रेलवे स्टेशनों पर रेलगाड़ियों में चूहों से होने वाली परेशारी से तंग आकर रेलवे अधिकारियों ने अब चूहे पकड़ने के काम में लगाए गए कर्मचारियों पर सख्ती करने का फैसला किया है. रेलवे ने आदेश दिया है कि रैट ट्रैप के जरिए पकड़े गए चूहों की तस्वीर लेकर उसे बड़े अधिकारियों को व्हाट्सऐप करनी होगी.

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समाचार पत्र हिंदुस्तान के मुताबिक 'गोरखपुर रेलवे स्टेशन से गुजरने वाली प्रमुख ट्रेनों में रैट ट्रैप लगाए जा रहे हैं. हर बोगी में चार से पांच ट्रैप लगाए गए हैं. इनमें से अधिकतर में चूहे पकड़े जाते हैं. अभी तक सिर्फ पकड़े गए चूहों की गिनती कर रिकॉर्ड में दर्ज किया जा रहा था, लेकिन अब उनकी फोटो खींच कर ग्रुप में साझा करनी होगी ताकि पकड़े गए चूहों की सही रिपोर्टिंग हो सके. चूहों को पकड़ने के लिए आउटसोर्सिंग पर रेलवे ने दस कर्मचारियों को तैनात कर रखा है, जो रोजाना 12 ट्रेन के 96 कोचों में रैट ट्रैप लगाकर चूहों को पकड़ते हैं.'

समाचार पत्र ने लिखा है, 'गोरखपुर में चूहे पकड़ने के लिए हर साल करीब 10 लाख खर्च होते हैं. इसमें रैट ट्रैप, पेस्टीसाइड, केमिकल और स्टाफ का मानदेय शामिल है. चूहे पटरियों के नीचे की मिट्टी को खोखला कर देते हैं. साथ ही कई जगह की वायरिंग भी काट देते हैं. साथ ही ट्रेनों में कई जगह से सीट कवर भी काट देते हैं. सूत्रों के अनुसार इन सब पर पूर्वोत्तर रेलवे को हर साल डेढ़ से दो करोड़ रुपये की चपत लगती है.'

रिपोर्ट के मुताबिक बीते छह महीनों में सर्वाधिक चूहे गोरखपुर-कोलकाता, पूर्वांचल एक्सप्रेस, कोचीन और राप्तीसागर एक्सप्रेस समेत 12 ट्रेन में पकड़े गए हैं. मुम्बई और चेन्नई तक सफर करने वाले चूहों की संख्या भी कम नहीं है. आंकड़ों के मुताबिक गोरखपुर में सालाना 1500 चूहे पकड़े जाते हैं. अधिकारियों के लिए आश्चर्य की बात ये थी कि लगातार चूहे पकड़े जाने के बाद भी इनकी संख्या कम क्यों नहीं हो रही है. इसलिए अब नई व्यवस्था को लागू किया गया है, जिसके तरह पकड़े गए चूहों की फोटो बड़े अधिकारियों को भेजनी होंगी.