बनासकांठा के धानेरा तालुका के छोटे से गांव चारड़ा की रहने वाली कानुबेन चौधरी पढ़ी-लिखी नहीं हैं लेकिन, उनकी आमदनी जानकर आप दंग रह जाएंगे. कानुबेन सालाना 80 लाख रुपये सालाना कमा रही हैं. यानी 6.60 लाख रुपये महीना. कानुबेन को कोई उद्योग नहीं चला रहीं, बल्कि खेतीकिसानी से इतना कमा रही हैं. कानुबेन पूरे इलाके में मिसाल बनी हुई हैं. अन्य किसान तथा महिलाओं की प्ररेणा बनी हुई हैं.

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बनासकांठा के छोटे से गाव की एक महिला कानुबेन अपनी मेहनत से नाम और दाम, दोनों कमा रही हैं. कानुबेन ने कुछ साल पहले पशुपालन करके दूध का काम शुरू किया. शुरूआत उन्होंने 10 पशुओं से की. इन पशुओं का पूरा काम वह खुद ही संभालती थीं. उनके चारे-दाने से लेकर दूध निकालने और फिर दूध बेचने के काम कानुबेन खुद ही करतीं. 

गाय-भैंसों का दूध लेकर वह गांव से 3 किलोमीटर दूर एक डेरी पर पैदल ही बेचने जाती थीं. धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लाने लगी और काम रफ्तार पकड़ने लगा. कानुबेन की आमदनी भी बढ़ने लगी. आमदनी बढ़ने के साथ उन्होंने अपने पशुओं की संख्या बढ़ानी शुरू की. 10 पशुओं से शुरू हुई डेरी में आज उनके पास 100 पशु हैं.

काम बढ़ा तो कानुबने ने तकनीक का सहारा लेना शुरू कर दिया. आज मशीनों से दूध निकाला जाता है. रोजना करीब 1000 लीटर दूध इकट्ठा होता है. 

कानुबेन ने खुद के कौशल और कड़ी मेहनत से अपने परिवार का और अपने गांव का नाम रोशन किया है. उनको बनासडेरी द्वारा 2016-17 में सबसे ज्यादा दूध जमा करवाने वाली महिला घोषित करके श्रेष्ठ बनास लक्ष्मी सम्मान से सम्मानित किया गया. इस सम्मान में उन्हें 25,000 हजार रुपये की नकद धनराशि भी दी गई. 

कानुबेन को गुजरात सरकार की तरफ से राज्य के श्रेष्ठ पशुपालक के अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है. राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड (NDDB) द्वारा भी कानुबेन को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है.

कानुबेन का कहना है कि कोई भी काम असंभव नहीं होता. मेहनत और लगन से उसे संभव किया जा सकता है. कानुबेन आपने पशुओं का बहुत ख्याल रखती हैं. वे खुद ही खेत से चारा लाती हैं. पशुओं को खिलाने-पिलाने से लेकर उनकी साफ-सफाई और दूध निकाले का काम अपनी देखरेख में ही करवाती हैं.

उनकी डेरी में पशुओं की सुविधा की तमाम सहूलियतें हैं. हवादार कमरे, पशुशाला में पंखा, ताजा पानी का इंतजाम और पशुओं को नहलाने की मशीन भी लगी हुई है.

कानुबेन चौधरी रोज़ सुबह पशुओं का दूध निकालकर उसे अपनी जीप से बनासडेरी में जमा करवाने जाती हैं. हालांकि बनासडेरी ने कानुबेन की मेहनत और सफलता को देखते हुए उनके गांव में ही दूध कलेक्शन का सेंटर बना दिया है. गांव की अन्य महिलाओं का कहना है कि कानुबेन की वजह से अब उन्हें भी दूध जमा करने के लिए दूर नहीं जाना पड़ता है. 

(रिपोर्ट- निर्मल त्रिवेदी/ अहमदाबाद)