम होगी और इसकी सालाना डिप्रिसिएशन का रेट भी घटेगा.

AUM कैपिटल के नेशनल हेड (वेल्‍थ) मुकेश कोचर का कहना है, बाजार को लंबे समय से इस खबर का इंतजार था. जेपी मॉर्गन इंडेक्‍स 240 अरब अमेरिकी डॉलर का है. भारत का वेटेज 10 फीसदी है, यानी 24 अरब डॉलर एक बड़ा अमाउंट है. यह भारत के लिए बेस रेट में बदलाव करेगा और यील्‍ड तेजी से नीचे आनी चाहिए. वहीं, भारत की बारोइंग कॉस्‍ट (कर्ज लेने की लागत) भी कम होगी.

कोचर का कहना है, कोविड के बाद भारत का राजकोषीय घाटा लगातार ऊपर की ओर बना हुआ है, जिसकी बड़ी वजह महंगी बारोइंग है. इससे बारोइंग दबाव कम होगा, क्‍योंकि ज्‍यादातर फंड इस रूट से आएगा. मार्क-टू-मार्केट बेनेफिट बैंकों का खजाना भरेगा. इसी के साथ सरकारी सिक्‍युरिटीज की खरीदारी से डॉलर का इनफ्लो बढ़ेगा और इससे भारतीय करेंसी को सपोर्ट मिलेगा. जहां तक भारतीय शेयर बाजार की बात करें, तो यह बैंक, NBFC, लीवरेज्‍ड कंपनियां के लिए पॉजिटिव है. कुल मिलाकर यह भारत के लिए बड़ा पॉजिटिव मूव है.