प्लास्टिक आज के वक्त में कितनी बड़ी समस्या है, इसका अंदाजा अब धीरे-धीरे पूरी दुनिया को हो रहा है. आंकड़ों की मानें तो 1950 से लेकर 2017 के बीच करीब 9.5 अरब टन प्लास्टिक पैदा हुआ, जिसमें से लगभग 7 अरब प्लास्टिक आज के वक्त में प्लास्टिक वेस्ट बनकर या तो लैंडफिल में पहुंच गया है या कूड़े के पहाड़ बना चुका है. इसी समस्या से निजात पाने के लिए सरकार धीरे-धीरे पॉलीथीन और स्ट्रॉ समेत प्लास्टिक की कई चीजों पर बैन लगा चुकी है. स्टार्टअप की दुनिया में भी अब युवा नई-नई तकनीक के साथ इस प्रॉब्लम का सॉल्यूशन निकालने की कोशिश कर रहे हैं. इस समस्या ने इन दिनों नोएडा में रहने वाले राहुल सिंह को भी बहुत टेंशन दी और उन्होंने तय किया कि वह अपने बच्चों को एक बेहतर धरती देंगे. इसी के साथ उन्होंने 2020 में EcoSoul Home की शुरुआत की, जो ईकोफ्रेंडली प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनी है.

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EcoSoul Home की शुरुआत अमेरिका के वॉशिंगटन से 2020 में हुई थी. उस वक्त कंपनी को सिर्फ रजिस्टर कराया गया था. उसके बाद राहुल सिंह ने अपने दोस्त और कंपनी के को-फाउंडर अरविंद गणेशन के साथ मिलकर दुनिया के तमाम देशों से ईकोफ्रेंडली प्रोडक्ट का प्रोक्योरमेंट शुरू कर दिया. इसी बीच  फरवरी 2021 में EcoSoul Home ने अपना पहला प्रोडक्ट शिप किया. बिजनेस बढ़ने लगा तो राहुल सिंह ने भारत में भी मई 2021 में अपने बिजनेस को लॉन्च कर दिया. भारत में कंपनी को इतना स्कोप दिखा कि आखिरकार राहुल अपने पूरे परिवार के साथ 2022 में अमेरिका से वापस भारत आ गए. अब राहुल नोएडा में रहते हैं और कंपनी का हेडऑफिस भी वहीं है. इस बिजनेस की शुरुआत राहुल और अरविंद ने करीब 10 करोड़ रुपये से की थी. अब तक यह कंपनी करीब 1.3 मिलियन टन प्लास्टिक बचा चुकी है.

300-400 करोड़ रुपये का सिर्फ भारत में है बिजनेस

मौजूदा वक्त में EcoSoul Home का बिजनेस अमेरिका, कनाडा, यूके, जर्मनी, यूएई और भारत में है. वहीं अगर बात करें प्रोक्योरमेंट यानी प्रोडक्ट बनवाने की तो यह काम भारत, चीन, वियतनाम, थाइलैंड, मलेशिया और मैक्सिको जैसे देशों से होता है. इतने कम दिनों में EcoSoul Home का बिजनेस कितना बड़ा हो चुका है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इस साल सिर्फ भारत में सेल और भारत से होने वाला एक्सपोर्ट कुल मिलाकर 300-400 करोड़ रुपये के करीब पहुंच जाएगा. मौजूदा वक्त में कंपनी अपनी खुद की फैक्ट्री तो लगाती ही है, साथ ही वह कई देशों से कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग के जरिए सामान बनवाती है. हाालंकि, कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग में भी डिजाइन, मोल्ड और डाई कंपनी की ही होती है. कंपनी की खुद की फैक्ट्री समेत अभी कंपनी करीब 150 मैन्युफैक्चरिंग यूनिट के साथ काम कर रही है. दुनिया के 22 पोर्ट से कंपनी का सामान शिप होता है. वहीं इसके 18 पोर्ट कंसोलिडेशन सेंटर और डिस्ट्रिब्यूशन सेंटर हैं.

