कार्वी मामले के बाद अब निवेशकों का पैसा एक और ब्रोकर फर्म के पास फंस गया है. एक और ब्रोकिंग फर्म फंसती हुई नजर आ रही है. पैसे फंसने को लेकर ब्रोकिंग फर्म के खिलाफ निवेशकों ने शिकायत की है. एक्शन फाइनेंशियल सर्विसेज नाम की ब्रोकिंग फर्म शेयर बाजार में लिस्टेड है. लेकिन, सितंबर के बाद से फर्म ने निवेशकों के ना तो पैसे दिए हैं और ना ही शेयर वापस किए हैं. कंपनी ने निवेशकों को साफ कह दिया है कि उसके पास पैसा नहीं है. पैसा मार्केट में फंस गया है. इस वजह निवेशकों का पैसा नहीं लौटाया जा सकता.

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कंपनी ने 18 सितंबर को स्टॉक एक्सचेंज में जानकारी दी थी कि BSE और NSE टर्मिनल को बंद कर दीजिए. एक महीने पहले ही कंपनी ने तैयारी कर ली थी कि वह कारोबार समेट लेगी. ज़ी बिज़नेस को भी निवेशकों ने ट्विटर पर काफी शिकायतें की हैं. 

मुश्किल में एक और ब्रोकिंग फर्म

- एक्शन फाइनेंशियल सर्विसेज़ के निवेशकों की शिकायत.

- ब्रोकर के यहां एक महीने से शेयर और पैसे दोनों फंसे.

- सितंबर से शिकायत हो रही है पर पैसे नहीं मिल रहे.

- निवेशकों से कहा जा रहा है कि फर्म के पास पैसे नहीं.

- एक अप्रैल से डिस्काउंट ब्रोकरेज कारोबार खत्म किया.

- अप्रैल में कहा F&O में काम नहीं होगा, कैश में होगा.

ब्रोकर के खिलाफ एक्सचेंज और सेबी ने क्या एक्शन लिया है?

- SEBI ने एक एक्सचेंज से फोरेंसिक ऑडिट करने के निर्देश दिए हैं.

- फोरेंसिक ऑडिट की रिपोर्ट से पता चलेगा क्या गलत हुआ.

- शुरुआती अनुमान में 3-4 करोड़ रु की सिक्योरिटी शॉर्टेज है.

- जबकि 2-3 करोड़ रु के फंड शॉर्टेज का अनुमान लगाया गया.

क्या है कंपनी का रुख?

- CMD मिलन पारेख ने ज़ी बिज़नेस से कहा दिक्कत नहीं है.

- सीनियर मैनेजमेंट के लोग बीमार इसलिए सेटलमेंट में दिक्कत.

- जबकि निवेशकों को बताया कि लिक्विडिटी की समस्या है. 

- आर्बिट्रेशन का मामला चल रहा है.

- नवंबर अंत तक क्लियरिंग मेंबर के साथ मामले का निपटारा हो सकता है.

- एक्सचेंजेज़ ने ज़ी बिज़नेस के ई-मेल पर जवाब नहीं दिया.

- निवेशकों का डिपॉजिट भी नहीं रिटर्न किया जा रहा.

- निवेशकों से कहा गया कि मार्केट में पैसे फंस गए हैं.

- कारोबार बंद करने से पहले निवेशकों को सूचना नहीं.

- 18 सितंबर को ट्रेडिंग टर्मिनल बंद करने की अर्जी दी.

- CFO बकुल पारेख ने अगस्त में ही इस्तीफा दिया था.

- एक इंडिपेंडेट डायरेक्टर ने भी हाल में इस्तीफा दिया.

अनिल सिंघवी की राय

अनिल सिंघवी के मुताबिक, यह बड़ी सरप्राइज करने वाली है कि इतना मजबूत मार्जिन सिस्टम होने के बाद भी ब्रोकर के फेल होने की जानकारी सामने आती है. निवेशकों के पैसा फंसने का मामला सामने आता है. ब्रोकर सिर्फ ब्रोकिंग कर रहा है तो शायद दिक्कत न हो, लेकिन ब्रोकिंग के साथ अगर इन्वेस्टमेंट पर एक्सपोजर हो मार्केट में और वो गलत चला जाए तो दिक्कत आती है. ब्रोकर जब किसी बड़े निवेशक को या ऑपरेटर्स को फाइनेंस करे और उनके शेयर में किसी तरह की तेज गिरावट आ जाए तो फंड फ्लो को मिस मैच करता है. 

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अनिल सिंघवी की मांग

SEBI और एक्सचेंजेज को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि ब्रोकर के ब्रोकिंग ऑपरेशंस और फंडिंग ऑपरेशंस को अलग-अलग कर सके. काफी हद तक कोशिश हुई है लेकिन, वो सिर्फ इस हद तक है कि ब्रोकर डायरेक्ट फंडिंग नहीं करते हैं, बल्कि अपनी एक NBFC बनाते हैं वहां से घुमाकर फंड रूट करते हैं. मार्जिन सिस्टम मजबूत होने के बाद भी अगर ब्रोकर्स फेल होते हैं तो गलती ब्रोकिंग फर्म की ज्यादा है, ना की क्लाइंट की. क्योंकि, बिना मार्जिन तो आप ट्रेड कर नहीं सकते. 

 

क्या करना चाहिए?

अनिल सिंघवी के मुताबिक, सिस्टम और नियमों को ऐसे बनाने की जरूरत है, अगर ब्रोकर पर किसी तरह का प्रभाव पड़ता है तो उनके दूसरे क्लाइंट के कामकाज पर इसका असर न आए. दूसरी सबसे अहम चीज यह है कि इस तरह के मामलों का निपटारा जल्द से जल्द होना चाहिए. इस पूरी प्रक्रिया में लंबा वक्त लगता है. कार्वी मामला भी अभी तक लटका है.