लुपिन फाउंडेशन ने कहा कि विभिन्न राज्यों के 7,000 से अधिक किसानों को नवीन, कम लागत वाली और पर्यावरण के अनुकूल जीरो बजट प्राकृतिक खेती के तकनीकों के बारे में प्रशिक्षित किया गया है.

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अनुभवी किसान और पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित सुभाष पालेकर ने राजस्थान के भरतपुर में 6 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला में किसानों को जीरो बजट खेती के गुर समझाए. उन्होंने “जीवामृत, बीजामृत, गान जीवामृत” और अन्य जैव कीटनाशकों जैसे खेती कार्य में उपयोग होने वाले उत्पादों को बनाने के बारे में किसानों को जानकारी दी. जीरो बजट प्राकृतिक खेती के तहत खेती के कुछेक विधियां सन्निहित हैं जिसमें केमिकल उर्वरकों का बिल्कुल ही उपयोग नहीं किया जाता है.

प्रशिक्षण में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र सहित विभिन्न राज्यों के 7,000 से अधिक किसानों ने भाग लिया.

ल्यूपिन फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक सीताराम गुप्ता ने कहा कि यह कार्यक्रम 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में हमारी सरकार के प्रयासों को समर्थन देने का लक्ष्य रखता है. ल्यूपिन फाउंडेशन का लक्ष्य प्राकृतिक खेती के साथ जुड़कर किसानों की आय में सुधार करना है.

उन्होंने कहा, 'हम किसानों को प्रशिक्षित करेंगे और उन्हें इस जानकारी से लैस करेंगे कि प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर किस तरह से खेती की जाती है, ताकि खेती के खर्च में भारी कटौती की जा सके.’’ इस वर्ष की शुरुआत में, सरकार ने किसानों की आय को बढ़ाने के लिए केंद्रीय बजट 2019 में शून्य बजट प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की घोषणा की थी.

फाउंडेशन ने कहा कि शून्य बजट प्राकृतिक खेती महाराष्ट्र, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और आंध्र प्रदेश में व्यापक रूप से स्वीकृत, खेती करने का तरीका है. लगभग तीन करोड़ से अधिक किसान इस पद्धति से खेती करते हैं.