करोड़ों की नौकरी छोड़ी और शुरू किया बिजनेस

राहुल सिंह का जन्म भारत के छत्तीसगढ़ के भिलाई शहर में हुआ था. वहीं से उन्होंने स्कूलिंग की. इंजीनियरिंग के लिए वह एनआईटी सूरत गए और जमशेदपुर के XLRI इंस्टीट्यूट से उन्होंने एमबीए किया. यहां से उनका प्लेसमेंट केपीएमजी में एक बिजनेस कंसल्टेंट के तौर पर हो गया. वहीं से राहुल को मौका मिला न्यूयॉर्क जाने का, जहां पर उन्होंने बैंकिंग सेक्टर में कई सालों तक काम किया. जेपी मॉर्गन में एग्जिक्युटिव डायरेक्टर से लेकर सिटी बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर बनने तक उन्होंने बैंकिंग को अच्छे से समझा. इसके बाद वेफेयर कंपनी में वह ग्लोबल सप्लाई चेन के प्रमुख बन गए. यहीं पर उनकी मुलाकात हुई अरविंद गणेशन से, जो ग्लोबल मर्चेंडाइजिंग के प्रमुख थे. गणेशन भी इससे पहले माइक्रोसॉफ्ट के एज्योर के सीनियर डारेक्टर रह चुके थे. अगर दोनों के सैलरी पैकेज की बात करें तो ये मिलियन डॉलर में था. यानी दोनों ही करोड़ों कमा रहे थे, लेकिन एक दिन सब बदल गया और दोनों ने नौकरी छोड़ अपनी कंपनी शुरू कर दी. 

बच्चों के लिए एक बेहतर दुनिया बनाना चाहते हैं

जब वेफेयर में दोनों की मुलाकात हुई तो वहीं पर दोनों ने ईकोफ्रेंडली प्रोडक्ट के बारे में बातें शुरू कीं. दोनों ने ही देखा कि ग्राहकों की ओर से सस्टेनेबल प्रोडक्ट की मांग तो थी, लेकिन ऐसा कोई ब्रांड या सप्लायर नहीं था, जो डिमांड को पूरा कर सके. इसी दौरान वेफेयर के लिए दोनों ने मिलकर ईकोफ्रेंडली प्रोडक्ट को लेकर एक पूरा प्लान बनाया. हालांकि, कोविड के दौरान वेफेयर ने इसमें घुसने से मना कर दिया और उस प्लान को ड्रॉप करने का फैसला किया. ऐसे में राहुल और अरविंद ने तय किया कि अगर कोई इसे नहीं करेगा तो वही करेंगे. इसके बाद दोनों ने अपनी करोड़ों के पैकेज वाली नौकरी छोड़ दी और EcoSoul Home की शुरुआत करने का फैसला किया. दोनों ने तय किया कि अपने बच्चों को एक बेहतर दुनिया देनी है. राहुल हमेशा अपने बच्चों की तस्वीर अपनी डेस्क पर रखते हैं, ताकि इस मिशन में वह कहीं पर कमजोर ना पड़ें.

EcoSoul नाम ही क्यों रखा?

राहुल बताते हैं कि जब कंपनी बनाई जाती है तो उसकी आत्मा या डीएनए तय करने का एक ही मौका होता है. हमें ईको फ्रेंडली स्पेस में जाना था. हमने तय किया हुआ था कि बिजनेस की आत्मा यानी सोल (Soul) तो ईको फ्रेंडली रहना ही है. हम प्लास्टिक के खिलाफ लड़ाई लड़ने निकले हैं ना कि सिर्फ बिजनेस करने. ऐसे में सोल तो रखना ही था और फिर ईको के साथ मिलाते हुए कई नाम सोचे. अंत में EcoSoul को फाइनल किया.

इन 3 चुनौतियों से निपटना है कंपनी का मकसद

जब बात ईकोफ्रेंडली प्रोडक्ट की आती है तो राहुल को 3 सबसे बड़ी चुनौतियां दिखती हैं. पहला है अवेयरनेस, लोगों को पता ही नहीं है कि प्लास्टिक के जिन प्रोडक्ट्स को वह इस्तेमाल कर रहे हैं, उसका कोई ईकोफ्रेंडली विकल्प भी हो सकता है. दूसरा चैलेंज है अवेलेबिलिटी, लोगों को पता ही नहीं है कि आखिर ये ईकोफ्रेंडली विकल्प मिलेंगे कहां. इसके लिए ही कंपनी ने ई-कॉमर्स की शुरुआत की और अपने प्रोडक्ट्स को तमाम ई-कॉमर्स पोर्टल पर लिस्ट किया. अभी अमेजन पर ईकोफ्रेंडली प्रोडक्ट्स में Ecosoul Home के प्रोडक्ट टॉप सेलिंग प्रोडक्ट हैं. वहीं तीसरा चैलेंज है अफोर्डेबिलिटी का. लोगों को ऐसे ईकोफ्रेंडली प्रोडक्ट चाहिए, जो अफॉर्डेबल हों. वह ईकोफ्रेंडली विकल्प के लिए 2-3 गुना कीमत देने के लिए तैयार नहीं है, बल्कि ऐसे में वह प्लास्टिक से दूर हो ही नहीं पाते हैं. अभी कंपनी के प्रोडक्ट्स प्लास्टिक की तुलना में सिर्फ 25-30 फीसदी महंगे होते हैं.

