वैसे तो हर स्टार्टअप (Startup) की शुरुआत हमेशा ही किसी ना किसी समस्या का समाधान निकालने के लिए होती है, लेकिन सवाल ये है कि टारगेट ऑडिएंस कौन होगा? अधिकतर स्टार्टअप अधिकतर टाइम एक यूनीक आइडिया के साथ शुरू होते हैं. ऐसे में उनका जो प्रोडक्ट होता है, वह मार्केट में टेस्टेड नहीं होता है, जिसके चलते उसके फेल होने की आशंका भी काफी अधिक होती है. ऐसी स्थिति में स्टार्टअप के लिए यह बहुत जरूरी होता है कि वह अपने प्रोडक्ट को बनाते वक्त अपने टारगेट ऑडिएंश को ध्यान में रखे. हालांकि, यहां सवाल ये उठता है कि आखिर अपने टारगेट ऑडिएंश (Target Audience) को कैसे पहचानें. आइए जानते हैं कैसे 3 आसान से स्टेप को फॉलो कर के आप अपने टारगेट ऑडिएंश को पहचान सकते हैं.

1- सबसे पहले कस्टमर प्रोफाइल बनाएं

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अपने टारगेट ऑडिएंश की पहचान करने की दिशा में यह बहुत ही अहम कदम होता है. इसके तहत आपको कुछ पैरामीटर्स पर कस्टमर प्रोफाइल बनानी होती है. आइए जानते हैं इनके बारे में.

उम्र का रखें ख्याल

सबसे पहले ये तय करें कि आपका जो प्रोडक्ट है, वह किस उम्र के लोगों के लिए है. यानी किस उम्र के लोग उसे ज्यादा इस्तेमाल करेंगे. यह पता करना इसलिए जरूरी है क्योंकि उम्र के हिसाब से लोगों का सोचना का तरीका अलग-अलग होता है.

किस जेंडर के लिए है प्रोडक्ट

आपको ये भी तय करना होगा कि आपका टारगेट ऑडिएंश किस जेंडर का है. अगर महिलाएं आपकी टारगेट हैं, तो उनके सामने पुरुषों के प्रोडक्ट्स का विज्ञापन दिखाने का कोई मतलब नहीं.

खर्च करने की क्षमता

कस्टमर प्रोफाइल बनाते वक्त आपको ये भी पता होना चाहिए कि ग्राहकों की खर्च करने की कितनी क्षमता है. इसके बाद उनके खर्च करने की क्षमता के आधार पर आप उन्हें अलग-अलग कैटेगरी में डाल सकते हैं. इसके आधार पर आपको ये तय करने में आसानी होगी कि आपको किस कैटेगरी के लोगों को अपना प्रोडक्ट बेचना है. अगर आपका प्रोडक्ट लग्जरी है तो उसका टारगेट ऑडिएंश अलग होगा, वहीं अगर आपका प्रोडक्ट किफायती है तो उसका टारगेट ऑडिएंश अलग होगा. 

इनके अलावा आप ग्राहकों को जियोग्राफिक लोकेशन, उनकी हॉबी यानी शौक, उनकी दिलचस्पी, उनका मैरिटल स्टेटस और अन्य कई पैरामीटर्स पर बांट सकते हैं.

2- मार्केट रिसर्च करें

अपने ऑडिएंश की पहचान करने की दिशा में अगला कदम होता है मार्केट रिसर्च करने का. आप प्राइमरी और सेकेंडरी मार्केट रिसर्च के जरिए कई अहम जानकारियां जमा कर सकते हैं. प्राइमरी मार्केट रिसर्च से आपको पता चलेगा कि ग्राहक क्या खरीदते हैं, क्या पसंद है, क्या चाहते हैं. प्राइमरी मार्केट रिसर्च सर्वे, इंटरव्यू और फोकस ग्रुप्स के जरिए की जाती है. आसान भाषा में इसके तहत सीधे पोटेंशियल कस्टमर से ही डेटा जमा किया जाता है. यही वजह है कि आपसे अक्सर कई बिजनेस फीडबैक मांगते होंगे या किसी सर्वे में हिस्सा लेने को कहते होंगे. 

वहीं सेंकेडरी मार्केट रिसर्च के तहत किसी सेंकेडरी सोर्स से आंकड़े जुटाए जाते हैं. इसके तहत उन आंकड़ों का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे पहले ही किसी ने जुटाया हुआ है. स्विगी-जोमैट जैसे फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं. उन्हें ग्राहकों से जो फीडबैक मिलते हैं, उसके आधार पर रेस्टोरेंट्स को अपने प्रोडक्ट्स में बदलाव करने में मदद मिलती है.

3- कॉम्पटीशन के बारे में सब कुछ जानें

आपको अपने कॉम्पटीशन को देखते रहना चाहिए कि वह क्या कर रहा है. इससे आपको पता चलेगा कि उसके प्रोडक्ट में वो कौन सी कमियां हैं, जिन्हें आप दूर कर सकते हैं और मार्केट में अपना प्रोडक्ट ला सकते हैं. इससे आपको यह भी पता चलेगा कि आपको अपने मार्केटिंग कैंपेन में क्या बदलाव करने की जरूरत है. जोमैटो इसका एक अच्छा उदाहरण है, जिसने उबरईट का अधिग्रहण कर के अपने टारगेट ऑडिएंश का आकार बढ़ा लिया. इससे पहले स्विगी ने मार्केट पर एक तरह से कब्जा किया हुआ था.

ध्यान रहे कि ग्राहकों का स्वभाव बहुत ही चंचल माना जाता है, जो एक ही तरह के प्रोडक्ट से अक्सर ऊब जाते हैं. ऐसे में आपके लिए जरूरी है कि समय-समय पर टारगेट ऑडिएंश की एनालिसिस की जाए. इससे आपको ग्राहकों के बदलते टेस्ट और स्वभाव का पता चलता रहेगा. ऐसे में अगर आपको कोई बदलाव करने की जरूरत पड़ती है तो आप बदलाव भी आसानी से कर सकते हैं.