फूड डिलीवरी सर्विस देने वाली कंपनी स्विगी के मुंबई के कर्मचारी एक अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए हैं. इसकी शुरुआत 8 अक्टूबर से हुई थी. सबसे पहले ये हड़ताल राष्ट्रीय कर्मचारी सेना और कुछ डिलीवरी एग्जिक्युटिव ने बांद्रा में स्विगी के खिलाफ प्रदर्शन शुरू किया था. धीरे-धीरे इस हड़ताल में और भी कर्मचारी जुड़ते चले गए और अब इस हड़ताल की वजह से मुंबई में लोगों को स्विगी से कुछ भी ऑर्डर करने में दिक्कत हो रही है. सवाल ये है कि आखिर ये हड़ताल हो क्यों रही है? आइए जानते हैं इसके बारे में और समझते हैं पूरा मामला.

पैसों का है मामला

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अब तक मिली खबरों के अनुसार स्विगी ने डिलीवरी रेडियस को 4 किलोमीटर से बढ़ाकर 6 किलोमीटर कर दिया है, लेकिन उसके लिए दिए जाने वाले पैसे नहीं बढ़ाए हैं. बताया जा रहा है कि इस 6 किलोमीटर की डिलीवरी के लिए उन्हें सिर्फ 20 रुपये दिए जाते हैं. स्विगी डिलीवरी एग्जिक्युटिव्स का कहना है कि कंपनी उन्हें डिलीवरी के लिए जितने पैसे दे रही है, उसमें उन्हें कोई फायदा ही नहीं होगा. कुछ डिलीवरी एग्जिक्युटिव्स इस बात को लेकर भी नाराजगी जता रहे हैं कि कई बार उन्हें सुबह के 3 बजे तक काम करने को कहा जाता है, जिससे वह रोज एक अच्छी कमाई कर पाएं. सोशल मीडिया पर कुछ बाइक रैली की वीडियो भी हैं, जो डिलीवरी एग्जिक्युटिव्स की हड़ताल दिखा रही हैं. 

कर्मचारियों का कहना है कि पेट्रोल की कीमतें बढ़ चुकी हैं. हमारे लिए हर चीज के दाम बढ़ गए हैं. ऐसे में इस वक्त हम मुश्किल से कुछ पैसे कमा पा रहे हैं. हमें काम करने के लिए बेहतर स्थिति चाहिए. बता दें कि यह सब उस वक्त हो रहा है जब वर्ल्ड कप की वजह से वॉल्यूम में तेजी देखने को मिल रही है. हालांकि, अभी जोमैटो की सेवाओं पर कोई असर नहीं पड़ा है, क्योंकि उसके डिलीवरी एग्जिक्युटिव्स ने कोई हड़ताल नहीं की है. वहीं अब लोग स्विगी को इस बात के लिए भी फटकार रहे हैं कि आखिर वह ऑर्डर ले ही क्यों रहे हैं, जब डिलीवर नहीं कर सकते. किसी का ऑर्डर 90 मिनट डिलीवरी टाइम दिखा रहा है तो किसी का 2 घंटे. अब मुंबई में स्विगी के यूजर्स काफी परेशान हो रहे हैं.

डिलीवरी एग्जिक्युटिव बार-बार कर रहे हड़ताल

अभी तो स्विगी के डिलीवरी एग्जिक्युटिव्स ने हड़ताल की है, लेकिन कुछ समय पहले ब्लिंकइट के कर्मचारी भी हड़ताल पर रह चुके हैं. उस वक्त भी कर्मचारियों को मिलने वाले पैसे बहुत ज्यादा घटा दिए गए थे, जिसके चलते वह हड़ताल पर चले गए थे. खबरों के अनुसार ब्लिंकइट की नई पे-आउट पॉलिसी से डिलीवरी एग्जिक्युटिव्स की कमाई करीब आधी हो गई थी. यानी एक बात तो तय है कि इन लोगों को पैसे बहुत कम मिल रहे हैं.

बार-बार डिलीवरी एग्जिक्युटिव्स हड़ताल करते हैं, लेकिन कुछ ही दिनों बाद सब कुछ जैसे सामान्य हो जाता है. कई बार तो अलग-अलग कंपनियों के डिलीवरी एग्जिक्युटिव यह तक कह चुके हैं कि ये कंपनियां उन्हें कर्मचारी नहीं, बल्कि लेबर मानती हैं. मौजूदा वक्त में इन डिलीवरी ब्वाय के अच्छे पैसे कमाने के लिए दिन में 12-14 घंटे तक काम करना पड़ता है. 2019 में भी जोमैटो के कर्मचारियों ने कुछ ऐसा ही प्रदर्शन किया था, जब उनके इंसेंटिव को घटा दिया गया था. 

पॉलिसी बनाए जाने की है जरूरत

बार-बार डिलीवरी एग्जिक्युटिव्स हड़ताल करते हैं और इससे हर किसी को परेशानी झेलनी पड़ती है. इस वक्त जरूरत है इन गिगवर्कर्स के लिए कोई पॉलिसी बनाए जाने की. इसके तहत उन्हें वर्क-लाइफ-बैलेंस का फायदा भी मिलना चाहिए. न्यूनतम सैलरी या वेज भी तय होनी चाहिए. काम करने के नियम भी तय होने चाहिए. कई कर्मचारी आरोप लगा रहा हैं कि उन्हें रात को 3 बजे तक भी काम करना पड़ता है. ऐसे में इन सभी पर ध्यान देना जरूरी है. देखा जाए तो इन डिलीवरी एग्जिक्युटिव्स को कोई भी लेबर राइट नहीं मिल पाता है. वह तमाम कंपनियों के लिए काम तो कर रहे हैं, लेकिन ना ही उन्हें कोई पीएफ मिलता है, ना ग्रेच्युटी ना ही कंपनी के कर्मचारियों को दी जाने वाली सुविधा जैसा कुछ उन्हें मिलता है. ना तो उनके काम करने के घंटे तय हैं, ना ही उनकी सैलरी तय है. ऐसे में जरूरत है कि कुछ नियम बनाए जाएं.

अगर पॉलिसी बन गई तो कहीं बंद ना हो जाएं कंपनियां

ऐसा भी नहीं है कि पॉलिसी बनाने के बारे में कभी सोचा नहीं गया, लेकिन एक बड़ा सवाल ये भी खड़ा होता है कि अगर पॉलिसी बना भी दी तो कहीं कंपनी ही बंद ना करनी पड़ जाए. दरअसल, स्विगी, जोमैटो, जेप्टो, डंजो, ब्लिंकइट जैसी तमाम कंपनियां मुनाफा कमाने में बहुत संघर्ष कर रही हैं. ऐसे में अगर उन्हें डिलीवरी एग्जिक्युटिव्स को अधिक पैसे देने पड़ेंगे तो उनका नुकसान और बढ़ सकता है. हालांकि, हर कर्मचारी के कुछ हक होते हैं, जो डिलीवरी एग्जिक्युटिव्स को भी मिलने चाहिए.