खुद भी झेलीं बहुत सारी चुनौतियां

कोविड के दौरान बहुत कम स्टोर खुले थे. जो खुले थे वह भी नए प्रोडक्ट नहीं लेना चाहते थे. ऐसे में जब यह कंपनी अपने प्रोडक्ट लेकर मार्केट में उतरी, तभी ये समझ आ गया था कि ये राह मुश्किल होने वाली है. राहुल और अरविंद ने उस वक्त तय किया कि ई-कॉमर्स के जरिए ही बाजार में एंट्री मारी जाएगी. उन्होंने अपनी खुद की वेबसाइट बनाई और ई-कॉमर्स पोर्टल पर भी लिस्ट हुए. राहुल को आज भी याद है कि कैसे उन्होंने ऑनलाइन सेल के लिए करीब 2 महीने की इन्वेंट्री रखी थी, लेकिन सारा का सारा सामान सिर्फ 10 दिन में बिक गया था. 

बिजनेस अच्छा चलने लगा और करीब 3 महीने बाद रिटेल मार्केट में भी जाने का मौका मिल गया. हालांकि, मुश्किल यहां भी खूब हुई. अरविंद अपनी गाड़ी की डिग्गी में समान भर-भरकर ले जाते थे और रिटेलर्स को उसके बारे में बताते थे. इधर कोरोना की दूसरी लहर में सब कुछ बंद हो गया. कर्मचारी भी काम पर नहीं आ पा रहे थे. ऐसे में राहुल ने खुद ही अपना वेयरहाउस संभालना शुरू किया. उन्हें एक और बड़ी चुनौती ये झेलनी पड़ी कि उनके वेयरहाउस में सिर्फ कच्चा माल रखने की जगह थी, बना हुआ माल रखने की जगह नहीं थी. ऐसे में उन्होंने उस तैयार माल को अपने घर में रखा. घर के हॉल से लेकर किचन और बेडरूम तक में उन्होंने सामान रखा. करीब 3 महीने तक वह अपने परिवार के साथ जमीन पर सोए.

ताने भी खूब मिले, लोग दोना-पत्तल बेचने वाला कहते थे

अगर कोई विदेश में करोड़ों की नौकरी छोड़कर बिजनेस करने लगे, तो समाज से ताने मिलना लाजमी है और राहुल के साथ भी ऐसा ही हुआ. जहां एक ओर उनका परिवार उन्हें पूरा सपोर्ट कर रहा था, वहीं समाज और रिश्तेदार सवाल उठाते थे. कोई पूछता कि अमेरिकी की इतनी अच्छी नौकरी क्यों छोड़ दी? कुछ गड़बड़ है क्या? वहीं ऐसे भी बहुत से लोग थे जो राहुल को दोना-पत्तल बेचने वाला कहने लगे. यहां तक कहा कि दोना-पत्तल बेचकर कौन बड़ा बनता है. हालांकि, उनकी पत्नी ने उन्हें पूरा सपोर्ट किया और वह बिजनेस में उनके साथ एक्टिव हैं. वह भारत में नए प्रोडक्ट और डेवलपमेंट को लीड कर रही हैं. राहुल और उनकी पत्नी ने सोचा कि आखिर बुरे से बुरा क्या होगा? यही होगा कि दोबारा अमेरिका जाकर नौकरी करनी पड़ेगी. राहुल बहुत ही फख्र से बताते हैं कि जब-जब उनकी हिम्मत टूटने लगी है तो उनकी पत्नी उनकी हिम्मत बनी हैं. वह मानते हैं कि अगर एक सफल बिजनेस बनाना है तो कुछ लोगों को नजरअंदाज करना ही होगा, जो सिर्फ ताने मारने का काम करते हैं.

