हाल ही में सरकार ने डार्क पैटर्न (Dark Pattern) अपनाने वाली ई-कॉमर्स कंपनियों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है. सरकार ने ई-कॉमर्स कंपनियों के डार्क पैटर्न पर ड्राफ्ट गाइडलाइंस जारी की है. सरकार ने 28 जून को ही इस मामले में एक ड्राफ्ट तैयार किया था और फिर तमाम ई-कॉमर्स कंपनियों और स्टेकहोल्डर्स के साथ बैठक की. अब सरकार ने साफ किया है कि उपभोक्ताओं की पसंद को मैनिपुलेट करना या उसमें बदलाव की कोशिश करने पर ई-कॉमर्स कंपनियों पर कार्रवाई की जाएगी. अगर नियमों का उल्लंघन होता है तो कंपनियों पर 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. अब सवाल ये उठता है कि आखिर डार्क पैटर्न है क्या, जिसे लेकर इतना कुछ हो रहा है.

समझिए क्या होता है डार्क पैटर्न

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आसान भाषा में डार्क पैटर्न को समझें तो इसका मतलब है कि गलत प्रैक्टिस के जरिए ग्राहकों को प्रभावित करना. इसके तहत कंपनियां कई तरह के काम करती हैं. डार्क पैटर्न मतलब एक ऐसा पैटर्न जो आपको समझ ना आए और वह आपको आम प्रैक्टिस लगे. जैसे आपको आए दिन ये देखने को मिलता होगा कि ई-कॉमर्स साइट्स पर कई प्रोडक्ट्स में लिखा होता है कि स्टॉक खत्म होने वाला है या इसके 1-2 आइटम बचे हैं. ये भी डार्क पैटर्न है, जो आप समझ नहीं पाते, लेकिन उसके जरिए आपके शॉपिंग के पैटर्न को प्रभावित किया जाता है. स्टॉक खत्म होता देखकर कई बार ग्राहक उसकी तुलना करते हुए दूसरे प्रोडक्ट नहीं देखते और जल्दबाजी में प्रोडक्ट खरीद लेते हैं.

एक दो नहीं, 10 तरह के डार्क पैटर्न मिले हैं

उपभोक्ता मंत्रालय के सचिव रोहित सिंह ने बताया कि अभी तक सिर्फ समस्या को समझा गया है और हर होमवर्क में उन्हें 10 डार्क पैटर्न समझ में आए हैं. आइए जानते हैं इनके बारे में.

1- अर्जेंसी- इसके तहत अक्सर ग्राहक से झूठ बोला जाता है. जैसे आपके सामने आपत स्थिति पैदा करते हुए कहा जाएगा कि डील खत्म होने वाली है, स्टॉक खत्म होने वाला है, रेट बढ़ने वाले हैं आदि.

2- बास्केट स्नीकिंग- डार्क पैटर्न के इस तरीके में ग्राहक को बिना बताए ही उसे एक्स्ट्रा प्रोडक्ट दे दिया जाता है. इसके बाद उस अतिरिक्त प्रोडक्ट की कीमत भी उसके बिल में जोड़ दी जाती है. 

3- कंफर्म शेमिंग- यह एक ऐसा डार्क पैटर्न है, जिसके तहत किसी भी साइट में एंट्री कर लेने के बाद वहां से एग्जिट करने में बहुत मुश्किल होती है. यानी इसके तहत ग्राहक को जानबूझ कर वेबसाइट पर रोके रखने की कोशिश होती है.

4- फोर्स्ड एक्शन- इसमें ग्राहकों को तब तक किसी वेबसाइट में प्रवेश नहीं दिया जाता है, जब तक कि वह कोई प्रोडक्ट ना चुन ले. 

 5- नैनिंग- यह डार्क पैटर्न का वह तरीका है, जिसके तहत ग्राहकों को किसी प्रोडक्ट को खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है.

6- बेट एंड स्विच- इसमें ग्राहक की तरफ से जिस वस्तु की खरीदारी की जाती है, उसके बदले दूसरी वस्तु बेच दी जाती है और फिर कंपनी की तरफ से बहाना बनाया जाता है कि स्टॉक खत्म होने की वजह से वैकल्पिक प्रोडक्ट दे दिया गया है.

7- हिडेन कॉस्ट- इसके बारे में तो अधिकतर लोग जानते ही हैं. ऐसे में ई-कॉमर्स कंपनी की तरफ से आपको पहले इसके बारे में नहीं बताया जाता है, लेकिन आपके बिल में उसकी कीमत जोड़ दी जाती है.

8- ट्रिक क्वेश्चन- इसके तहत अगर शॉपिंग के बीच में अचानक से आपसे पूछा जाता है कि क्या आप डिस्काउंट और नए कलेक्शन से जुड़े अपडेट वाले मैसेज अब नहीं पाना चाहते हैं? इसे भी डार्क पैटर्न माना जाता है.

9- रिकरिंग पेमेंट- इसको भी डार्क पैटर्न प्रैक्टिस कहा जा सकता है. इसके तहत कंपनी 30 दिन या एक तय अवधि का फ्री ट्रायल देती है और उसके बाद बिना ग्राहक की मंजूरी के ही फिर से सब्सक्रिप्शन के लिए उनके खाते से पैसे काट लिए जाते हैं. 

10- रोग मालवेयर- इसके अलावा रोग मालवेयर यानी कोई वायरस किसी उपभोक्ता के कंप्यूटर या मोबाइल में डाल देना भी डार्क प्रैक्टिस ही है, जिसका मकसद ग्राहकों की पसंद से छेड़छाड़ करना या उन्हें कुछ करने के लिए उकसाना होता है.

डार्क पैटर्न से ऐसे निपटा जाएगा

उपभोक्ता मंत्रालय ने 26 अक्टूबर से एक हैकथॉन का आयोजन किया है 15 मार्च को उपभोक्ता दिवस पर इस टूल को औपचारिक रूप से लॉन्च किया जाएगा. यह हैकथॉन इंटरनेट पर डार्क पैटर्न को पहचानेगा और यह भी पता लगाएगा कि यह कितनी बड़ी समस्या है. इससे यह भी पता चलेगा कि इससे कितनी बुरी तरह से ग्राहक प्रभावित हुए हैं. इसे पूरा करने में चार महीनों का वक्त लगेगा. इस हैकथॉन के जरिए विशेषज्ञों की एक टीम ऐसी टेक्नोलॉजी बनाएगी, जिसे आम आदमी इस्तेमाल कर सकेंगे. डार्क पैटर्न का पता लगाने के लिए प्लग-इन, एप्लिकेशन, मोबाइल ऐप और ब्राउजर एक्सटेंशन बनाए जाएंगे, जिनसे डार्क पैटर्न को डिटेक्ट किया जाएगा. यह काफी हद तक वैसा ही होगा, जैसे स्पैम कॉल और साधारण कॉल आने पर अलग-अलग तरह के रंगों के सिग्नल सामने आते हैं.