क्या है कंपनी का बिजनेस मॉडल?

कंपनी का बिजनेस मॉडल बहुत ही आसान सा है. कंपनी दुनिया भर के देशों से प्रोडक्ट इकट्ठा करती है और फिर उसे ग्राहकों तक पहुंचाती है. जिस देश में जिस चीज का सोर्स बड़ा होता है, उस देश में उसी से जुड़ी फैक्ट्री लगा दी जाती है. जैसे चीन से बांस खूब मिलता है तो वहां उससे जुड़ी फैक्ट्री लगा दी जाती है. अगर किसी दूसरे देश में पाम बहुत ज्यादा है तो वहां पर पाम से जुड़े प्रोडक्ट बनान की फैक्ट्री लगा दी जाती है. कुछ जगहों पर कंपनी अपनी फैक्ट्री लगाती है और बाकी जगहों पर कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग करा लेती है. इसके बाद सारी जगहों से सामान इकट्ठा कर के उसे अलग-अलग डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर्स के जरिए रिटेलर्स और ई-कॉमर्स मार्केट तक पहुंचा दिया जाता है. इस कंपनी में जितने भी कर्चमारी हैं, उनमें से 80 फीसदी डेटा और टेक्नोलॉजी से जुड़े हुए हैं. राहुल बताते हैं कि अभी दुनिया भर में कंपनी के करीब 1600 प्रोडक्ट बिकते हैं और इतनी बड़ी ग्लोबल सप्लाई चेन को एनेबल करने के लिए ही ये डेटा और टेक्नोलॉजी एंप्लॉई काम करते हैं. 

अब तक कितनी फंडिंग ली है कंपनी ने?

राहुल का मानना है कि सिर्फ पैसे कमाने के लिए बिजनेस नहीं करना चाहिए. यही वजह है कि 98 फीसदी स्टार्टअप फेल हो जाते हैं, क्योंकि वह पैसे कमाने के लिए स्टार्टअप शुरू करते हैं, ना कि प्रॉब्लम सॉल्व करने के लिए. राहुल और अरविंद ने तो अपने स्टार्टअप के लिए पहले 14 महीने तक एक भी रुपये की फंडिंग नहीं ली. राहुल ने अपना न्यूयॉर्क का घर बेच दिया और अरविंद ने भी अपनी बहुत सारी असेट बेच दी. अभी तक कंपनी ने फंडिंग के 2 राउंड किए हैं, सीड राउंड और सीरीज ए राउंड. इनमें कुल मिलाकर EcoSoul Home  ने 16 मिलियन डॉलर की फंडिंग उठाई है. राहुल बताते हैं कि अभी बिजनेस अपने पैरों पर खड़ा हो चुका है और अच्छे से चल रहा है. बिजनेस तेजी से मुनाफे के करीब पहुंच रहा है और जल्द ही मुनाफा होने लगेगा. अगले राउंड की फंडिंग के लिए राहुल को कोई जल्द ही नहीं है. 

फ्यूचर का क्या है प्लान?

राहुल बताते हैं कि उन्होंने अपना बिजनेस सिर्फ 4 प्रोडक्ट के साथ शुरू किया था और आज उनके पास 6 कैटेगरी में 43 प्रोडक्ट हैं. आने वाले दिनों में कंपनी नई कैटेगरी 'बेबी और फेमिनाइन केयर' में उतरने की प्लानिंग कर रही है. इसके तहत वह बच्चों के डायपर्स और सैनिटरी नैपकिन बनाएंगे. अगले 3-4 महीनों में वह ग्लोबल लेवल पर इसकी लॉन्चिंग की तैयारी कर रहे हैं. इतना ही नहीं, आने वाले दिनों में वह होम केयर कैटेगरी में भी प्रोडक्ट लॉन्च करने की प्लानिंग कर रहे हैं. यह कंपनी एन्जाइम बेस्ड साबुन, डिटर्जेन्ट, टॉयलेट क्लीनर जैसे प्रोडक्ट बनाने की योजना बना रही है. इसके अलावा कंपनी आने वाले दिनों में यूके, कनाडा, यूएई, जर्मनी में रिटेल स्टोर खोलेगी. साथ ही कंपनी फ्रांस में भी एंट्री मारने की प्लानिंग में है. वहीं भारत में बड़े स्केल पर Ecosoul Home के प्रोडक्ट्स देखने को मिलेंगे.